चारों और दौड़ लगी हैं... सुबह से शाम हर ओर, हर कोई बस भागा जा रहा है... नहीं पता किस लिए ...ज़िंदगी इसी उधेड़बुन में बीती जा रही है. लेकिन इस सब के बीच जो पीछे छूटा जा रहा है.. वो अनमोल है. मेरा गांव , संकल्न है उन यादों, उन पलों का जो जिंदगी की भागदौड़ में बहुत पीछे छूट गए. आज 'मेरा गांव' के इस गुलदस्ते से कविता 'नींद कहां अब आती है'. सुनिए आसिफ खान की आवाज़ में उनकी कविता - नींद कहां अब आती है.