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पैर की चोट को मुद्दा बनाने में कामयाब हो पाएंगी ममता बनर्जी? बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर सियासी माहौल गर्म

पश्चिम बंगाल सरकार के बुलेटिन के अनुसार, मुख्यमंत्री हर रोज दो घंटे के फिजियोथेरेपी सत्र से गुजर रही हैं. इस बीच यह भी स्पष्ट नहीं है कि ममता 8 जुलाई को होने वाले पंचायत चुनाव के लिए अपना अभियान जल्द ही फिर से शुरू कर पाएंगी या नहीं. लेकिन अगर वह ऐसा करती हैं, तो डॉक्टरों द्वारा चलने-फिरने की सलाह न दिए जाने की स्थिति में उन्हें व्हीलचेयर की मदद लेनी पड़ सकती है.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

बंगाल में पंचायत चुनाव हैं. इसके लिए सभी राजनीतिक दल प्रचार-प्रसार में जुटे हैं. लेकिन इसी बीच राज्य की सीएम और TMC प्रमुख ममता बनर्जी के बाएं पैर में चोट लग गई है. इस बार यह चोट उनके बाएं घुटने और पीठ में लगी है. दरअसल यह दुर्घटना 27 जून को खराब मौसम के बाद सिलीगुड़ी के पास सेवोके एयरबेस पर उनके हेलीकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान हुई थी.

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राज्य सरकार के बुलेटिन के अनुसार, इस एक्सीडेंट के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हर रोज दो घंटे के फिजियोथेरेपी सत्र से गुजर रही हैं. इस बीच यह भी स्पष्ट नहीं है कि ममता 8 जुलाई को होने वाले पंचायत चुनाव के लिए अपना अभियान जल्द ही फिर से शुरू कर पाएंगी या नहीं. लेकिन अगर वह ऐसा करती हैं, तो डॉक्टरों द्वारा चलने-फिरने की सलाह न दिए जाने की स्थिति में उन्हें व्हीलचेयर की मदद लेनी पड़ सकती है. ऐसी तस्वीर पहले भी सामने आ चुकी हैं. साल 2021 में विधानसभा चुनाव के दौरान नंदीग्राम में प्रचार करते समय अपने बाएं पैर में चोट लगने के बाद भी ममता बनर्जी ने ऐसा ही किया था.

विपक्ष ने उठाए सवाल

विपक्ष ने नंदीग्राम की घटना को हल्के में लिया था और इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने ममता की चोट के समय पर सवाल उठाया है और यहां तक ​​​​कि पूछा है कि चोट हमेशा बाएं पैर पर ही क्यों लगती है. इसका मतलब यह है कि ममता प्रचार के लिए व्हीलचेयर पर जा सकती हैं और ग्रामीण मतदाताओं की सहानुभूति आकर्षित करने की कोशिश कर सकती हैं. सीपीआई (एम) के राज्य महासचिव मोहम्मद सलीम ने भी इसी तरह के सवाल उठाए और यहां तक ​​​​कहा कि ममता को हेलीकॉप्टर की सवारी छोड़ देनी चाहिए और सड़क मार्ग से अधिक यात्रा करनी चाहिए.

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आसान नहीं यह चुनावी राह

भले ही यह अटकलों के दायरे में ही क्यों न हो, व्हीलचेयर पर सवार ममता को जनता की सहानुभूति आकर्षित करना एक ऐसा प्रस्ताव है, जिससे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को शायद कोई आपत्ति नहीं होगी. वर्तमान चुनावी मौसम में, टीएमसी के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं रहा है. उनके नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप और केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा जांच की जा रही है. विपक्ष बंगाल में कल्याणकारी परियोजनाओं के वितरण में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार का आरोप लगाता रहता है, जैसे कि जॉब कार्ड के वितरण और पीएम आवास योजना के तहत घरों के आवंटन में और मनरेगा की राशि हड़पने का भी आरोप है.

वोटर्स को लुभाने की कोशिश?

इससे पहले जून में, जिस तरह से दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर में लोग पंचायत चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के दौरान बम फेंके जाने के बावजूद सड़कों पर आए थे, उसे टीएमसी आलोचकों ने जनता के गुस्से की प्रबल लहर के रूप में देखा था. अपनी पार्टी की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए ममता ने पहले ही दोहराया है कि लोगों को उनके हाथों को मजबूत करने और उनकी कल्याणकारी योजनाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए पंचायत चुनावों में उनके नाम पर वोट देना चाहिए. उत्तर बंगाल में, उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि अगर उनसे जबरन वसूली की जा रही हो तो वे शोरशोरी मुखोमोंट्री (सीधे सीएम को) कार्यक्रम के माध्यम से सीधे उन्हें या मुख्यमंत्री कार्यालय को फोन करें.

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अंदरूनी कलह भी झेल रही पार्टी

इसके अलावा, नामांकन को लेकर टीएमसी में अंदरूनी कलह शुरू हो गई, जिसके कारण कई नेताओं को पंचायत चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना पड़ा. पार्टी ने ऐसे 56 उम्मीदवारों को निष्कासित करने की धमकी दी है. कुर्मी आंदोलन को नियंत्रित करने में राज्य सरकार की कथित मनमानी के कारण भी झटका लगने की आशंका है. राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे कुर्मी इस बात से नाखुश हैं कि पुलिस ने उनके घरों पर जिस तरह से छापा मारा, युवकों को उठाया और उन पर गैर-जमानती अपराध लगाए.

जाहिर है, पैर की चोट पर सहानुभूति बटोरने के किसी भी कथित प्रयास का मतलब विपक्ष को और अधिक हथियार देना होगा. 

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