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जिस जल्लाद ने लाहौर में दी भगत सिंह को फांसी, उसी के बेटे ने PAK PM जुल्फिकार अली भुट्टो को लटकाया!

4 अप्रैल 1979. रात के लगभग 1.30 बज रहे थे. पाकिस्तान का रावलपिंडी शहर जब नींद के आगोश में था, उसी वक्त सेंट्रल जेल में गतिविधियां तेज थीं. कुछ ही देर में पाक के पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई. फांसी का लीवर खींचने वाले जल्लाद तारा मसीह का भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी से एक कनेक्शन था. ये वही शख्स था जिसके पिता काला मसीह ने लाहौर जेल में भगत सिंह को 48 साल पहले फांसी दी थी.

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क्रांतिकारी भगत सिंह, जुल्फिकार अली भुट्टो और फांसी की सांकेतिक तस्वीर.
क्रांतिकारी भगत सिंह, जुल्फिकार अली भुट्टो और फांसी की सांकेतिक तस्वीर.

भगत सिंह और जुल्फिकार अली भुट्टो. इतिहास के पन्नों में दर्ज दो किरदार. भगत सिंह ने लाहौर में फांसी के फंदे को चूमा. इधर घास खाकर एटम बम बनाने की जिद पालने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अपने ही मुल्क के सैन्य तानाशाहों की निगाहों पर चढ़ गए. उन्हें रावलपिंडी में फांसी पर लटका दिया गया. आज ही के दिन, ठीक 44 वर्ष पहले. 4 अप्रैल 1979 को.

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भगत सिंह और जुल्फिकार अली भुट्टो दोनों को ही पाकिस्तान में फांसी दी गई. भुट्टो की मौत की सजा 1979 में तामील हुई तो भगत सिंह को इससे 48 साल पहले 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई. इतिहास के अलग-अलग कालखंड की घटनाएं होने के बावजूद एक कड़ी इन दोनों घटनाओं को जोड़ती है. ये कड़ी है लाहौर के एक क्रिश्चयन परिवार की. 

कहानी कुछ यूं है कि मसीह सरनेम वाला ये परिवार आज भी पाकिस्तान का सरकारी जल्लाद है. इसी परिवार से निकले दो शख्स, जो रिश्ते में बाप और बेटे थे, में से एक ने भगत सिंह को फांसी दी थी तो दूसरे ने जुल्फिकार अली भुट्टो को रावलपिंडी के सेंट्रल जेल में फांसी पर लटकाया था. 

ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर से फांसी देता रहा है परिवार

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बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान की मसीह फैमिली क्रिश्चयन धर्म को मानती है. मसीह भारतीय उपमहाद्वीप में जीजस का स्थानीय नाम है. इस नाम का इस्तेमाल क्रिश्चयन समुदाय के लोग सरनेम की तरह करते हैं. 

इसी परिवार का एक सदस्य सबीर मसीह आज भी पाकिस्तान में फांसी देने के पेशे में है. 2015 में बीबीसी के साथ एक बातचीत में सबीर मसीह ने कहा था कि 'फांसी देना हमारा पारिवारिक पेशा है. मेरे पिता फांसी देते थे, उनके भी पिता फांसी देते थे. बल्कि हमारे परदादा और उनसे भी आगे की पीढ़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से ही इस काम को करते आई है.

सबीर मसीह के सबसे ज्यादा चर्चित पुरखों में दो नाम आते हैं. तारा मसीह और काला मसीह. तारा मसीह ने ही 4 अप्रैल 1979 को जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी थी. जबकि काला मसीह ने क्रांतिकारी भगत सिंह की फांली के फंदे का लीवर खींचा था.  बीबीसी के अनुसार जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी देने के लिए तारा मसीह को फ्लाइट के जरिये बहावलपुर से रावलपिंडी ले जाया गया था. क्योंकि लाहौर के जल्लाद सादिक मसीह ने 'लोकप्रिय' जुल्फिकार को फांसी देने से मना कर दिया था. 

पाकिस्तान का अखबार डॉन लिखता है कि तारा मसीह को 2 अप्रैल 1979 को ही बुलावा भेज दिया गया था. उसे सारी तैयारियां करनी थी. उसे एक सरकारी विमान ने रावलपिंडी भेजा गया. इसी विमान से भुट्टो की मौत का ऐलान करने वाला ब्लैक वारंट भी रावलपिंडी जेल के अधिकारियों को भेजा गया था. इस फांसी की सजा को देने के लिए उसे बतौर जल्लाद 25 पाकिस्तानी रुपये मेहनताना मिलना था. 

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3 अप्रैल की सुबह रावलपिंडी में तारा मसीह को कमरे में बंद कर दिया गया. उसके साथ एक पेशीमाम था जो फांसी देने के बाद इस्लामिक तौर तरीके से अंतिम संस्कार करने वाला था. 

घास खाकर एटम बम बनाने वाले जुल्फी

बता दें कि जु्ल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के मौजूदा विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के नाना और बेनजीर भुट्टो के पिता थे. वे 1973 से 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने जु्ल्फिकार अली भुट्टो का तख्तपलट कर दिया. अक्टूबर 1977 में हत्या के एक मामले में उनके खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ. इस मामले में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. 1965 के भारत पाक युद्ध के बाद उन्होंने ही पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम का एजेंडा तैयार किया था. भारत से मुकाबले की होड़ में भुट्टो ने ही वो चर्चित बयान दिया था कि भले ही पाकिस्तान घास खाएंगे लेकिन परमाणु बम जरूर बनाएंगे. 

भारत से डाह में आकर कही गई जुल्फिकार की इस भविष्यवाणी को पाकिस्तानी हुक्मरानों ने आज हकीकत में बदल दिया है.  

वे मुझे नहीं लटका सकते

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में उन पलों का जिक्र है जब जुल्फिकार को फांसी के फंदे तक पहुंचाया गया था. फांसी से एक दिन पहले यानी कि 3 अप्रैल को बेनजीर भुट्टो अपनी मां नुसरत के साथ अपने पिता से दो घंटे तक मिलीं. ये आंसुओं भरी और आखिरी विदाई की भेंट थी. इस समय तक जुल्फिकार अली को अंदाजा नहीं था कि उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में लिखा है, भुट्टो ने अपनी बेटी और पत्नी को कथित तौर पर कहा था- 'मूर्ख मत बनो, वे मुझे फांसी पर नहीं लटका सकते हैं, ये सब तमाशा है.'

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रावलपिंडी जेल और जल्लाद तारा मसीह (फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)

अगले दिन यानी बुधवार 4 अप्रैल 1979 की 1.30 बजे रात जब फांसी देने के लिए जेल अधिकारियों ने उन्हें जगाया तो भी भुट्टो आधी रात में जेल अधिकारियों की मौजूदगी का मतलब नहीं समझ पाए. उन्होंने कहा- प्लीज मुझे सोने दो.   

अल्लाह मेरी मदद कर, मैं बेकसूर हूं

जब गार्ड ने उन्हें डेथ वारंट दिखाया तो वह ये बुदबुदाते हुए बेहोश हो गए- अल्लाह मेरी मदद कर, मैं बेकसूर हूं. जेल प्रहरियों ने उन्हें झकझोर कर जगाया और नहाने के लिए कहा, लेकिन तबतक उनकी ऐसी हालत नहीं थी. आखिरकार जेल स्टाफ ने उन्हें नहलाया और पेल पीच कलर की सलवार कमीज पहनने को दी. इसके बाद उन्हें दोनों ओर से पकड़कर फांसी घर ले गए. 

यहां तारा मसीह इसी इंतजार में था. इसके अलावा जेल परिसर में उपस्थित थे, जेल सुपरिंटेंडेंट चौधरी यार मोहम्मद दुरियाना, जिला मजिस्ट्रेट सईद मेहदी, फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट बशीर अहमद खान, एसएसपी रावलपिंडी जहां जेब बरकी और मेडिकल ऑफिसर असगर हुसैन.  

वो सर्द रात, आसमान से गायब चांद और भुट्टो की फांसी

रावलपिंडी की वो रात ठंडी थी, आसमान में चांद नहीं था और बारिश भी हुई थी. कुछ ही मिनटों में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई. असगर हुसैन ने पुष्टि की कि भुट्टो की बॉडी में कोई हरकत नहीं है और वे मर चुके हैं. जेल के अंदर फौज का डेरा था और बाहर पुलिस का पहरा. फांसी के फंदे से बॉडी को उतार कर एक स्ट्रेचर के जरिए ट्रक में लोड किया गया. 

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एक तानाशाह की सनक और पाकिस्तान की बर्बादी के बीज... बेनजीर भुट्टो के पिता की जेल डायरी के आखिरी पन्ने... 

इसके बाद जेल के गेट नंबर 3 से आर्मी का एक ट्रक बाहर निकला और रावलपिंडी एयरबेस की ओर बढ़ निकला. इस एयरबेस पर पाकिस्तानी वायु सेना का मीडियम रेंज ट्रांसपोर्ट प्लेन C-130-एच लॉकहीड हर्क्यूलस इस ट्रक का इंतजार कर रहा था. रात 3 बजकर 9 मिनट पर प्लेन का इंजन स्टार्ट हुआ और रावलपिंडी की नींद में खलल पड़ गई. पाकिस्तान के पूर्व पीएम भुट्टो की बॉडी को लेकर इस विमान ने उड़ान भरी.

पाक वायुसेना के इस विमान ने लैंडिंग की सिंध के सुकुर एयरबेस पर. यहां पर भुट्टो के नजदीकी रिश्तेदार पहले ही हाजिर थे. उन्हें 4 अप्रैल की सुबह ही फोन कर इस कार्रवाई की जानकारी दे दी गई थी. सुकुर एयरबेस भुट्टो की बॉडी को उनके पारिवारिक कब्रिस्तान गढ़ी खुदाबख्श ले जाया गया जहां जुल्फिकार अली भुट्टो को खाक में सुपुर्द कर दिया गया. इस दौरान बेनजीर और उनकी मां पाकिस्तान सरकार की गिरफ्तारी झेल रही थीं और वे अपने अजीज को आखिरी अलविदा नहीं कर पाईं. 

काला, तारा मसीह और भगत-जुल्फिकार की फांसी का कनेक्शन

भगत सिंह पर गहन शोध करने वाले पंजाब कैडर के आईएएस रवीन्द्र कुमार कौशिक ने भारत-पाकिस्तान में रखे गए ऐसे दस्तावेजों को पलटा जो लाहौर और पंजाब के अभिलेखागारों में धूल की परतों के नीचे कई किस्से दबाए हुए थे. अपने अध्ययनों के आधार पर आर के कौशिक कहते हैं कि जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ाने वाला तारा मसीह उसी काला मसीह का बेटा था जिसने लाहौर सेंट्रल जेल में क्रांतिकारी भगत सिंह को फांसी दी थी. 

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जिस सबीर मसीह की चर्चा हमने ऊपर की है, उसने भी बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि उसके परदादा काला मसीह ने भगत सिंह को फांसी दी थी. 

हालांकि सबीर मसीह के इस दावे पर एक काउंटर क्लेम भी है. भारत में कई सालों से अपराधियों को फांसी पर चढ़ाने वाले पवन जल्लाद का दावा है कि भगत सिंह को फांसी उनके पुरखे राम रक्खा ने दी थी. मेरठ में रहने वाले इस परिवार के कल्लू जल्लाद ने रंगा-बिल्ला और इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाया था. 

aajtak.in से बातचीत में आईएएस आरके कौशिक ने कहा कि उनके अध्ययनों से प्रमाणित होता है कि काला मसीह ने ही भगत सिंह को फांसी दी थी और उसके बेटे तारा मसीह ने जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाया था. 

23 साल 6 महीने और 04 दिनों तक इस दुनिया में मौजूद रहने वाले भगत सिंह की जिंदगी के आखिरी कुछ घंटों की चर्चा करते हुए आरके कौशिक कहते हैं कि अंग्रेजों को बदले का इतना डर था कि वे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने में शामिल अफसरों का नाम सार्वजनिक नहीं कर रहे थे. 

पंजाब के तत्कालीन गवर्नर ज्योफ्री मोंटमोरेंसी और एसपी खान बहादुर शेख अब्दुल अजीज पर दो जानलेवा हमले हो चुके थे. भगत सिंह के मामले में अब्दुल अजीज ही इंवेस्टिगेंटिंग ऑफिसर थे. 

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दर्द से कराह रहे पंजाब के गवर्नर ने लॉ एंड ऑर्डर की समीक्षा की

आरके कौशिक ने एक लेख में उन परिस्थितियों का वर्णन किया है जिसमें भगत सिंह को फांसी दी गई. लाहौर के गवर्नर हाउस में 16 मार्च 1931 को राज्य के कानून व्यवस्था की समीक्षा के लिए एक मीटिंग हुई. इस मीटिंग की अध्यक्षता कर रहे गवर्नर ज्योफ्री मोंटमोरेंसी उस दिन भी दर्द से कराह रहे थे. उन्हें कुछ ही दिन पहले क्रांतिकारी हरि किशन तलवार ने गोली मारी थी. तब ज्योफ्री पंजाब यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह से बाहर निकल रहे थे. 

मीटिंग में पंजाब के मुख्य सचिव डीजे ब्यॉड, गृह सचिव सीएमजी ऑग्लिवी, आईजी चेरिस स्टीड, आईजी प्रिजन एफए बार्कर, लाहौर के डिप्टी कमिश्नर लेन रॉबर्ट्स, एसएसपी हैमिल्टन हार्डिंग समेत कई बड़े अधिकारी मौजूद थे. इस मीटिंग में लाहौर षडयंत्र केस में अंग्रेजों की कोर्ट से दोषी करार दिए गए तीन भारतीय क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को दी जाने वाली फांसी की तैयारियों पर चर्चा हुई. गवर्नर ने तैयारियों पर संतोष जताया.

22 मार्च की रात और लाहौर में धूल भरी आंधी

22 मार्च की रात को लाहौर में धूल भरी आंधी आई थी. ये आंधी मानो कुछ ही घंटे में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए आने वाले अपशकुन का संकेत थी. 23 मार्च की सुबह होते-होते तूफान थम गया था. लाहौर सेंट्रल जेल के अधिकारियों को ऊपर आदेश आया था- भगत, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को 11 घंटे के लिए पहले फांसी दी जानी थी. 

सीनियर जेल वार्डन छत्तर सिंह ने ब्रितानिया हुकूमत का ये फैसला बेमन से भगत, सुखदेव और राजगुरु को बता दिया. जेल के अंदर गहमागहमी बढ़ गई, अधिकारियों को अंदेशा था कि अगर ये खबर लीक हुई तो जनता बगावत पर उतर सकती है. 

शहर लाहौर की वो शाम

दोपहर गुजर गया, दिन ढलने लगा, शहर लाहौर की कयामत की शाम मिनट मिनट कर पास आने लगी. गवर्नर और एसपी पर हुए हमले के बाद अधिकारियों को अपनी ही सुरक्षा की चिंता सता रही थी.   

शाम के वक्त अफसरों और अंग्रेज कारिदों का बड़ा अमला जेल के बाहर और भीतर कैंप किए हुए था. जेल के बाहर का प्रबंध लाहौर के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट शेख अब्दुल हमीद के हाथों में था. उनके साथ थे सिटी मजिस्ट्रेट राय साहिब लाला नाथू राम, कसूर के डीएसपी सुदर्शन सिंह, लाहौर सिटी के डीएसपी अमर सिंह, लाहौर पुलिस मुख्यालय के डीएसपी जेआर मॉरिस और सैकड़ों सशस्त्र पुलिसकर्मी. 

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शाम के लगभग 7.30 बज रहे थे. जेल के अंदर मौजूद अधिकारियों में से थे स्टीड, रॉबर्ट्स, बार्कर, हार्डिंग, जेल सुपरिटेंडेंट मेजर पीडी चोपड़ा और डिप्टी जेल सुपरिटेंडेंट  खान साहिब मोहम्मद अकबर. वहां पर जल्लाद काला मसीह पहले से ही मौजूद था. उसे लाहौर के शहादरा से बुलाया गया था. इंकलाबी नारों के साथ तीनों नौजवान फांसी के फंदे पर झूल गए. काला मसीह ने लीवर खींचा. आरके कौशिक के अनुसार भगत सिंह को सबसे पहले फिर राजगुरु और सबसे आखिर में सुखदेव को फांसी दी गई. 

सिविल सर्जन लेफ्टिनेंट कर्नल सिविल सर्जन ने तीनों बॉडी का परीक्षण किया और उनके मृत होने की घोषणा की. ब्रिटिश राज में जेल अधिकारी का पद बड़ा माना जाता था. जेल सुपरिण्टेण्डेण्ट और दूसरे अधिकारी इंडियन मेडिकल सर्विस से होते थे और जेल में नियुक्ति से पहले उन्हें अंग्रेजों की इंडियन आर्मी में काम करना पड़ना था. 

जेल के परकोटों से फुसफुसाती आवाज की तरह निकली खबर

कहा जाता है कि भगत सिंह को फांसी की खबर जेल के परकोटों से फुसफुसाती आवाज की तरह निकली और गर्जना की तरह पूरे शहर में फैल गई. जेल के गेट पर लोग उमड़ पड़े. भगत, सुखदेव राजगुरु जिंदाबाद के नारों ने लाहौर की नींद को छीन ली और छीन लिया अंग्रेजों के गोर-भूरे अफसरों का चैन. जेल के पीछे की दीवार तोड़ी गई और रात के लगभग 10 बजे इसी चोर दरवाजे से डीएसपी सुदर्शन सिंह, डीएसपी (सिटी) अमर सिंह तीन ट्रकों में ब्लैक वाच रेजिमेंट के सैनिकों के साथ इन तीन कामरेडों का पार्थिव शरीर लेकर सतलज नदी की ओर निकले. 

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