ओडिशा के धार्मिक शहर पुरी में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वर्ष में एक बार निकलने वाली रथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा.
एक अधिकारी ने बताया कि यात्रा का हिस्सा बनने के लिए लाखों श्रद्धालु इकट्ठे हो गए हैं.
मंदिर प्रशासन के जनसम्पर्क अधिकारी लक्ष्मीधर पूजापांडा ने बताया कि देवताओं को मंदिर से बाहर रथों पर लाने वाली पहानडी के नाम से प्रचलित देवताओं की आनुष्ठानिक यात्रा सुबह 9.35 बजे शुरू हुई.
अहमदाबाद शहर के जमालपुर इलाके में स्थित 400 साल पुराने जगन्नाथ मंदिर से सुबह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हो गई.
परंपरा के मुताबिक, मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रथयात्रा की ‘पहिंद विधि’ संपन्न की जिसके बाद भगवान जगन्नाथ, भगवान बलदेव और उनकी बहन देवी सुभद्रा की सालाना रथयात्रा शुरू हुई. पहिंद विधि में भगवान जगन्नाथ के रथ के लिए रास्ते की प्रतीकात्मक तौर पर सफाई की जाती है.
दशकों पुरानी परंपरा के अनुसार, मुख्यमंत्री ने मंदिर परिसर से भगवान जगन्नाथ का रथ खुद खींच कर बाहर निकाला. मुख्यमंत्री मोदी ने कहा ‘पुरी के बाद अहमदाबाद की रथयात्रा देश में और दुनिया भर में आकर्षण का केंद्र है.’
ओडिशा के पुरी में शुरू हुई मुख्य रथयात्रा से इतर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने गुरुवार को कोलकाता में रस्सी खींचकर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की वार्षिक रथयात्रा का शुभारंभ किया.
इंटरनेशल सोसाइटी फॉर कृष्णा कंशसनेस (इस्कॉन) द्वारा आयोजित रथयात्रा दक्षिणी कोलकाता के पार्क सर्कस मैदान से शुरू होकर शहर के मध्य हिस्से के ब्रिगेड पैरेड ग्राउंड में पहुंची. शोभायात्रा में तीन रथों पर देवताओं की मूर्तियां रखी गई थीं. इस वर्ष की रथयात्रा की थीम थी 'रूस में हरे कृष्णा आंदोलन'. इस वार्षिक रथयात्रा में देवताओं को अपने घर से मौसी के घर पहुंचाने की प्रथा है.
उड़ीसा के पूर्वी समुद्रतट पर स्थित जगन्नाथपुरी के गुंडीचा मंदिर में श्रीजगन्नाथजी का अधूरा स्वरूप दिखाई देता है, जो वास्तव में हमें पूर्णता की प्रेरणा देता है. लौकिक दृष्टि से भले ही उनका विग्रह [मूर्ति] अधूरा दिखता हो, परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से वे पूर्ण परब्रहृम है. उनके इस विलक्षण रूप से प्रेरणा मिलती है कि हमें ईश्वर ने जो कुछ भी दिया है, उसके संपूर्ण सदुपयोग से हम सफलता प्राप्त कर सकते है.
भगवान जगन्नाथ का श्रीविग्रह [मूर्ति] लकड़ी का बना है तथा अधूरा दिखता है. उनके हाथ पूरे नहीं बने है. मुखमंडल भी पूर्णतया निर्मित नहीं है. सामान्यत: मान्यता के अनुसार अंगहीन देव-प्रतिमा की पूजा नहीं होती है, परंतु श्रीजगन्नाथजी इसके अपवाद है.
तीनों भगवान की यात्रा शुरू होने से पहले श्रृंगार किया जाएगा. सुबह मंजन कराने से लेकर जीभी तक भगवान को कराई जाती है. भगवान खादी और सिल्क के वस्त्र पहनते हैं. खास बात यह है कि इस विशेष अवसर के लिए भी भगवान भक्तों द्वारा दान किए वस्त्र ही पहनते हैं.
करीब पौने दो सौ पंडित बलभद्र और जगन्नाथ भगवान के दो हिस्सों को पीताबर रस्सी से बंध कर यूं आगे बढ़ते हैं. जैसे भगवान चलकर आ रहे हैं. ये मूर्तिया इतनी भारी और लंबी-चौड़ी हैं कि इन्हें हिलाना तक आसान नहीं है, दोनों भगवान के पैर भी नहीं हैं. बहन सुभद्रा को पालने की तरह हाथों में लाया जाता है.
अलग-अलग रंगों वाले इन रथों में सबसे आगे दाऊ बलभद्र का रथ होता इसे लाल ध्वज कहा जाता है, बीच में बहन सुभद्रा का देवदलन रथ होता है और आखिर में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ. तीनों ही भगवान मंदिर में जहा विराजते हैं, उससे रथ की दूरी करीब सौ कदम है. लेकिन उन्हें इतने विधि विधान से रथ तक पहुंचाया जाता है कि इस छोटी सी दूरी को तय करने में दो से ढाई घंटे लग जाते हैं.
एक दिन पहले ही तीनों रथ मंदिर के पूर्वी दरवाजे पर लग जाते हैं. ये दरवाजा उस मार्ग के मुहाने पर है जहा से रथ यात्रा शुरू होती है. इसी मार्ग के दूसरे मुहाने पर करीब चार किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर है. यह मंदिर उस जगह पर है जिस भवन में भगवान जगन्नाथजी के मूर्तियों का निर्माण हुआ था, उस स्थान पर आज गुंडीचा मंदिर है.
भगवान जगन्नाथ की पुण्य रथ यात्रा गुरुवार को से शुरू हो गई है. ये रथ यात्रा किसी मुहूर्त से नहीं बल्कि भगवान की मर्जी से चलती है. भगवान जगन्नाथ के मुहूर्त के बारे में भक्तों का भी ये अटूट विश्वास है कि जब तक भगवान नहीं चाहते न तो रथ आगे बढ़ता है और ना ही ये पूजा शुरू होती है. इन रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान होते हैं.
उन्होंने बताया कि विभिन्न स्थानों पर क्लोज सर्किट सिक्युरिटी कैमरा भी लगाए गए हैं.
जिला पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार साहू ने बताया कि शहर में कानून व्यवस्था बनाए रखने और किसी अप्रिया घटना से बचने के लिए राज्य सरकार ने शहर में 8,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है.
यात्रा के मद्देनजर शहर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं.
वापसी की यात्रा को बाहुदा जात्रा के नाम से जाना जाता है और इसका आयोजन 29 जून को होगा.
नौ दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार तीनों देवताओं की जगन्नाथ मंदिर में वापसी के साथ समाप्त होता है.
इन रथों को तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक श्रद्धालुओं द्वारा खींचा जाता है.
तीनों देवताओं की वार्षिक यात्रा 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से शानदार तरीके से सजे लकड़ी के रथों पर निकाली जाती है.