MUDA घोटाले के सामने आने के बाद से कांग्रेस नेतृत्व की चुप्पी कर्नाटक में पार्टी की स्थिति को खतरे में डाल रही है. इस घोटाले ने राज्य सरकार को हिला कर रख दिया है. कांग्रेस के शीर्ष नेता— राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला— ने दिल्ली में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार से दो बार मुलाकात की, ताकि कोई रणनीति बनाई जा सके. इन बैठकों के बावजूद कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा मामले में कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच के बाद भी कांग्रेस का हाईकमान चुप है.
कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की इस चुप्पी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को राजनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया है. संकट को सुलझाने में माहिर माने जाने वाले सिद्धारमैया को अब इस संकट से निपटने के लिए स्थानीय समर्थन पर निर्भर रहना पड़ रहा है. हालांकि, पार्टी के अंदर कई लोग मानते हैं कि शीर्ष नेतृत्व की यह चुप्पी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा रही है और राज्य में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा रही है.
पूर्व कांग्रेस सांसद डीके सुरेश ने जनता के गुस्से का अंदेशा जताते हुए कहा कि नेताओं को विकास पर ध्यान देना चाहिए और अदालत को फैसले करने देना चाहिए. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'जनता खुश नहीं है कि अलग-अलग पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं. अगर नेता विकास पर ध्यान नहीं देंगे तो जनता सड़कों पर उतर सकती है. और, जैसा कि पहले भी हुआ है, पत्थरबाजी शुरू हो सकती है. चाहे वह कांग्रेस हो, बीजेपी हो या जनता दल. कोई नहीं बचेगा. ये हालात बन सकते हैं और मैं पहले से ही चेतावनी दे रहा हूं.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राजनीतिक रैलियों में MUDA घोटाले का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर हमला किया है. इसके बावजूद न राहुल गांधी और न ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने सिद्धारमैया का बचाव किया है या बीजेपी की आक्रामक बयानबाजी का जवाब दिया है.
इंडिया टुडे को एक वरिष्ठ कांग्रेस सूत्र ने बताया, 'इस चुप्पी के कारण एक खतरनाक धारणा बन रही है. ऐसा लगने लगा है कि सिद्धारमैया 2.0 के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार बस एक ‘लूट पार्टी’ बन गई है. पिछले ढाई महीने से पूरा मंत्रिमंडल आरोपों का बचाव कर रहा है, जबकि उनका ध्यान शासन पर होना चाहिए था.'
सूत्र ने कहा, 'पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ रहा है. हम इस लगातार बचाव की स्थिति से थक चुके हैं. इस मुसीबत के लिए मुख्यमंत्री के करीबी लोग जिम्मेदार हैं. जब सीएम ने विवादित जमीन वापस करने का फैसला किया तो हमें इसकी कोई जानकारी नहीं थी. ये हमारे लिए पूरी तरह से चौंकाने वाला था. अब डीके शिवकुमार को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए सीएम ने मैसूर दशहरा समारोह के दौरान बिना अपने शासन का जिक्र किए घोषणा कर दी कि कांग्रेस सरकार अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेगी.'
वहीं डीके शिवकुमार भी इस मुद्दे पर असामान्य रूप से चुप हैं. जिससे इस संकट से निपटने में नेतृत्व की अनिश्चितता और गहरी हो गई है. पिछले हफ्ते जब AICC अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से MUDA घोटाले पर ED की जांच के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया, 'हम समय आने पर निर्णय लेंगे.'
इस बात ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कांग्रेस नेतृत्व कब निर्णायक कदम उठाएगा. क्या वे हरियाणा चुनाव के बाद तक इंतजार करेंगे? या महाराष्ट्र चुनाव से पहले कुछ करेंगे? फिलहाल इस मामले पर स्पष्टता की कमी और शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी कांग्रेस को कर्नाटक में मिली जीत का नुकसान करा सकती है.
हाईकमान ने न सिर्फ MUDA मुद्दे पर चुप्पी साधी है, बल्कि उन कई वरिष्ठ नेताओं जैसे एमबी पाटिल, बसवराज, आरबी थिम्मापुरा और बसवराज रायरेड्डी पर भी कोई टिप्पणी नहीं की है, जिन्होंने खुलेआम मुख्यमंत्री पद में रुचि दिखाई है. जबकि घोटाले की बात से राज्य में राजनीतिक तनाव बढ़ रहा है. सिद्धारमैया के समर्थन में खड़े होने के बजाय कई नेता खुद को शीर्ष पद के लिए तैयार कर रहे हैं. इन मंत्रियों के खिलाफ किसी भी निर्देश या अनुशासनात्मक कार्रवाई की कमी यह सवाल उठाती है कि कर्नाटक में हो रहे घटनाक्रमों पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुप क्यों है.