प्राचीन काल में ऋषि चार्वाक ने कहा था- यदा जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा, घृतं पिबेत् यानी जब तक जीओ सुख से जीओ, उधार लो और घी पीयो. आज के महंगाई के दौर में चार्वाक ये ना कह पाते. क्योंकि अब ना तो सुख से और ना ही घी पीने के लिए बल्कि सिर्फ जीने के लिए आम आदमी कर्ज ले रहा है. आम आदमी अपनी जिंदगी की जरूरतों में खुद कटौती करके महंगाई की परिस्थिति के अनुकूल खुद को बना रहा है. हालत ये है कि सब्जी महंगी होती है तो किलो भर की जगह आधा किलो खरीदकर आम आदमी एडजस्ट करता है. पेट्रोल-तेल की महंगाई एडजस्ट करने को आम आदमी ने किराना, स्वास्थ्य के खर्च में खुद कटौती कर ली है. देखिए ये पूरी रिपोर्ट.