देश में बड़ी संख्या में नारकोटिक्स के मामले आरोपियों की स्वीकारोक्ति और गवाहों के बयानों पर आधारित होते हैं. लेकिन गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद अब ऐसे मामलों में ठोस सबूतों की जरूरत होगी.
उदाहरण के लिए, रिया चक्रवर्ती और अन्य के खिलाफ चल रहे ड्रग केस में जो वर्तमान में मुंबई में जांच के दायरे में है, अब तक मोटे तौर पर केवल दवा खरीद के लेनदेन के बारे में सह आरोपी व्यक्तियों के बयानों पर ही आधारित है. अब एनसीबी को बैंक रिकॉर्ड/अन्य साक्ष्यों के माध्यम से लेनदेन के प्रत्यक्ष प्रमाणों को कोर्ट में ट्रायल से पहले पेश करना होगा.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की एक पीठ ने दो-एक के मत से गुरुवार को एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत दर्ज किए गए आरोपियों के बयानों को ट्रायल के दौरान इकबालिया बयान के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
एनडीपीएस अधिनियम की धारा 53 और 67 की व्याख्या पर एक निर्णय में न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने दो मुख्य कानूनी निष्कर्ष दिए हैं...
- एनडीपीएस अधिनियम की धारा 53 के तहत पड़ताल करने वाले अधिकारी 'पुलिस अधिकारी' हैं, जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के अर्थ के भीतर हैं, जिसके परिणामस्वरूप साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 प्रावधानों के तहत उनको दिया गया इकबालिया बयान रोक दिया जाएगा. साक्ष्य अधिनियम की धारा 25, और एनडीपीएस अधिनियम के तहत किसी अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए उस पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है.
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- एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज बयान को एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराध के ट्रायल में इकबालिया बयान के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
देश की शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए इस फैसले का मतलब है कि केस की पड़ताल के दौरान जांच अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए बयान को अब अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.