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क्यों अपने संविधान को जलाने के लिए तैयार थे बाबा साहेब?... जानें Indian Constitution से जुड़ी दिलचस्प बातें

सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है. लेकिन ये सच है. आजादी के बाद एक बार ऐसा मौका आया था जब भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर इस संविधान को जलाना चाहते थे. लेकिन क्यों? दरअसल, 2 सितंबर 1953 को राज्यसभा में जोरदार बहस हो रही थी. राज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने और अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के पर बाबा साहेब अड़ गए. आवेश में आकर उन्होंने ये बयान दिया था.

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भारत का संविधान
भारत का संविधान

15 अगस्त 1947 को हम भारतीयों को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली. देश का संविधान तैयार करने की प्रक्रिया इससे पहले ही शुरू हो चुकी थी. इसके लिए 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा का गठन किया गया था. भारत का संविधान कई प्रक्रियाओं से गुजर कर अपने मौजूदा स्वरूप में आया है. आइए जानते हैं  भारतीय संविधान से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों को.

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26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान पारित किया गया और अपनाया गया.  इस दिन को संविधान दिवस या राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में जाना जाता है. देश के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में हम यह दिवस मनाते हैं. भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को देश में लागू कर दिया गया. इसीलिए 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं. 

संविधान को लागू करने के लिए  26 जनवरी की तारीख चुनने का भी एक ऐतिहासिक कारण था. दरअसल, 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था. इस तारीख को महत्व देने के लिए 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया. 

पहले समझते हैं कि संविधान क्या है?

संविधान मूल रूप से किसी भी देश का सर्वोच्च ग्रंथ होता है. यह वो किताब है जिस पर देश की संवैधानिक संरचना टिकी होती है. अगर सरल शब्दों में कहें तो ये वो किताब है जिसमें देश की सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक व्यवस्था का निर्देशन करने के लिए नियम लिखे होते हैं. संविधान ही बतलाता है कि समाज को चलाने का आधार क्या हो? कैसे देश के प्रत्येक नागरिक का अधिकार सुरक्षित हो? किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो.  सबको समान रूप से आगे बढ़ने का मौका मिले.

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आइए अब चर्चा करते हैं भारतीय संविधान से जुड़े दिलचस्प फैक्ट्स के बारे में  
 
1. अपने संविधान को जलाने के लिए तैयार थे बाबा साहेब?

यह सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है. लेकिन ये सच है. आजादी के बाद एक बार ऐसा मौका आया था जब भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर इस संविधान को जलाना चाहते थे. लेकिन क्यों? इसकी कहानी हम आपको बताते हैं. 2 सितंबर 1953 को राज्यसभा में जोरदार बहस हो रही थी. मुद्दा था राज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने का. इस चर्चा के दौरान डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान संशोधन का पुरजोर समर्थन किया था.
 
राज्यसभा में बहस के दौरान बाबा साहेब ने कहा था, "छोटे समुदायों और छोटे लोगों को हमेशा ये डर सताता है कि बहुसंख्यक उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि मैंने संविधान को बनाया है. लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति भी मैं ही होउंगा. मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि ये किसी के लिए भी अच्छा नहीं है. हालांकि हमारे लोग इसे लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन हमे याद रखना होगा कि एक तरफ बहुसंख्यक हैं और एक तरफ अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक यह नहीं बोल सकते कि हम अल्पसंख्यकों को महत्व नहीं दे सकते क्योंकि इससे लोकतंत्र को नुकसान होगा. मुझे कहना चाहिए कि अल्पसंख्यक को नुकसान पहुंचाना सबसे ज्यादा नुकसानदेह होगा." दरअसल बाबा साहेब लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकार को लेकर बेहद सजग थे. वे बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकार को किसी भी तरह से हड़पने के सख्त खिलाफ थे. 

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इसके दो साल बाद, 19 मार्च 1955 को ये मुद्दा एक बार फिर उठा. राज्यसभा की कार्यवाही चल रही थी. पंजाब से सांसद डॉ. अनूप सिंह ने डॉ. अंबेडकर के बयान को एक बार फिर उठाया था. तब चौथे संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान उन्होंने अंबेडकर से कहा कि पिछली बार आपने कहा था कि आप संविधान को जला देंगे?

डॉ अनूप सिंह के बयान पर बाबा साहेब ने तुरंत जवाब दिया. उन्होंने कहा,"मैं अभी, यहीं आपको जवाब दूंगा. मेरे मित्र कहते हैं कि पिछली बार मैंने कहा था कि मैं संविधान को जलाना चाहता हूं. पिछली बार मैंने जल्दी में इसका कारण नहीं बताया. अब जब मेरे मित्र ने मुझे मौका दिया है तो मुझे लगता है कि मुझे कारण बताना चाहिए. कारण यह है कि हमने भगवान के रहने के लिए एक मंदिर बनाया पर इससे पहले कि भगवान को वहां स्थापित किया जाता, अगर वहां एक राक्षस आकर उसमें रहने लगे तो उस उस मंदिर को तोड़ देने के अलावा चारा ही क्या है? हमने इसे असुरों के रहने के लिए तो नहीं बनाया था. हमने इसे देवताओं के लिए बनाया था. इसीलिए मैंने कहा था कि मैं इसे जला देना चाहता हूं.

2.  संविधान में अब तक हुए 105 संशोधन
 
हमारा भारतीय संविधान अन्य देशों की तरह न तो कठोर है और न ही अधिक लचीला. लेकिन निश्चित रूप से इसे संशोधित किया जा सकता है. आज तक इसमें कुल 105 संशोधन हो चुके हैं. इसमें सबसे प्रसिद्ध 1976 का 42वां संशोधन है. यह संशोधन एक आपात स्थिति में किया गया था और संविधान की प्रस्तावना में 3 शब्द जोड़कर संशोधन किया गया था. वे तीन शब्द थे Secular, Socialist, And Integrity यानी धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और अखंडता.

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3. दुनिया का सबसे लंबा और विशाल संविधान

भारतीय संविधान दुनिया में सबसे लंबा और सबसे विशाल संविधान है. आज इसमें लगभग 25 भाग, 12 अनुसूचियां और 448 अनुच्छेद हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है कि भारत एकमात्र (Sovereign and Republic) संप्रभु और गणतंत्र देश है, जिसमें यह विविधता है. इस पर 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे. इसमें 15 महिलाएं भी थीं. इनमें आरबीआई के पहले भारतीय गवर्नर सीडी देशमुख की पत्नी दुर्गाबाई देशमुख भी थीं. साथ ही, कुछ अन्य महिलाएं जैसे विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, अम्मू स्वामीनाथन, दक्षिणायनी वेलायुदन, बेगम रायसुल का संविधान निर्माण में खास योगदान रहा है.

4. हस्तलिखित है भारत का संविधान 
 
भारतीय संविधान न तो टाइप किया गया था और न ही प्रिंट किया गया था. यह पूरी तरह से कैलिग्रॉफर प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा मैन्युअली यानी हाथ से लिखा गया था. यह कैलिग्राफी और कुछ बेसिक इटैलिक स्टाइल में लिखा गया था. इसके लिए उन्हें एक विशेष दर्जा दिया गया था. उन्हें संविधान सभा में एक विशेष कमरा भी आवंटित किया गया था. इस लेखन को पूरा करने में लगभग छह महीने लगे. उन्होंने लिखने के लिए 303 नंबर की  432 निब  का इस्तेमाल किया था. ये निब बर्मिंघम से आयात की गई थी . जानने वाली बात है कि इसके लिए उन्होंने एक पैसा भी नहीं लिया. उन्होंने सिर्फ इसके हर पन्ने पर अपना और अपने दादा का नाम लिखने की अनुमति मांगी थी. यह देहरादून में पब्लिश हुआ था और सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा इसकी फोटोलिथोग्राफी की गई थी.  

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5. उधार का थैला (Bags of borrowings) है भारत का संविधान

भारत के संविधान का मूल आधार भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों को माना जाता है. इसे बनाने के लिए 10 प्रमुख देशों के अलावा उस समय मौजूद 60 से अधिक संविधानों की सहायता ली गई, इसीलिए भारतीय संविधान को Bags of borrowings यानी उधार का थैला भी कहा जाता है.

6. दुनिया के किस संविधान से क्या लिया गया?

1) अमेरिकी संविधान- मौलिक अधिकार और न्यायिक प्रणाली
2) फ्रेंच संविधान- स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व
3) दक्षिण अफ्रीकी संविधान:- भारतीय संविधान में संशोधन
4) रूसी संविधान- मौलिक कर्तव्य
5) जर्मन संविधान - केंद्र को आपात शक्तियां
6) आयरिश संविधान- नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति का चुनाव
7) आस्ट्रेलियाई संविधान- समवर्ती सूची, देश में सेवा और व्यापार की स्वतंत्रता
8) कनाडाई संविधान- केंद्र-राज्य संबंध
9) ब्रिटिश संविधान- एकल नागरिकता, संसदीय स्वरूप
10)  जापानी संविधान- संसद की सर्वोच्च शक्ति
 
7. दो भाषाओं में संविधान

भारत का संविधान दो भाषाओं अंग्रेजी और हिंदी में लिखा गया था. ऐसे में संविधान सभा के सभी सदस्यों को दो भाषाओं में हस्ताक्षर करने होते थे. संविधान की मूल प्रति संसद के पुस्तकालय में हीलियम से भरे विशेष बक्सों में रखी गई हैं. ताकि संविधान की इस मूल प्रति को लंबे समय तक के लिए सुरक्षित रखा जा सके.

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