यूपी में हिंदुओं के सामूहिक धर्मांतरण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ आज मंगलवार को सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट प्रयागराज में मौजूद यूनिवर्सिटी 'शुआट्स' के वाइस चांसलर आर.बी लाल और बाकी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करेगा. इन याचिकाओं में लालच देकर यानी प्रभाव और दबाव से धर्मांतरण करने के आरोप में दर्ज FIR रद्द करने की मांग की गई है.
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इनकी याचिका खारिज कर दी थी. शुआट्स के वाइस चांसलर और बाकी अधिकारियों ने इस आदेश को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुआट्स वीसी, अन्य के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने आरोपियों को नियमित जमानत के लिए 20 दिसंबर तक अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था.
दरअसल, सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंस (SHUATS) के कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल और निदेशक विनोद बिहारी लाल सहित आरोपियों पर इल्जाम है कि उन्होंने एक महिला को नौकरी और अन्य प्रोत्साहन की पेशकश करके ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए प्रेरित किया था.
इस मामले में यूनिवर्सिटी के वीसी, निदेशक और चार अन्य द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने टिप्पणी की थी कि कोई भी भगवान, सच्चा चर्च, मंदिर या मस्जिद इस प्रकार के कदाचार को मंजूरी नहीं दे सकता. अदालत ने कहा था कि अगर किसी ने खुद ही अलग धर्म के अनुयायी होने का विकल्प चुना है तो यह मुद्दे का एक बिल्कुल अलग पहलू है.
यूनिवर्सिटी के उप कुलपति सहित अधिकारियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 डी यानी सामूहिक बलात्कार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं. पीड़ित महिला की शिकायत के आधार पर इसी साल 4 नवंबर को हमीरपुर जिले के बेवर पुलिस स्टेशन में इस मामले की एफआईआर दर्ज की गई थी.
एफआईआर के अनुसार, पीड़ित शिकायतकर्ता महिला निम्न-मध्यम आय वर्ग से है. उसे कथित तौर पर किसी महिला ने नियमित तौर पर चर्च में आने और धर्म परिवर्तन करने पर कई तरह के प्रस्ताव दिए. यानी लालच दिया गया. पीड़िता ने दावा किया है कि इस दौरान उसका लगातार यौन शोषण भी किया जाता रहा. धर्म परिवर्तन और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए अन्य महिलाओं को लाने का दबाव भी डाला गया.
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता को SHUATS में नौकरी देने का प्रस्ताव भी दिया गया. लेकिन उसी दौरान कदाचार और अनुशासन हीनता के आरोप में 2022 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इसका बड़ी लेने के लिए महिला ने वीसी सहित विश्वविद्यालय के सभी उच्च अधिकारियों को फंसाने के लिए एफआईआर में मनगढ़ंत कहानी गढ़ी. हालांकि इन दलीलों के बावजूद अदालत ने एफआईआर रद्द करने से साफ मना करते हुए कहा कि आरोप बेहद गंभीर और भयावह हैं. आरोपी ने उसकी गरीबी और मजबूरी का फायदा उठाया. उसे धर्म बदलने का लालच दिया.
अदालत ने जोर देकर कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप घिनौने और अश्लील हैं. ये यौन शोषण की दुखद कहानी बताते हैं. हालांकि, जांच के नतीजे पर कोई निर्णय किए बगैर अदालत ने हमीरपुर के पुलिस अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से सर्कल अधिकारी रैंक के तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा अत्यधिक पारदर्शिता के साथ की गई जांच की निगरानी करने का निर्देश दिया. इसने एसपी को निष्पक्षता से जांच करने और 90 दिनों के भीतर मामले की पूरी जांच कर मजिस्ट्रेट के समक्ष रिपोर्ट सौंपने का भी निर्देश भी दिया.