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बड़ी संख्या में बच्चे क्यों आ रहे वायरल फीवर की चपेट में? जानिए वजह

इन्फ्लूएंजा, डेंगू, स्क्रब टाइफस जैसे तमाम वायरस बच्चों को संक्रमित कर रहे हैं. डेंगू और चिकनगुनिया एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है, जो साफ पानी में पैदा होता है. एनोफिलीज मच्छर मलेरिया की वजह बनता है. यह ताजे और गंदे पानी दोनों में प्रजनन कर सकता है.

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फाइल फोटो (पीटीआई)
फाइल फोटो (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है डेंगू
  • पिछले साल की तुलना में इस बार ज्यादा आ रहे केस

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद और मथुरा जिलों में डेंगू बुखार से बच्चों की मौत को 1 महीने से ज्यादा समय हो गया. उत्तर प्रदेश में पिछले 1 महीने 100 से ज्यादा मौतें बुखार से हुई हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ उत्तर प्रदेश में डेंगू बुखार का कहर है. 

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उत्तर प्रदेश के कानपुर, प्रयागराज और गाजियाबाद में लगातार डेंगू के मामले सामने आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली, मध्यप्रदेश और बंगाल में भी डेंगू की चपेट में बच्चे भी आ रहे हैं. हालांकि, इन राज्यों में मौत की खबर सामने नहीं आई है. 
 
क्या है वायरल फीवर, यह अभी क्यों फैल रहा है 

इन्फ्लूएंजा, डेंगू, स्क्रब टाइफस जैसे तमाम वायरस बच्चों को संक्रमित कर रहे हैं. डेंगू और चिकनगुनिया एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है, जो साफ पानी में पैदा होता है. एनोफिलीज मच्छर मलेरिया की वजह बनता है. यह ताजे और गंदे पानी दोनों में प्रजनन कर सकता है. 

विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून के बाद का डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसे वेक्टर जनित रोग बड़े पैमाने पर फैलते हैं. आज अधिकांश बुखार वायरल हैं चाहे इन्फ्लुएंजा हो या डेंगू. ये बुखार आपको बहुत कमजोर और सुस्त महसूस कराते हैं. 

सिम्टोमैटिक इलाज की जरूरत 

दिल्ली स्थित मधुकर रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल की सीनियर कंसलटेंट डॉ अनामिका दुबे ने बताया कि ज्यादातर मरीजों के शरीर में दर्द होता है. इन बुखारों में सिर्फ सिम्टोमैटिक इलाज की जरूरत होती है. साथ ही अच्छा हाईड्रेशन स्टेटस बनाए रखने की जरूरत है. 

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वहीं, द्वारका स्थित आकाश हेल्थकेयर में बाल रोग विभाग में कंसलटेंट डॉ मीना जे ने बताया कि वायरल फ्लू के अलावा इस समय डेंगू के मामले भी काफी आ रहे हैं. इनमें से कई बच्चों को भी डेंगू निकल रहा है. बच्चों में बुखार शरीर दर्द, पेट में दर्द जैसे लक्षण दिख रहे हैं. कुछ मरीजों में ब्लड प्लेटलेट्स कम हो रही हैं. 

बच्चे क्यों आ रहे संक्रमण की चपेट में?

आमतौर पर यह देखा गया है कि बच्चों को साल में 6-8 बार श्वसन संबंधी संक्रमण हो जाते हैं. तथ्य यह है कि लॉकडाउन हटने के बाद से बच्चे बाहर आ जा रहे हैं, संक्रमण फैलने की यह भी वजह है. इसके अलावा दूसरी वजह दूषित खाना और अशुद्ध पानी भी है. यह भी संक्रमण फैलने की वजह बनता है. 

पिछली साल क्यों नहीं दिखा था वायरल का प्रकोप?

पिछले साल, अस्पतालों में बुखार से पीड़ित बच्चों की संख्या में कोरोना और लॉकडाउन के चलते गिरावट देखी गई थी. आमतौर पर वायरल जनित रोग जुलाई और नवंबर के बीच में सामने आते हैं. लेकिन इस बार दिसंबर मध्य तक यह बढ़ सकता है.  
 
'स्क्रब टायफस अधिक घातक'

विशेषज्ञों का मानना है कि स्क्रब टायफस ज्यादा जानलेवा है. डॉ मीना ने बताया कि हमारे पास एक 6-7 साल का मरीज आया था. उसे दो हफ्तों से बुखार था. ब्लड टेस्ट से स्क्रब टायफस का पता चला. बाद में उसे डिस्चार्ज कर दिया गया. लेकिन कभी कभी यह बीमारी जानलेवा हो सकती है. अगर लंबे समय तक स्क्रब टायफस का इलाज नहीं हुआ, तो यह लिवर पर असर डालता है. 
 
पिछले साल कैसी थी डेंगू की स्थिति?

पिछले साल 1 जनवरी से 4 सितंबर तक दिल्ली में 124 केस मिले थे. वहीं, इस दौरान 2016 में 771, 2017 में 829, 2018 में 137 और 2019 में 122 और 2020 में 96 केस मिले थे. हालांकि, इस साल मौत की खबर सामने नहीं आई है. जबकि 2016 और 2017 में 10-10 लोगों की मौत हुई थी. 

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विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना के वक्त की जाने वाली सावधानियों को वायरल फीवर के वक्त भी अपनाना चाहिए और इससे घबराना नहीं चाहिए. 
 
बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए क्या करें?

डॉ मीना ने बताया कि सावधानी बरतने के लिए मच्छरों के पैदा होने वाली जगहों को साफ करना चाहिए. घरों में पानी जमा नहीं होना चाहिए. बच्चे बाहर जाएं तो मच्छर भगाने वाली दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए. 

बच्चों को लेकर कब जाएं अस्पताल?

सर गंगाराम अस्पताल दिल्ली में बाल रोग विभाग में सीनियर सलाहकार धीरेन गुप्ता ने कहा,  कोई रहस्यमय बीमारी या बुखार जो 3-4 दिन से अधिक रह रहा है, बुखार 103-104 डिग्री से अधिक हो, और अगर बुखार न भी हो, लेकिन यदि बच्चा भोजन नहीं कर रहा है, या तरल पदार्थ नहीं ले रहा है, बहुत दर्द की शिकायत करता है. उसके शरीर या किसी भाग पर चकत्ते हो तो उसे अस्पताल लाया जाना चाहिए. इसके बाद डॉक्टर को तय करना होता है कि वह उसे भर्ती करते हैं या उसे घर पर ही रहकर दवा देने की सलाह देते हैं. 


 

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