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पसमांदा मुस्लिम को BJP से क्यों जोड़ना चाहते हैं PM मोदी, ये है NDA का मास्टर प्लान

हैदराबाद में आयोजित बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पार्टी को ना सिर्फ केंद्र में, बल्कि ज्यादा से ज्यादा राज्यों में अगले 30 से 40 सालों का शासन में रहना है. इसके लिए पूरे देश में निचले स्तर तक अपनी जड़ें मजबूत करना करनी होंगी.

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हैदराबाद में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पार्टी पसमांदा मुसलमानों के बीच में जाकर काम करे.
हैदराबाद में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पार्टी पसमांदा मुसलमानों के बीच में जाकर काम करे.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हैदराबाद में मोदी ने पसमांदा समाज को जोड़ने पर दिया था जोर
  • अमित शाह ने कहा था- 30-40 साल तक रहेगा बीजेपी का शासन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में हैदराबाद में आयोजित बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पसमांदा मुस्लिम समाज को पार्टी से जोड़ने की बात पर बल दिया था, जिसके बाद से इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया कि बीजेपी और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आने वाले वक्त में राजनीति को किस तरफ दिशा देने की तैयारी कर रहे हैं. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े इस समाज को लेकर एनडीए में अंदरखाने नई रणनीति तय की जाने लगी है. माना जा रहा है कि बीजेपी और सहयोगी दल मुस्लिम राजनीति करने वाले दलों को बड़ा झटका देने के लिए मास्टर प्लान जमीन पर उतारने जा रहे हैं.

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बता दें कि इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीनों में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए और नतीजों के एनालिसिस के दौरान हस्तक्षेप किया और कहा कि पसमांदा मुसलमानों के बीच में जाकर काम करें और व्यापक पहुंच बनाएं. सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार पार्टी की विधानसभा चुनाव और रामपुर और आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत में पसमांदा मुसलमानों ने अच्छी खासी संख्या में वोट दिया और बीजेपी को समर्थन भी दिया. अगर देखा जाए तो यूपी में बीजेपी ने इस बार मोहिसन रजा की जगह पसमांदा मुस्लिम दानिश अंसारी को योगी सरकार में मंत्री बनाया था.

पीएम मोदी ने पसमांदा मुस्लिम को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए पीछे सबसे बड़ा कारण है. दरअसल, पसमांदा मुसलमान सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा है और वह अन्य मुस्लिम समुदाय से कई मामलों में अलग भी है. ये ही कारण है कि मुस्लिम समाज में जिस तरह से सदियों से पसमांदा की उपेक्षा हुई है, उसका बीजेपी फायदा उठाना चाहती और अपनी रणनीति के तहत आगे बढ़ना चाहती है, जिसका फायदा ना सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनाव में, बल्कि आने वाले सभी विधानसभा चुनाव में भी मिले.

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सूत्रों की मानें तो देशभर में बीजेपी के सांसद और विधायक अपने क्षेत्रों में स्नेह यात्रा निकालेंगे. इस स्नेह यात्रा के जरिए दलित और आदिवासी समुदाय के साथ आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समाज को भी पार्टी जोड़ेगी. बीजेपी पसमांदा मुसलमान से भी संवाद करेगी और केंद्र सरकार की गरीब कल्याण योजनाओं के बारे में जानकारी देगी. इस दौरान ये भी बताने की कोशिश की जाएगी कि पार्टी की विचारधारा सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने की है.

पीएम मोदी का पसमांदा मुस्लिम समाज को पार्टी के वोट बैंक के रूप में जोड़ने के पीछे एक अन्य कारण भी है. ये समाज देश में कुल मुस्लिम आबादी का 85 प्रतिशत है. पीएम मोदी ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि पसमांदा मुस्लिम आर्थिक और सामाजिक रूप पिछड़े होते हैं. दर्जी, धोबी, बढ़ई, लोहार, नाई, कुम्हार, मिस्त्री, हस्तशिल्पकार और पुश्तैनी कामों के कारीगर पसमांदा समाज से आते हैं. ऐसे में आर्थिक दृष्टि से देखें तो पसमांदा मुस्लिम समाज की स्थिति कमोबेश एक जैसी है.

बीपी मंडल की पिछड़े वर्ग के आरक्षण से संबंधित रिपोर्ट, रंगनाथ मिश्रा की अनुसूचित जाति के बारे में आरक्षण रिपोर्ट और रजिंदर सच्चर की मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट में आरक्षण देने और उनकी स्थिति को सुधारने के लिए सिफारिश की गई है.

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मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की शुरुआत हुई थी. केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले ओबीसी आरक्षण में 79 मुस्लिम जातियों को भी रखा गया था, जिसमें लगभग सभी जातियां पसमांदा समाज में से थीं. 

बीजेपी के रणनीतिकार मानते हैं कि पसमांदा मुस्लिम समाज को पार्टी से जोड़ने में सबसे ज्यादा मददगार मोदी सरकार की गरीब कल्याण योजनाएं होंगी, जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना जैसी अनेक योजनाओं के जरिए संवाद करेंगे और मोदी सरकार की टैगलाइन सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के जरिए अपनी पार्टी की विचारधारा के बारे सभी भ्रम को दूर करेंगे.

बीजेपी नेतृत्व इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानता है कि 2010 में बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व एनडीए सरकार दो तिहाई से ज्यादा के बहुमत से बनी थी. बिहार की उस जीत में नीतीश कुमार की सुशासन बाबू छवि और गुंडा-माफिया राज को खत्म करके कानून व्यवस्था को मजबूत करने जैसे बड़े कारण थे. इतना ही नहीं, नीतीश कुमार के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर जिस तरह से दलित में महादलित के फॉर्मूले और पसमांदा मुस्लिमों ने बड़ी संख्या में आरजेडी और एलजेपी की बजाय नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट करके एनडीए की जीत को आसान बना दिया था.

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सूत्रों की मानें तो पसमांदा मुस्लिम समाज को जोड़ने के लिए एनडीए अपने कई सहयोगी दल- जेडीयू, एआईएडीएमके, अपना दल, निषाद पार्टी, जेजेपी, राष्ट्रीय एलजेपी, बीपीएफ, एजीपी, आईपीएफटी समेत अन्य छोटी-छोटी पार्टियां के जरिए मास्टर प्लान को जमीन पर लाएगी. यानी चुनावों में इन पार्टियों के जरिए कई पसमांदा समाज के नेताओं को चुनाव उतारा जाएगा और अपने सिंबल पर मुस्लिम बहुल सीटों पर टिकट दिया जाएगा.

पीएम मोदी ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि आर्थिक और सामाजिक तौर पर मुस्लिम समाज से दरकिनार पसमांदा समाज को अपने साथ जोड़ने की जो कवायद उन्होंने शुरू की है, बीजेपी के वोट बैंक के सामाजिक समीकरणों और जातीय समीकरणों की कैमेस्ट्री अगर उससे कुछ भी प्लस होगा तो मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले राजनैतिक दलों को बड़ा नुकसान होगा.

अमित शाह ने कहा था- 30-40 साल तक रहेगा बीजेपी का शासन

बताते चलें कि हैदराबाद में आयोजित बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने पार्टी के सामने नया लक्ष्य तय किया था. उन्होंने कहा था कि पार्टी को ना सिर्फ केंद्र में, बल्कि ज्यादा से ज्यादा राज्यों में अगले 30 से 40 सालों का शासन में रहना है. इसके लिए पूरे देश में निचले स्तर तक अपनी जड़ें मजबूत करना करनी होंगी. इस अभियान में पार्टी अपनी पहुंच से दूर वाले राज्यों और जहां सत्ता में भी हैं, वहां पर जमीनी संघर्ष को तेज करने के साथ-साथ अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचना होगा. इसके लिए पार्टी को राजनीतिक और सामाजिक विस्तार की रणनीति के तहत काम करना होगा.

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