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भारत

मानसून में कामाख्या देवी मंदिर में अंबुबासी मेले के रंग

मानसून में कामाख्या देवी मंदिर में अंबुबासी मेले के रंग
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मानसून के समय कामाख्या देवी मंदिर में अंबुबाची मेला लगता है. इस मेले को अंबुबासी फेस्ट‍िवल के नाम से भी जाना जाता है.
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साल 2015 में अंबुबाची मेला 22 जून से 26 जून तक चला.
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इस मेले में दूर-दूर से तांत्रिक पहुंचते हैं और कामाख्या देवी पूजा करते हैं.
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माना जाता है कि अंबुबाची मेले के दौरान मां कामाख्या माहवारी के दौर से गुजरती हैं और इसलिए तीन दिन तक मंदिर बंद रहता है और मंदिर में कोई पूजा नहीं होती है. इस दौरान इस पवित्र स्थान पर पुजारियों का भी जाना प्रतिबंध है. तीन दिन के बाद कामख्या देवी को स्नान करा कर तैयार किया जाता है, जिसके बाद ही भक्त मां का दर्शन कर पाते हैं.
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तीन दिन पूरे होते ही मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की भीड़ कपाट खुलने के इंतजार में खड़ी रहती है.

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कई तांत्रिक तो इस समय ही लोगों के सामने आते हैं.
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मीडिया और विदेशी लोगों के लिए ये मेला आकर्षण का केंद्र होता है.
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इस मेले में तांत्रिकों के अद्भुत रंग देखने को मिलते हैं और मेले की तस्वीरें दुनियाभर के मैग्जीन में छपती हैं.
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इस मेले में दुनियाभर से साधु और तांत्रिक पहुंचते हैं और तंत्र साधना करते हैं.
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तांत्रिक और साधु यहां पहुंचकर तपस्या करते हैं.
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दुनिया भर में लोगों को अचंभित करने वाला यह मंदिर भक्तों के लिए अपार श्रद्वा का स्थान है.
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अंबूबाची मेले के दौरान मंदिर के आसपास का पूरा इलाका साधुमय हो जाता है.
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हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कामख्या भगवान शिव की पत्नी हैं.
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इसमें से एक हिस्सा कामरुप में गिरा था. जहां वर्तमान में मां कामाख्या का मंदिर है.
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जब शिव अपनी पत्नी सती को लेकर तांडव कर रहे थे तो सती के शरीर के 51 अंग जगह-जगह गिरे थे.
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