घोटालों और भ्रष्टाचार को लेकर पहले से ही हमले झेल रही सरकार एक बार फिर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) के निशाने पर आ गई.
कैग ने शुक्रवार को संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोयला खदानों के आवंटन में यदि प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया अपनाई गई होती तो सरकारी खजाने को 1.85 लाख करोड़ रुपये (37 अरब डॉलर) की अतिरिक्त आमदनी हुई होती.
आयकर और सीमा शुल्क क्रमश: 1.95 लाख करोड़ रुपये और 1.86 लाख करोड़ रुपये अनुमानित हैं.
कैग ने संसद में पेश की गई इस रिपोर्ट में कहा है कि ऐसा, कोयला खदान आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के कारण हुआ है.
यह प्रक्रिया जून 2004 में शुरू होनी थी, लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें भारी विलम्ब हुआ.
बहुप्रतीक्षित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच 31 मार्च, 2011 तक विभिन्न सरकारी और निजी पक्षों को 194 कोयला खदानें आवंटित की गईं., जिनमें लगभग 4,444 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार कोयला खदानों के आवंटन के लिए जल्द नीलामी का निर्णय लेकर कुछ हदतक इस वित्तीय लाभ को अर्जित कर सकती थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश सिफारिशें राज्य सरकारों की ओर से आई थीं.
यह रिपोर्ट अब भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के पास जाएगी.
कैग ने रिपोर्ट में कोयला खदानों को प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिए आवंटित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की भी सिफारिश की है, ताकि प्रक्रिया में निष्पक्षता व पारदर्शिता आए.
कैग की रिपोर्ट में उन 25 कंपनियों के नाम भी लिए गए हैं, जो कोयल खदान आवंटन में लाभर्थी रही हैं.
इनमें एस्सार पॉवर, जिंदल स्टील एंड पॉवर, हिंडालको एवं टाटा पॉवर, डीबी पॉवर, अदानी पॉवर, सीईएससी, मोनेट इस्पात, रुंगटा माइंस, मुकुंद एवं टाटा स्टील शामिल हैं.
2008 में नई निजी कम्पनियों को आवंटित किए गए दुर्लभ दूरसंचार स्पेक्ट्रम पर दो वर्ष पहले संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था.
भविष्य में निजी कम्पनियों व सरकारी कम्पनियों को कोयला खदान आवंटन के तौर-तरीकों पर अपने सुझाव में सीएजी ने कहा है कि इसके लिए विदेशी निवेश सम्वर्धन बोर्ड की तर्ज पर एक अधिकार प्राप्त समूह का गठित किया जाना चाहिए.
कैग की हालांकि, इससे पहले जारी मसौदा रिपोर्ट में कोयला खानों के आवंटन में 10.7 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया था लेकिन संसद में पेश अंतिम रिपोर्ट में इसे घटाकर 1.85 लाख करोड़ रुपये बताया गया है.
जुलाई 2004 के बाद देशभर में 142 कोयला खानों का आवंटन किया गया.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जो कि इस दौरान काफी समय तक कोयला मंत्रालय का कामकाज देख रहे थे, उनके खिलाफ कैग की कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं आई और पूरा दोष इसके लिये गठित अधिकारियों की जांच समिति पर गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला आवंटन प्रक्रिया में ‘पारदर्शिता, वस्तुनिष्ठता और प्रतिस्पर्धा का अभाव रहा.’
कोयला खान आवंटन में लाभ पाने वाली कंपनियों में एस्सार समूह, जिंदल, अडाणी, आर्सेलर मित्त और टाटा स्टील शामिल हैं.
विपक्ष ने कैग रिपोर्ट का फायदा उठाने में देरी किये बिना प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग कर डाली.
बीजेपी ने कहा है कि प्रधानमंत्री को कोयला ब्लॉक आवंटन में हुये नुकसान के लिये नैतिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जवाबदेही स्वीकार करते हुये इस्तीफा देना चाहिये.
सरकार ने हालांकि, कैग रिपोर्ट को बकवास बताया. कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि वह कैग की गणित से सहमत नहीं हैं जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा कि लेखापरीक्षक संविधान प्रदत्त अधिकार क्षेत्र में रहकर काम नहीं कर रहा है.
कैग ने रिलायंस पावर लिमिटेड को उसकी सासन अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजना के लिये आवंटित कोयला खानों के अतिरिक्त कोयले का इस्तेमाल दूसरी परियोजनाओं में करने की अनुमति दिये जाने की भी आलोचना की है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कंपनी को 29,033 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला ब्लाक आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठता लाने का काम विभिन्न स्तरों पर लंबित होता चला गया.
यह प्रक्रिया जून 2004 में शुरु हुई थी और अभी तक पूरी नहीं हो पाई. सात साल बाद भी इसे पूरा नहीं किया गया.
इस बीच मार्च 2011 तक विभिन्न सरकारी और निजी कंपनियों को 194 कोयला खानें आवंटित कर दी गई.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जो कि इस दौरान काफी समय तक कोयला मंत्रालय का कामकाज देख रहे थे, उनके खिलाफ कैग की कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं आई और पूरा दोष इसके लिये गठित अधिकारियों की जांच समिति पर गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला आवंटन प्रक्रिया में ‘पारदर्शिता, वस्तुनिष्ठता और प्रतिस्पर्धा का अभाव रहा.’