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भारत

तस्वीरों में जानिए पी ए संगमा को

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पीए संगमा ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से इस्तीफ़ा दे दिया है और मेघालय विधानसभा की सदस्यता भी छोड़ दी है.  इस बार संगमा और यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के बीच राष्ट्रपति पद के लिए सीधा मुक़ाबला होगा.
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पूर्णो अगितोक संगमा का जन्म 1 सितम्बर, 1947 को पूर्वोत्तर भारत में मेघालय राज्य के रमणीक पश्चिमी गारो हिल जिले के चपाहटी गांव में हुआ था. मेघालय के एक छोटे से आदिवासी गांव से जीवन की साधारण शुरुआत करके, पीए संगमा अपनी योग्यता, दृढ़निश्चय और मेहनत के बल पर लोक सभा के अध्यक्ष के प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे.
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मिलनसार, स्नेही, स्वभावतः अनौपचारिक, हाजिर जवाब और हंसमुख किंतु सभा के सुचारू कार्यसंचालन को सुनिश्चित करते समय अत्यंत दृढ़ रहने वाले, संगमा का व्यक्तित्व ऐसा आकर्षक है कि उन्हें लोक सभा में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों का पूरा-पूरा सहयोग मिला.
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सेंट एंथोनी कॉलेज से स्नातक डिग्री लेने के पश्चात् वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के लिए असम में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय गए. बाद में उन्होंने विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

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संगमा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. राजनीति में आने से पहले उन्होंने प्राध्यापक, अधिवक्ता और पत्रकार के रूप में भी कार्य किया. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में किया और वह पार्टी के पदों पर तेजी से आगे बढ़ते गए.1974 में वह मेघालय प्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव बने. वह कुछ समय के लिए इसके उपाध्यक्ष भी रहे.
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पार्टी की विचारधारा के प्रति उनकी वचनबद्धता को समझते हुए और उनके संगठनात्मक कौशल को ध्यान में रखते हुए, उन्हें 1975 में मेघालय प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया गया और वह 1980 तक इस पद पर रहे.
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जिस समय 1977 में संगमा राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य पर उभरे, उस समय देश में छठे आम चुनाव की तैयारी चल रही थी. वह अपने गृह राज्य में तुरा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए.
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30 वर्षीय संगंमा ने संसद में ऐसे समय प्रवेश किया जब देश में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हो रहा था और कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहली बार केंद्र में चुनावों में हार के बाद सत्ता से हट रही थी. उभरते हुए सांसद के लिए अपनी छवि बनाने का यह एक सुअवसर था और प्रखर वक्ता संगमा ने एक ईमानदार तथा अध्यवसायी सदस्य के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करने के लिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाया.
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पार्टी संगठन में संगमा द्रुतगति से आगे बढ़े और 1980 में केद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने से पूर्व वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव बने तथा नवंबर 1980 में उद्योग मंत्रालय में उपमंत्री बनाए गए. दो वर्षों के बाद वह वाणिज्य मंत्रालय में उपमंत्री बने और दिसम्बर 1984 तक उस पद का कार्यभार संभाला.
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1984 के आम चुनावों में संगमा आठवीं लोक सभा के लिए पुनः निर्वाचित हुए. उनकी क्षमताओं और कांग्रेस की विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा को पहचानते हुए श्री राजीव गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया और इस बार उन्हें वाणिज्य तथा आपूर्ति का प्रभार देते हुए राज्य मंत्री बनाया. कुछ समय के लिए उन्होंने गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री का कार्यभार भी संभाला.
अक्तूबर, 1986 में, संगमा ने श्रम मंत्रालय के राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार संभाला.
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संगमा को पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र, विशेषकर अपने गृह राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों की संपूर्ण जानकारी थी. यद्यपि 1977 से वह दिल्ली में रहते आ रहे थे और राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्त थे, फिर भी उन्होंने स्वयं को अपनी जड़ों से कभी अलग नहीं किया और अपने राज्य की राजनीतिक गतिविधियों की सर्वदा जानकारी रखी.
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राज्य की राजनीति की इसी संपूर्ण जानकारी के कारण कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने 1988 में मेघालय में उनकी सेवाएं लीं. उस वर्ष वह मेघालय की राजनीति में वापस आए और वहां के मुख्यमंत्री बने. अपने राज्य के राजनैतिक इतिहास के उथल-पुथल के दौर में उन्होंने 48 सदस्यों वाली साझा सरकार का नेतृत्व किया. वर्ष 1990 में उनकी सरकार द्वारा त्याग पत्र दिए जाने के बाद संगमा राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता बने.
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1991 के आम चुनावों में वह लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए और इस बार तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिंह राव ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया. संगमा को कोयला मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया.
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जनवरी, 1993 में उन्होंने श्रम मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला. फरवरी, 1995 में संगमा को कैबिनेट स्तर का मंत्री बनाया गया. इस स्तर पर पहुंचनेवाले वह पहले आदिवासी व्यक्ति थे. सितंबर, 1995 में संगमा ने सूचना और प्रसारण मंत्री का पदभार संभाला तथा ग्यारहवीं लोक सभा के लिए आम चुनाव होने तक वह उस पद पर बने रहे.
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संगमा 1996 के आम चुनावों में तुरा संसदीय क्षेत्र से पांचवी बार लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए. 23 मई, 1996 को सभी पार्टियों ने दलगत भावना से ऊपर उठते हुए उन्हें सर्वसम्मति से 11वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया. भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला.
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वर्ष 1999 में कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर पी.ए. संगमा ने नेशनल कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. शरद पवार के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी से नजदीकी बढ़ जाने के कारण पी.ए. संगमा ने अपनी पार्टी का ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी में विलय कर नेशनलिस्ट तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की.
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2008 के मेघालय विधानसभा चुनावों में भाग लेने के लिए उन्होंने चौदहवीं लोकसभा से इस्तीफा दे दिया.
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10 अक्टूबर, 2005 को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के सदस्य के तौर पर लोकसभा पद से इस्तीफा देने के बाद पी.ए. संगमा फरवरी 2006 में नेशनल कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर संसद पहुंचे.
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