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भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) पर अभी तनाव कम नहीं हुआ है. इस बीच चीन (China), भारत की सीमा से लगे क्षेत्रों में नए या अपने मौजूदा एयरबेस का विस्तार करके अपनी वायु सेना सुविधाओं को बढ़ा रहा है. खुफिया रिपोर्ट्स में कम से कम 16 स्थानों की पहचान की गई है, जिनमें लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और यहां तक कि उत्तराखंड के विपरीत, भारत-नेपाल-तिब्बत ट्राई-जंक्शन से बहुत दूर नहीं हैं.
इनमें से अधिकांश झिंजियांग प्रांत में हैं जो भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और रूस के साथ सीमा साझा करता है. यह क्षेत्र लद्दाख के साथ भी सीमा साझा करता है जो पिछले एक साल से भारत और चीन के बीच सैन्य संघर्ष का केंद्र रहा है, यह भी इस क्षेत्र में आता है. अरुणाचल प्रदेश के सामने दो नए हवाई अड्डे भी पाइपलाइन में हैं.
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भारतीय सीमाओं के करीब रखे गए तीन हवाई अड्डों में अली गुंसा, बुरांग और ताशकोर्गन हवाई अड्डे हैं. जिनको नागरिक और सैन्य दोनों ही तरह से उपयोग के लिए तैयार किया गया है.
ताशकोरगाम हवाई अड्डा
काराकोरम दर्रे के करीब ताशकोरगम पामीर में सबसे महत्वपूर्ण और नवीनतम हवाई अड्डा है. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में गिलगिट के उत्तर में स्थित है. पठार पर 10,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर मौजूद यह हवाई अड्डा भारतीय नियंत्रण में महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर के करीब है. यह इस क्षेत्र का पहला उच्च पठारी हवाई अड्डा है.
वहीं चीन के सबसे पश्चिमी हवाई अड्डे का निर्माण पिछले साल लद्दाख में तनाव के बीच शुरू हुआ था. चीन-पाकिस्तान के आर्थिक जुड़ाव के साथ लद्दाख के करीब मौजूद इस हवाई अड्डे को चीन के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक आधार माना जाता है. जिंगियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र में स्थित, यह एयरपोर्ट ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा में है. इस हवाई अड्डे के जून 2022 तक शुरू होने की उम्मीद है.
काराकोरम रेंज के उत्तर में हवाई अड्डों पर नजर
काराकोरम दर्रा लद्दाख के उत्तर में है और भारत और चीन के लिए बेहद रणनीतिक क्षेत्र है. दरअसल यह लद्दाख के भारतीय क्षेत्र और तिब्बत में चीन के झिंगियांग स्वायत्त क्षेत्र के बीच की सीमा पर पड़ता है. इसके अलावा भारतीय नियंत्रण में सबसे महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पूर्वी काराकोरम रेंज में पड़ता है.
बता दें कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) काराकोरम रेंज से होकर गुजरता है. काराकोरम दर्रे के आसपास, चीन ने कम से कम पांच हवाई अड्डों- होतान, शाचे, काशी, ताशकोर्गन (नया हवाई अड्डा आने वाला) और युतियन वांगफंग में सुविधाओं में बढ़ोतरी की है.
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लद्दाख के करीब और काराकोरम दर्रे से लगभग 250 किलोमीटर दूर होटन एयरबेस लड़ाकू विमानों की भारी तैनाती और नई सुविधाओं के साथ लद्दाख में तनाव के बाद से बेहद सक्रिय है. यहां तक कि एक राजनयिक और सैन्य वार्ता जारी रहने के बावजूद, चीन उन हवाई अड्डों पर बुनियादी ढांचे को बढ़ा रहा है जिनका उपयोग लद्दाख में कार्रवाई के लिए किया जा सकता है.
अली गुंसा हवाई अड्डा: लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड के करीब
14000 फीट की ऊंचाई पर अली गुंसा हवाई अड्डा, नागरी प्रान्त में शिकान्हे शहर के करीब है और इसे नागरी कुन्शा हवाई अड्डा भी कहा जाता है. यह लद्दाख में पैंगोंग झील से लगभग 200 किमी दूर है और कैलाश पर्वत के सामने मानसरोवर झील को भी पूरा कवर करता है. लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से निकटता होने के चलते इसे एक रणनीतिक क्षेत्र के रूप में भी देखा जाता है. यही नहीं, यह प्रथम श्रेणी हवाईअड्डों की श्रेणी में भी है.
इस हवाई अड्डे ने 2010 में परिचालन शुरू किया था, लेकिन 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम गतिरोध के समय तेजी से विस्तार देखा गया है और पिछले एक साल में लद्दाख में सैन्य तनाव के बीच अब भी लगातार विस्तार कर रहा है.
बुरांग हवाई अड्डा: भारत-तिब्बत-नेपाल ट्राई-जंक्शन के करीब
माउंट कैलाश के करीब बुरांग हवाई अड्डे को मंजूरी दी गई है और यह फर्स्ट क्लास हवाई अड्डों में से तीसरा है. गौरतलब है कि चीन सीमा ने नई दिल्ली और काठमांडू के बीच एक राजनयिक विवाद शुरू कर दिया था, जिसमें नेपाल ने इस क्षेत्र का दावा किया था.