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भारत

गुरु अटल और शिष्य मोदी: जानें कैसे गुरु की जगह ली शिष्य ने

गुरु अटल और शिष्य मोदी: जानें कैसे गुरु की जगह ली शिष्य ने
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गुरु और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की एक तरह से कार्बन कॉपी हैं. उनके प्रभावशाली भाषण हों या संयुक्त राष्ट्र में जाकर हिन्दी में बोलना हो, हर जगह मोदी अपने गुरु के पांव में पांव रखते नजर आते हैं. दोनों ही नेता मेहनतकश हैं और पार्टी के अंदर उनकी स्वीकार्यता भी लगभग एक जैसी ही है. वाजपेयी की ही तरह मोदी भी स्वदेशी के झंडाबरदार हैं.
गुरु अटल और शिष्य मोदी: जानें कैसे गुरु की जगह ली शिष्य ने
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संघ के प्रचारक रहे मोदी के मेहनतकश और ऊर्जावान व्यक्तित्व से अटल भी काफी प्रभावित थे.
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मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब केंद्र  में भी बीजेपी की सरकार थी. एक नए मुख्यमंत्री के लिए यह बड़ी मदद साबित हुई.
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वाजपेयी कमाल के वक्ता थे, मोदी भी अपनी बोलने की शैली के कारण ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे.
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वाजपेयी नीतियों के जानकार थे, विशेषकर विदेश नीति के मामले पर तो उनकी गहरी पकड़ थी.
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गुजरात दंगों के बाद मोदी पर काफी दबाव था. वाजपेयी खुद चाहते थे कि मोदी इस दंगे की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दें.
गुरु अटल और शिष्य मोदी: जानें कैसे गुरु की जगह ली शिष्य ने
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इस्तीफे की बात को लेकर पार्टी और अटल के सहयोगी आडवाणी बिल्कुल अलग राय रखते थे. सबने माना की मोदी को पद पर बने रहना चाहिए.
गुरु अटल और शिष्य मोदी: जानें कैसे गुरु की जगह ली शिष्य ने
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मोदी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भी अटल का ही था. मोदी जब श्मशान में एक अंतिम संस्कार के लिए गए हुए थे तब वाजपेयी ने उन्हें फोन कर मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के लिए कहा था.
गुरु अटल और शिष्य मोदी: जानें कैसे गुरु की जगह ली शिष्य ने
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वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देने वाले पहले शख्स थे, सुखद आश्चर्य यह है कि इसके बाद मोदी ने भी इसी साल संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया.
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अटल ने 23 पार्टियों के गठजोड़ से सरकार चलाई जिसमें उनपर कई तरह के दबाव थे. मोदी इस मायने में काफी आरामदायक स्थिति में हैं क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत है.
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