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जान हथेली पर लेकर ट्रैक्टर-ट्रॉली और डाले में सफर करने को क्यों मजबूर हो रहे लोग?

जान हथेली पर लेकर ट्रैक्टर-ट्रॉली और डाले में सफर करने को क्यों मजबूर हो रहे लोग?

आपने ध्यान दिया होगा, चुनावी रैली के वक्त दूरदराज के इलाकों से लोगों को बसों में बैठाकर शहरों में लाया जाता है. यही सक्रियता कभी बहुसंख्यकों के देश में पर्व, त्योहार के वक्त नहीं दिखती. जब मंदिरों के दर्शन के लिए गांवों से लोग ट्रैक्टर, ट्रॉली या दूसरे सामान ढोने वाले वाहन में कुछ रूपए देकर असुरक्षित तरीके से बैठकर निकलते हैं. हादसा होता है तो सरकार मालवाहक वाहन में सवारी ना बैठाने के लिए सख्ती कर देती है.

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