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भारत

करगिल हीरो का दर्द - देशभक्ति सिर्फ FB पर, दिव्यांग हूं फिर भी सीट नहीं देते लोग

करगिल हीरो का दर्द - देशभक्ति सिर्फ FB पर, दिव्यांग हूं फिर भी सीट नहीं देते लोग
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देश आज विजय दिवस मना रहा है और करगिल की उस जंग को याद कर रहा है जब ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान को मात दी गई थी. इस खास मौके पर aajtak.in ने करगिल के हीरो नायक दीपचंद से बात की. दीपचंद ने करगिल की लड़ाई के किस्से को याद किया और साथ में ये भी बताया कि किस तरह उसके बाद से आजतक उन्हें इज्जत मिली. हालांकि, उन्होंने कुछ किस्से ऐसे भी साझा किए जिसमें बताया कि लोग सिर्फ दिखावे के लिए ही सैनिकों को सम्मान करते हैं. (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
करगिल हीरो का दर्द - देशभक्ति सिर्फ FB पर, दिव्यांग हूं फिर भी सीट नहीं देते लोग
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एक किस्सा साझा करते हुए नायक दीपचंद कहते हैं, ‘आज का युवा सिर्फ फेसबुक और ट्विटर तक ही देशभक्ति दिखाता है...मैं रेल में सफर करता हूं और कहता हूं कि मैं अपाहिज हूं तब कोई अपनी सीट नहीं दे सकता है. बोलता है कि मैंने चार महीने पहले सीट बुक की थी, आप सैनिक को अपनी सीट नहीं दे सकते हो और देशभक्ति की बात करते हैं.’’ (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
करगिल हीरो का दर्द - देशभक्ति सिर्फ FB पर, दिव्यांग हूं फिर भी सीट नहीं देते लोग
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समाज में सैनिकों के प्रति इज्जत को लेकर उन्होंने कहा, ‘’ आज सिर्फ लोगों को 26 जनवरी, 15 अगस्त और विजय दिवस के दिन ही लोगों को सैनिकों की याद आती है..लेकिन क्या बाकी साल हम देश की रक्षा नहीं करते हैं. नेता और सरकारें वादे कर देती हैं, लेकिन मदद पूरी नहीं मिलती है. आज कई ऐसी संस्थाएं हैं जो दिखावे के लिए बुलाती हैं, सिर्फ नाम का ऐलान करती हैं.’’ (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
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बातचीत में नायक दीपचंद ने किस्सा बताया कि किस तरह लोग सिर्फ दिखावे के लिए सम्मान देने के लिए बुलाते हैं. दीपचंद ने बताया, ‘’हमें एक बार एक कार्यक्रम में बुलाया गया, जहां पर सैकड़ों लोगों के सामने सम्मान किया गया और पांच परिवारों को बुलाकर कहा गया कि सभी को 40 हजार रुपये की मदद देंगे. लेकिन स्टेज पर सभी को खाली लिफाफे पकड़ा दिए, जब हमने खोल कर देखा तो सब खाली था. तब एक बॉडी बिल्डर के हाथों हमें लिफाफे दिलवा दिए गए थे.’’ (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
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दीपचंद बताते हैं, ‘’जब हमने शिकायत की तो संस्था ने कहा कि वो तो हमने फोटो खिंचवाने के लिए किया था, लेकिन जो कैश है हम आपको बाद में दे देंगे. बस तब लोगों के सामने माहौल कर दिया कि हमने इतने सैनिकों को पैसा दे दिया.. लेकिन सच में कुछ नहीं हुआ सिर्फ पोस्टर छपवाए गए थे.’’  (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
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देशभक्ति को लेकर समाज से मिलने वाले सम्मान पर दीपचंद कहते हैं, ‘’एक सैनिक सिर्फ यही चाहता है कि उसे आश्वासन ना दिया जाए, भरोसा मत दीजिए. सैनिकों का बस सम्मान कर दीजिए, उसे जय हिंद बोल दीजिए वो उसमें ही खुश है. अगर किसी पैसे, सम्मान का आश्वासन नहीं दोगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.’’ (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
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जंग के दिनों को याद करते हुए दीपचंद कहते हैं हमने कभी किसी चीज़ की मांग नहीं की. उन्होंने कहा, ‘’उस वक्त सिर्फ देश दिख रहा था कि देश को बचाना है. तब कोई सैनिक शिकायत नहीं करता था, जो भी सुविधा मिल जाए, जैसा भी हथियार मिल जाए, जो भी खाने को मिल जाए. हमें पता था कि अगर हमें ये मिल गया तो इसी के साथ आगे बढ़ना है. हमें जितनी सुविधा मिली, हमने उतने में ही दुश्मन को खत्म कर दिया.’’(सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
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उन्होंने सरकार से ये भी मांग की कि सभी सैनिकों को एक जैसा सम्मान मिलना चाहिए, किसी शहीद को कोई सरकार अलग राशि देती है और किसी को कोई अलग, ऐसे में परिवारों के सामने विकट स्थिति होती है. उन्होंने कहा कि सरकारों की ओर से अलग-अलग हिसाब से सैनिकों को मदद दी जाती है, ऐसी मदद में भी भेदभाव क्यों किया जाता है. आज शहीद होने के बाद मेमोरियल के लिए जगह नहीं मिलती है. (सभी फोटो नायक दीपचंद के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं)
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