1984 में हुए इस हादसे से अब भी यह शहर उबर नहीं पाया है. हादसे के दिन सैकड़ों लोगों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया.
गैस रिसाव के आठ घंटे बाद भोपाल को ज़हरीली गैसों के असर से मुक्त मान लिया गया था. हालांकि इसका असर अभी भी समाप्त नहीं हुआ है. परिजन मुआवजे के लिए और आने वाली पीढ़ी अपने पूर्वजों की दु:खद यादों को लिए जी रहे हैं.
भोपाल गैस त्रासदी ने हजारों परिवारों को समाप्त कर दिया था. शहर के दो अस्पतालों में इलाज के लिए आए लोगों के लिए जगह नहीं थी.
जहरीली गैस के कारण हांफते और आंखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल पहुंचे तो वहां भी डॉक्टरों को यह मालूम नहीं था कि इसका क्या इलाज हो सकता है.
भोपाल गैस त्रासदी जैसे किसी हादसे से निपटने के लिए कोई तैयार नहीं था. यहां तक कि कारखाने का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बेअसर रहा जबकि उसे बिना किसी देरी के चेतावनी देना था.
कारखाने के आसपास के अधिकांश लोग नींद की अवस्था में ही मौत का शिकार बने. लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसतन तीन मिनट लगे.
गैस रिसाव के कारण कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती सबसे ज्यादा प्रभातिव हुए थे.
यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी में टैंक नंबर 610 में ज़हरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के पानी से मिल जाने के कारण करीब 40 टन जहरीली गैस का रिसाव हुआ था.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी. मौतों का ये सिलसिला बरसों चलता रहा.
3 दिसंबर की सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे.
भोपाल में गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है. यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली ज़हरीली गैस ने हज़ारों लोगों की जान ले ली थीं.
यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली गैस से तीन हजार से ज्यादा लोगों ने दम तोड़ दिया था और पांच लाख से ज्यादा लोग बीमार पड़ गए थे.
भोपाल गैस त्रासदी से कालकलवित हुए लोगों के परिजनों को अभी तक सही तरीके से मुआवजा नहीं मिला है. इस घटना के विरोध में प्रदर्शन करते पीडि़तों के परिजन.
भोपाल गैस त्रासदी के पच्चीस साल पूरे हो गए हैं. आज से ठीक 25 साल पहले 3 दिसंबर 1984 को हुई इस दुखद त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था.