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किसी ने OBC तो किसी ने मांगा अल्पसंख्यक कोटा...महिला आरक्षण बिल के विरोध में उठे सुर

केंद्र सरकार की तरफ से सदन में महिला आरक्षण बिल को सदन में पेश किया गया. इस बिल के पेश होने के साथ ही हर बार की तरह इसे कुछ विरोधों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इस बार विरोध का रुख सिरे से नकारे जाने का नहीं है, बल्कि उसने 'नई मांग' की शक्ल ले ली है. सपा, राजद, भीम आर्मी, बसपा सहित ओवैसी ने आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग रखी है.

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महिला आरक्षण बिल के विरोध में की जा रही आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग
महिला आरक्षण बिल के विरोध में की जा रही आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग

संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण बिल को सदन के पटल पर रखा है. 27 साल पहले इस बिल को सदन में पास करा कर कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी और तब से अब तक कई बार इस बिल को विरोध की आवाजें सुननी पड़ी हैं. हालांकि इस बार उम्मीद है कि यह बिल पास होगा और कानून भी बनेगा. लेकिन विरोध तो विरोध है वो तब भी हो रहा था और अब भी हो रहा था.

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नई तरह की मांग में बदला सपा और राजद का विरोध 
सपा और राजद इस बिल के विरोध में पहले भी रहे थे. इस बार उनका विरोध एक नई मांग में बदल चुका है. राजद नेता और बिहार की पूर्व सीएम रहीं राबड़ी देवी ने आरक्षण के अंदर आरक्षण का मुद्दा उठाया. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी कुछ इसी तरह की बात की और अपनी मांग रखी. इसके बाद सिलसिलेवार ऐसी बातों का एक रेला सा सामने आने लगा. 

आरक्षण के अंदर आरक्षण अनिवार्यः राबड़ी देवी
खुद को वंचित वर्गों की पार्टी बताने वाले और वंचितों का प्रतिनिधि मानने वाले दलों के मुखिया अब आरक्षण के भीतर आरक्षण मांग रहे हैं. आइए एक नजर पहले इस बात पर डालते हैं कि किसने क्या कहा और क्या मांग की है. बात पहले राबड़ी देवी से ही शुरू करते हैं. उन्होंने कहा,  'महिला आरक्षण के अंदर वंचित, उपेक्षित,खेतिहर एवं मेहनतकश वर्गों की महिलाओं की सीटें आरक्षित हो।मत भूलो, महिलाओं की भी जाति है. अन्य वर्गों की तीसरी/चौथी पीढ़ी की बजाय वंचित वर्गों की महिलाओं की अभी पहली पीढ़ी ही शिक्षित हो रही है इसलिए इनका आरक्षण के अंदर आरक्षण होना अनिवार्य है.'

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जनसंख्या के अनुपात में मिले आरक्षणः चंद्रशेखर
भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने भी ऐसी ही मांग की. बल्कि उन्होंने X पर अपनी मांग के दो पॉइंट भी सामने रखे. उन्होंने कहा कि, विधायिका के सदनों में "महिला आरक्षण" के संदर्भ में हमारी राय ये है. 

1. एससी, एसटी वर्गों के लिए वर्तमान में आरक्षित सीटों को छोड़कर, बाकी जनरल सीटों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों की महिलाओं के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में "महिला आरक्षण के भीतर आरक्षण" होना चाहिए.
2. सरकार अगर वास्तविकता में इन वर्गों की महिलाओं का सशक्तिकरण चाहती है तो एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों की महिलाओं के लिए सभी सदनों- लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद में भी सीटों के आरक्षण की व्यवस्था लागू करे. 

चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि 'यह लागू किये बिना लोकतंत्र एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों की महिलाओं के प्रतिनिधित्व एवं सशक्तिकरण के मकसद को प्राप्त नहीं कर सकता.

मुस्लिम महिलाओं का कोटा नहीं, हम इसके खिलाफः ओवैसी
मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी मांग रखी. उनका कहना है कि, इस बिल में बड़ी खामी यह है कि इसमें मुस्लिम महिलाओं के लिए कोई कोटा नहीं है और इसलिए हम इसके खिलाफ हैं. उन्होंने कहा कि आप किसे प्रतिनिधित्व दे रहे हैं? जिनका प्रतिनिधित्व नहीं है उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए. ओवैसी ने इस बिल में मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग की है. 

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लैंगिक और सामाजिक न्याय का हो संतुलनः अखिलेश यादव
अखिलेश यादव भी कह रहे हैं कि, महिला आरक्षण लैंगिक न्याय और सामाजिक न्याय का संतुलन होना चाहिए. इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी (PDA) की महिलाओं का आरक्षण निश्चित प्रतिशत रूप में स्पष्ट होना चाहिए. 

33 नहीं 50 प्रतिशत मिले आरक्षणः मायावती
मायावती ने कहा कि हमें उम्मीद है इस बार ये बिल पास हो जायेगा, जो लम्बे समय से टलता आ रहा हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया जाता है तो हमारी पार्टी इसका भी स्वागत करेगी. उन्होंने महिला आरक्षण में ओबीसी और एससी और एसटी का कोटा अलग से निर्धारित करने की मांग की है. मायावती ने कहा 'वैसे देश की महिलाओं को लोकसभा व राज्य की विधानसभाओं में आरक्षण 33 प्रतिशत देने की बजाय यदि उनकी आबादी को भी ध्यान में रखकर 50 प्रतिशत दिया जाता है तो इसका हमारी पार्टी पूरे तहेदिल से स्वागत करेगी, जिसके बारे में भी सरकार को जरूर सोच-विचार करना चाहिए. 

महिलाओं के आरक्षण में से एससी, एसटी व ओबीसी वर्गों की महिलाओं का आरक्षण का कोटा अलग से सुनिश्चित किया जाना चाहिये अर्थात् इन्हें, यानि की एससी व एसटी को अब तक मिल रहे कोटे में शामिल ना किया जाये, वरना इन वर्गो के साथ काफी नाइन्साफी होगी.

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ऐसा नहीं किए जाने से फिर इन वर्गों की पिछड़ी महिलाओं को यहां सामान्य सीटों पर जल्दी मौका नहीं मिल पायेगा, क्योंकि जातिवादी पार्टियाँ यहाँ शुरू से ही इन वर्गों को किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ते हुये देखना नहीं चाहती है. ऐसा नहीं करने से यह भी साबित होगा कि बीजेपी व कांग्रेस पार्टी एण्ड कम्पनी के लोगों की जातिवादी मानसिकता अभी तक नहीं बदली है और ये पार्टियाँ इन वर्गों को अभी भी पिछड़ा बनाये रखना चाहती हैं.

हालांकि मायावती ने यह भी कहा कि, बसपा की इन मांगों पर सरकार द्वारा अमल नहीं किया जाता है तब भी हमारी पार्टी संसद में इस महिला आरक्षण बिल को समर्थन देगी तथा इसे पास कराने में पूरी मद्द करेगी, क्योंकि यहां सभी जाति व धर्मो की महिलाओं को हर मामले में पुरुषों की तुलना में अभी तक भी काफी पिछड़ा बनाके रखा गया है.
 

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