लोकसभा चुनाव हो गए हैं. अब हरियाणा, जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की बारी है. इसी साल महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में भी चुनाव होने हैं. इस बीच, आजतक ने देश की जनता का मूड भांपने के लिए सी-वोटर के साथ मिलकर 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे किया है. 1 लाख 36 हजार 463 सैंपल साइज लिए हैं और लोगों से विभिन्न मुद्दों समेत नेताओं की लोकप्रियता के बारे में उनकी राय जानी है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के बारे में लोगों के बीच अलग-अलग राय है. आइए जानते हैं कि किस सीएम का ग्राफ, किस फैक्टर की वजह से घट-बढ़ रहा है?
यूपी के सीएम के बारे में लोगों की क्या राय?
मूड ऑफ द नेशन सर्वे के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता घटी है. सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2023 में योगी आदित्यनाथ के कामकाज से 47% लोग संतुष्ट थे. फरवरी 2024 में यह आंकड़ा बढ़ा और 51% हो गया. अब 6 महीने में अचानक लोकप्रियता घटकर 39% फीसदी हो गई है. जबकि बेहतर मुख्यमंत्री के मामले में उन्होंने इस सर्वे में शीर्ष स्थान हासिल किया है. आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2024 में 33.2% लोगों ने उन्हें सबसे अच्छा मुख्यमंत्री माना. हालांकि, इसी साल फरवरी 2024 में उनका समर्थन 46.3% था. अगस्त 2023 में हुए सर्वे में योगी को 43% लोगों ने सबसे बेहतर मुख्यमंत्री माना था.
योगी आदित्यनाथ का ग्राफ क्यों घट और बढ़ रहा है?
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्त और स्पष्टवादी छवि ने उन्हें लोकप्रिय नेता बनाया है. उनके समर्थक उन्हें एक दृढ़ नेता मानते हैं जो राज्य के विकास और सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं. मजबूत और सख्त प्रशासक की छवि उन्हें अलग बनाती है. उन्होंने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई कठोर कदम उठाए हैं. अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और अवैध संपत्तियों पर बुल्डोजर एक्शन से चर्चा में आए हैं. हालांकि, योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली और विचारधारा को लेकर आलोचनाएं भी होती रही हैं, खासकर उनके विरोधी घेरने का कोई मौका नही छोड़ते हैं. हालांकि, यूपी में पेपर लीक एक बड़ा मुद्दा बन गया है. फरवरी में पुलिस भर्ती परीक्षा में पेपर लीक होने के आरोप लगे और री-एग्जाम की मांग उठी तो सरकार ने इस परीक्षा को रद्द करने का फैसला लिया है. इस मुद्दे पर युवाओं में नाराजगी देखने को मिली है. हालांकि, 6 महीने बाद ही सरकार फिर से एग्जाम करवा रही है. हफ्तेभर पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69000 सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा का परिणाम नए सिरे से जारी करने का आदेश दिया है. यह नाराजगी भी सड़कों पर देखने को मिल रही है. रोजगार को लेकर युवा वर्ग संतुष्ट नहीं हैं. यही मुद्दा सरकार और मुख्यमंत्री की छवि को खासा प्रभावित कर रहा है.
ममता के बारे में लोगों की क्या राय?
MOTN सर्वे के अनुसार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लोकप्रियता बढ़ी है. आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2023 में ममता बनर्जी के कामकाज से 32% लोग ही संतुष्ट थे. फरवरी 2024 में यह आंकड़ा 33% हो गया. अब 6 महीने में अचानक लोकप्रियता बढ़कर 46% फीसदी हो गई है. जबकि बेहतर मुख्यमंत्री के मामले में उन्होंने इस सर्वे में तीसरा स्थान हासिल किया है. आंकड़े बताते हैं कि कोलकाता कांड के बाद भी उनकी लोकप्रियता का ग्राफ पहले के मुकाबले बढ़ा है. अगस्त 2024 में 9.1% लोगों ने उन्हें समर्थन दिया, जो पिछले सर्वे (फरवरी 2024 में 8.4% ) से थोड़ा बढ़ा है.
ममता का ग्राफ क्यों बढ़ रहा है?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राजनीतिक ग्राफ बढ़ने के पीछे कई प्रमुख कारण हैं. ममता ने खुद को बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में स्थापित किया है. उन्होंने पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ जमकर प्रचार किया और लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी की जीत का क्रम बरकरार रखा है. यह उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के एक महत्वपूर्ण चेहरे के रूप में उभरने में मदद करता है. ममता की छवि एक मजबूत और जुझारू नेता के तौर पर भी होती है, जो अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ डटकर खड़ी होती हैं. उनकी इस छवि ने उन्हें ना सिर्फ राज्य में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी शक्तिशाली नेता के रूप में स्थापित किया है. बंगाल में लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ने के पीछे बड़ा कारण यह है कि उनकी सरकार ने राज्य में कई सामाजिक और आर्थिक विकास योजनाओं की शुरुआत की है. इनमें 'कन्याश्री योजना', 'सबुज साथी', और 'स्वास्थ्य साथी' का नाम प्रमुख है.
इन योजनाओं ने जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया है, खासकर महिलाओं और गरीब वर्गों के बीच. इतना ही नहीं, ममता ने राज्य में आपदाओं और अन्य संकटों के समय संवेदनशीलता दिखाई है. वे अक्सर जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनती और हल करने की कोशिश करती हैं, जिससे जनता के बीच उनकी छवि 'जननेता' के रूप में बनी हुई है. ममता ने सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ भी एक मजबूत स्टैंड लिया है, जिससे उन्हें राज्य के अल्पसंख्यक समुदायों का व्यापक समर्थन मिलता है.
केजरीवाल के बारे में क्या है लोगों की राय?
मूड ऑफ द नेशन सर्वे के अनुसार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता घटी है. सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2023 में केजरीवाल के कामकाज से 58% लोग संतुष्ट थे. फरवरी 2024 में यह आंकड़ा बहुत तेजी से घटा और 37% हो गया. अब 6 महीने में फिर लोकप्रियता बढ़ने लगी है और यह आंकड़ा 44% फीसदी हो गया है. जबकि बेहतर मुख्यमंत्री के मामले में उन्होंने इस सर्वे में दूसरा स्थान हासिल किया है. आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2024 में 14% लोगों ने उन्हें सबसे बेहतर मुख्यमंत्री माना.
केजरीवाल का क्यों घट गया है ग्राफ?
दिल्ली के शराब घोटाले ने आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता को खासा नुकसान पहुंचाया है. AAP के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा. केजरीवाल, जो खुद भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुखर नेता के रूप में उभरे थे, उनकी पार्टी पर लगे इन आरोपों ने उनकी विश्वसनीयता पर असर डाला है. इसके अलावा, केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच लगातार टकराव ने भी केजरीवाल की छवि को प्रभावित किया है. केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर चल रहे विवाद ने सरकार की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े किए हैं. केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से कई बड़े वादे किए थे, जिनमें से कई वादे पूरे नहीं हो पाए. इससे जनता में निराशा बढ़ी है और उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है. लोकसभा चुनावों में AAP का प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब रहा है. दिल्ली में सभी सात सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की, जिससे केजरीवाल की पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति कमजोर हुई.
जेल जाने के बाद बढ़ा केजरीवाल का ग्राफ?
शराब घोटाला जुलाई 2022 में सामने आया था. इस केस की जांच सीबीआई और ईडी कर रही है. जांच की आंच में AAP के दिग्गज नेता लपेटे में आते गए. फरवरी 2023 में मनीष सिसोदिया, अक्टूबर 2023 में संजय सिंह और फिर मार्च 2024 में खुद केजरीवाल को जेल जाना पड़ा. अन्य बड़े नेता पार्टी का बचाव करते रहे. लेकिन, वे इतना प्रभाव नहीं छोड़ पाए, जिससे पार्टी को बड़े नुकसान से बचाया जा सके. अगस्त 2023 में केजरीवाल के कामकाज से 53 फीसदी लोग संतुष्ट थे, लेकिन पार्टी के दो बड़े नेताओं की गिरफ्तारी और इस स्कैम में केजरीवाल को किंगपिन बताए जाने की खबरों ने उनकी छवि का खासा प्रभावित किया और फरवरी 2024 में उनके कामकाज को पसंद करने वालों की संख्या में जबरदस्त गिरावट आई और ये आंकड़ा 37 फीसदी पर आ गया. हालांकि, मार्च 2024 में केजरीवाल के जेल जाने के बाद भी उनकी लोकप्रियता घटना की बजाय बढ़ते देखी जा रही है. यानी एक वर्ग इस पूरे मामले को राजनीति से जोड़कर भी देख रहा है.
शिंदे के बारे में लोगों की क्या राय?
MOTN सर्वे के अनुसार, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही है. अगस्त 2024 में शिंदे के कामकाज से 35% लोग संतुष्ट हैं. जबकि 31% लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं. हालांकि, 28% लोग उनके कामकाज से असंतुष्ट हैं. यह दर्शाता है कि मुख्यमंत्री का प्रदर्शन कुछ हद तक लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा है, लेकिन सुधार की गुंजाइश अभी भी बाकी है. पूरी सरकार की बात की जाए तो आंकड़े कहते हैं कि महाराष्ट्र में 25% लोग राज्य सरकार के कामकाज से पूरी तरह संतुष्ट हैं. जबकि 34% लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं. करीब 34% जनता सरकार के काम पर असंतोष भी व्यक्त कर रही है. यह डेटा बताता है कि सरकार के प्रदर्शन को लेकर जनता में मिली-जुली राय है. इस सर्वे में यह भी पता चला कि महाराष्ट्र के लोगों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है, जिसे 32% लोगों ने प्राथमिकता दी है. इसके बाद विकास और महंगाई दोनों ही 15% लोगों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. किसानों से जुड़े मुद्दों को 13% लोगों ने प्राथमिकता दी है.
शिंदे का ग्राफ कम तेजी से बढ़ने के पीछे क्या चुनौतियां?
महाराष्ट्र में महायुति की सरकार है. एकनाथ शिंदे सीएम हैं. देवेंद्र फडणवीस बीजेपी के फेस हैं. NCP नेता अजित पवार भी सरकार का हिस्सा हैं. 2022 में शिंदे सरकार शिवसेना में विभाजन के बाद बनी, जिससे उनके नेतृत्व को स्थायित्व की चुनौती का सामना करना पड़ा. शिवसेना का एक बड़ा धड़ा अब भी उनके नेतृत्व को पूरी तरह से स्वीकार नहीं करता, जिससे उनके नेतृत्व को मजबूती मिलना मुश्किल हो रहा है. उद्धव ठाकरे लगातार मोर्चा खोले हैं. कुछ आलोचक यह मानते हैं कि शिंदे का नेतृत्व बीजेपी के अधीन है, जिससे उनकी स्वतंत्र पहचान कमजोर पड़ सकती है. शिवसेना का एक धड़ा अब भी उद्धव ठाकरे के साथ है, जो आज भी शिंदे को असली शिवसेना का नेता नहीं मानता. शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के भीतर आंतरिक विरोध और असंतोष के कारण उनकी स्थिति कमजोर हो रही है. कई विधायक और नेता उनके फैसलों से नाखुश हैं, जिससे पार्टी के भीतर स्थिरता की कमी बनी रहती है. इससे शिंदे को महाराष्ट्र की जनता के बीच अपनी पहचान और लोकप्रियता बनाने में कठिनाई हो रही है. यह संघर्ष उन्हें मजबूती से उभरने नहीं दे रहा.
महाराष्ट्र की राजनीति में भविष्य की अनिश्चितता भी शिंदे के ग्राफ को तेजी से बढ़ने से रोक रही है. शिंदे जब सरकार में आए तब उनके सामने खुद को स्थापित करने की चुनौती थी. पहले दिग्गज नेता फडणवीस से बेहतर कामकाज संभालने की चुनौती थी. फिर अजित पवार की एंट्री ने उनके सामने चुनौतियों को और बढ़ा दिया. शिंदे अपनी साफ और स्पष्ट छवि के साथ आगे बढ़े. विवादों से दूरियां बनाईं और बड़े फैसले लिए. हालांकि उनकी स्वायत्तता और निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल उठते हैं. सरकार में डिप्टी सीएम फडणवीस का सहयोग मिला और महायुति का फॉर्मूला लगभग कामयाब रहा है. ये अलायंस अब अगले चुनाव में साथ जाने के लिए तैयार है.
हेमंत के बारे में लोगों की क्या राय?
मूड ऑफ द नेशन सर्वे के अनुसार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की लोकप्रियता घटी है. सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2024 में मुख्यमंत्री के कामकाज से 25% लोग संतुष्ट हैं. 30 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो कुछ हद तक संतुष्ट हैं. जबकि 35% लोगों ने हेमंत के कामकाज से असंतुष्टि जताई है. पूरी सरकार के कामकाज की बात करें तो राज्य में 27 फीसदी लोग सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं. 37 फीसदी असंतुष्ट और 34 फीसदी जनता कुछ हद तक संतुष्ट है.
हेमंत सोरेन का क्यों घट गया है ग्राफ?
हेमंत सोरेन का सबसे बड़ा समर्थन आधार झारखंड के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों में है. उनकी सरकार ने आदिवासी अधिकारों और भूमि मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे इस समुदाय में वे लोकप्रिय हुए हैं. हालांकि, अगर ये समुदाय यह महसूस करते हैं कि उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हो रही हैं तो यह समर्थन घट सकता है. हेमंत पर खनन लीज के आवंटन में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उनके नेतृत्व की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं. केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा चल रही जांच ने उनके राजनीतिक ग्राफ को प्रभावित किया है, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हुई है. झारखंड में विकास योजनाओं और आर्थिक प्रबंधन को लेकर सरकार की कार्यक्षमता पर भी सवाल उठे हैं. बेरोजगारी, आर्थिक सुस्ती और निवेश की कमी जैसी समस्याओं से निपटने में उनकी सरकार की असमर्थता ने भी उनके राजनीतिक ग्राफ पर असर डाला है.
हेमंत के नेतृत्व वाली सरकार झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के गठबंधन पर आधारित है. इस गठबंधन में भी समय-समय पर तनाव उभरता रहता है, जिससे सरकार की स्थिरता और सोरेन की नेतृत्व क्षमता पर असर पड़ता है. सोरेन सरकार में कई ऐसी जनकल्याण योजनाएं हैं, जो उनकी लोकप्रियता को बनाए रखने में मदद कर रही हैं. इनमें पेंशन योजनाएं, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार शामिल हैं. बीजेपी जैसी विपक्षी पार्टियों का दबाव और उनके द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे भी सोरेन की सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहे हैं. अगर विपक्ष उनके खिलाफ सफलतापूर्वक प्रचार करता है तो इससे भी उनके राजनीतिक ग्राफ पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.