आज से दस दिन बाद राजस्थान में चुनाव होने हैं. दोनों बड़ी पार्टियां कांग्रेस और भाजपा ने अपने सभी पत्ते खोल दिए हैं. इनके उम्मीदवारों की लिस्ट खंगालने के बाद एक बात जो समझ आती है वो ये कि इन्होंने इस चुनाव में भी बने-बनाए फॉर्मुले के आधार पर ही उम्मीदवारों को चुना है. इसमें चाहे महिलाओं को टिकट देने की बात हो या नए चेहरे पर दांव खेलने की. कांग्रेस के घोषित उम्मीदवारों की औसत उम्र जहां 55 हैं तो वहीं भाजपा की 54. ससंद में 33 प्रतिशत आरक्षण की बात करने वाली दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की राजस्थान की लिस्ट उठाएं तो कांग्रेस में 200 से 28 महिलाओं के नाम दिखते हैं, तो भाजपा ने 20 महिलाओं को पार्टी टिकट दिए हैं, जो की पिछली बार से भी कम है.
भाजपा ने सासंदों को टिकट देकर एक नई कोशिश ज़रूर की है लेकिन इसका पार्टी के भीतर ही विरोध होने लगा. राजनीतिक पंडित ये भी बताते हैं कि दोनों पार्टियों ने चाहे उम्मीदवारों को चुनने के लिए सर्वे कराए हों लेकिन आखिर में यही मायने रखता है कि कौन किस खेमे का है, उसके आधार पर ही नाम में वजन पड़ता है. दोनों पार्टियों के केंडिडेट लिस्ट में सामानताएं देखने को मिलती हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
—-------------------------------------------
छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता में वापस आने की लड़ाई लड़ रही है और यहां पार्टी ख़ुद तो ज़ोर लगा ही रही है, छोटी छोटी पार्टियों के सहारे भी कांग्रेस का खेल खराब करने में लगी है. छत्तीसगढ़ में शुरू से चुनाव बाइपोलर बना हुआ था, लेकिन छोटी पार्टियों का स्टेक भी अब कम अहम नहीं रह गया. आम आदमी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, पूर्व कांग्रेस नेता अरविंद नेताम की नई नवेली पार्टी सर्व आदिवासी समाज, ये कुछ पार्टियां हैं जिनका अपना वोट बैंक है और कुछ सीटों पर प्रभावी हैं. एससी और एसटी वोट जिसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का वोटर वर्ग माना जाता है, इन पार्टियों की मौजूदगी से कांग्रेस को कुछ वोट परसेंट का नुकसान उठाना पड़ सकता है. जिसका सीधा फ़ायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले थे और भाजपा को 33 प्रतिशत. इस बार ये पार्टी कितना फ़र्क ला सकती है और आम आदमी पार्टी के अलावा बसपा, JCC-जोगी, इनमें कितना दम है और ये किसकी चिंताएं बढ़ा रही हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
—----------------------------------------
अभी कुछ दिनों पहले मणिपुर की सरकार ने मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध को बढ़ाने का एलान किया था. राज्य सरकार का मोबाइल इंटरनेट पर बैन कल तक लागू था. कल ही गृह मंत्रालय ने एक नया बैन लागू कर दिया. हिंसा के बीच मंत्रालय ने मैतेई समुदाय के 9 संगठनों को चरमपंथी संगठन घोषित किया है. इनके ऊपर पांच साल का बैन लगाया गया है. ये कार्यवाही UAPA के तहत की गई है. प्रतिबंधित संगठनों के बारे में कहा गया है कि ये भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरनाक है, इसलिए क्योंकि ये हानिकारक ताकतों के साथ मिलकर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का प्रचार करेंगे, लोगों की हत्याओं में शामिल होंगे और पुलिस तथा सुरक्षाबलों के जवानों को निशाना बनाएंगे. तत्काल रोकने का मकसद है कि इन्हें अपना कैडर बड़ा करने का मौका न मिले. ये संगठन कौन से हैं और क्या इससे मणिपुर में हिंसा फिर से भड़क सकती है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.