
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुपोषण का भी जिक्र किया. पीएम मोदी ने बताया कि आने वाले वक्त में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी पोषणयुक्त चावल देने की योजना है. इसमें सरकार अपनी अलग-अलग योजनाओं के तहत ऐसा करेगी.
लाल किले से PM मोदी ने कहा, 'सरकार अपनी अलग-अलग योजनाओं के तहत जो चावल गरीबों को देती है, उसे फोर्टिफाई करेगी, गरीबों को पोषणयुक्त चावल देगी. राशन की दुकान पर मिलने वाला चावल हो, मिड डे मील में मिलने वाला चावल हो, वर्ष 2024 तक हर योजना के माध्यम से मिलने वाला चावल फोर्टिफाई कर दिया जाएगा.'
पीएम मोदी का कुपोषण पर चिंता जताना कितना सही है, यह हाल में आए एक आंकड़े से समझ आता है. इसमें बताया गया था कि देश में 10 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. दरअसल, यह रिपोर्ट इसलिए चिंता पैदा करती है क्योंकि कोरोना की संभावित तीसरी लहर के बारे में कहा जाता है कि यह बच्चों पर ज्यादा असर डालेगी. ऐसे में अगर बच्चे कुपोषित होंगे तो खतरा और ज्यादा बढ़ जाएगा.
न्यूज एजेंसी PTI की एक RTI में सामने आया था कि देशभर में करीब 10 लाख ऐसे बच्चे हैं जो गंभीर रूप से कुपोषित (Severely Acute Malnourished) हैं. RTI के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) ने बताया था कि पिछले साल नवंबर तक 9,27,606 बच्चों गंभीर रूप से कुपोषित हैं. इनमें से 3.98 लाख बच्चे यूपी और 2.79 लाख बच्चे बिहार में हैं.
कुपोषण से अर्थव्यवस्था को भी नुकसान...
लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि कुपोषण की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचता है. इसकी रिपोर्ट कहती है कि एनिमिया के कारण हर साल भारत को 1.35 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है, जो देश की जीडीपी के 1% के बराबर है. इतना ही नहीं, कुपोषण की वजह से हर साल 10 अरब डॉलर (7,400 करोड़ रुपये) का नुकसान भी होता है. रिपोर्ट ये भी कहती है कि ठिगने बच्चे (Stunted Children) आम लोगों की तुलना में 20% कम कमाते हैं.
हंगर इंडेक्स में भारत बांग्लादेश-पाकिस्तान से भी नीचे
प्रधानमंत्री कुपोषण की समस्या को लेकर चिंतित क्यों हैं? इसकी एक वाजिब वजह भी है और वो ये कि देश में आज भी एक बड़ी आबादी कुपोषण से जूझ रही है. पिछले साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) की रिपोर्ट आई थी, इसमें 107 देशों की लिस्ट में भारत 94वें नंबर पर था. इस लिस्ट में बांग्लादेश, पाकिस्तान और म्यांमार भी भारत से ऊपर हैं.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट ये भी बताती है कि भारत की 14% आबादी को पूरा पोषण नहीं मिल रहा है. पांच साल तक के बच्चों में मोर्टेलिटी रेट (मृत्यु दर) 3.7% है. रिपोर्ट में कहा गया था कि कम वजन की वजह से गरीब राज्यों और ग्रामीण इलाकों में मृत्यु दर में इजाफा हुआ है. वहीं, लैंसेट (Lancet) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 5 साल की उम्र से पहले होने वाली 68% मौतों के पीछे कुपोषण ही है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स SAARC देशों में भारत की रैंकिंग सबसे खराब
देश | रैंक |
श्रीलंका | 64 |
नेपाल | 73 |
बांग्लादेश | 75 |
पाकिस्तान | 88 |
अफगानिस्तान | 99 |
(सोर्सः ग्लोबल हंगर इंडेक्स)
कुपोषण से हालात सुधरने की बजाय बिगड़ ही रहे.
पिछले साल दिसंबर में स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) का पहला भाग जारी किया था. ये सर्वे 2019-20 में देश के 22 राज्यों में किया गया था. इस सर्वे में सामने आया कि हालात और बिगड़ गए हैं. 2015-16 में NFHS-4 हुआ था, उसकी तुलना में NFHS-5 में पता चला था कि कुछ राज्यों को छोड़कर बाकी राज्यों में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है.
भारत में कुपोषण को तीन पैरामीटर पर मापा जाता है. पहला ये कि 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चों का वजन ऊंचाई के हिसाब से कम (Wasted) है. दूसरा ये कि 5 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चों का वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम (Underweight) है. और तीसरा ये कि 5 साल से कम उम्र के कितने कितने बच्चे ठिगने (Stunted) हैं.
NFHS-5 में सामने आया था कि जिन 22 राज्यों में सर्वे किया गया था, उनमें से 10 ही ऐसे थे जहां ठिगने बच्चों की संख्या कम हुई थी. 10 राज्य में वेस्टेड बच्चों और 6 राज्यों में अंडरवेट बच्चों की संख्या में सुधार हुआ था. बाकी सभी राज्यों में NFHS-4 की तुलना में बढ़ोतरी ही हुई थी.