दुनिया का सबसे विशाल आयोजन, महाकुम्भ मेला सोमवार को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में संगम तट पर शुरू हो गया. नागा साधुओं के नेतृत्व में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई.
यह कुम्भ मेला गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के मिलन स्थल, यानी संगम पर प्रत्येक 12 वर्ष पर लगता है.
वीआईपी घाट पर विशेष बंदोबस्त किए गए हैं, जहां साधुओं के 13 अखाड़ों ने आम सहमति के साथ बनी व्यवस्था के अनुसार स्नान का नेतृत्व किया.
सबसे पहले स्नान का नेतृत्व महानिर्वाणी अखाड़ा ने किया, उसके बाद निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, जूना अखाड़ा और बैरागी अखाड़ा के अलावा अन्य अखाड़ों के साधुओं ने स्नान का नेतृत्व किया.
सुबह पांच बजने के साथ ही रथों का काफिला संगम की ओर चल पड़ा. इनमें से कुछ रथ सोने-चांदी से सजे हुए थे. रथों के पीछे सैकड़ों की संख्या में लोग ढोल बजाते और शंखध्वनि करते पैदल चल रहे थे.
इस अद्भुत नजारे को अपने शब्दों और कैमरों में कैद कर लेने को देसी-विदेशी पत्रकारों का झुंड आतुर था.
जैसे ही विभूति से धूसरित नागा साधुओं का झुंड पवित्र गंगा में स्नान के लिए कूदना शुरू किया, छायाकारों के कैमरे चमक उठे. पवित्र गंगा में डुबकी लगाने से पहले साधुओं ने नृत्य किया और प्रेस गैलरी की ओर पुष्पाहार उछाले.
चांदी के त्रिशूल, गदे, कुल्हाड़ी और तलवार लिए कुछ जटाधारी साधुओं ने कहा कि जैसे ही वे मां गंगा को स्पर्श करते हैं, वे खुद को दुनिया से सर्वोपरि महसूस करने लगते हैं.
वृंदावन के 75 वर्षीय मोक्षानंद ने कहा, ‘यह एक रोमांचक क्षण है.’ उन्होंने कहा कि यह उनका लगातार 7वां महाकुम्भ है.
महाकुम्भ-2013 के प्रभारी मेला अधिकारी मणि प्रसाद मिश्रा ने कहा कि स्नान स्थल के तीन किलोमीटर के दायरे में बालू की बोरियां बिछाई गई हैं.
महाकुम्भ-2013 के प्रभारी मेला अधिकारी मणि प्रसाद मिश्रा ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए बंदोबस्त किए गए हैं कि प्रमुख स्नान दिवसों पर गंगा का प्रवाह व्यवस्थित व स्वच्छ बना रहे. मेला क्षेत्र की साफ-सफाई के लिए 10,000 सफाईकर्मियों का एक विशेष दल तैनात किया गया है.
इलाहाबाद शहर का उच्च वर्ग ऐसे आयोजनों में स्नान करने से अपने आपको भरसक दूर ही रखता है जबकि गांव और देहातों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं. कुंभ आस्था के साथ ही छोटे धंधे की कमाई का भी एक बड़ा जरिया बन गया है.
इस दौरान कर्मकांड के बहाने कुंभ में आए देहाती लोगों से पंडितों की अच्छी कमाई होती है.
कुंभ में जगह-जगह पंडित जी बैठे मिलेंगे, उनके हाथ में रूद्राक्षों की माला और सामने हवन-पूजन की सारी सामग्री मौजूद मिलती है.
पंडितों के रोजगार का भी बड़ा जरिया बन गया है कुंभ. उन्हें इसका वर्षो से इंतजार रहता है.
पंडितों की कुंभ के दौरान 55 दिनों तक अच्छी कमाई होगी.
कुछ पंडितों की कुंभ के दौरान दिनभर में करीब 1500-2000 रुपये की कमाई होती है तो कुछ की लगभग 3000 हजार रुपये.
यदि एक परिवार में चार पंडित हुए तो महाकुंभ में एक दिन की आय करीब 8,000 रुपये प्रतिदिन होती है तो अंदाजा लगाइए कि 55 दिनों में इस परिवार की कमाई कितनी होगी? हां ये जरूर है कि कमाई घटती बढ़ती रहती है.
हर बार की तरह कुंभ में नागा साधुओं की भरमार है और ये आगंतुकों के कौतुहल का भी कारण बन रहे हैं.
महाकुंभ में पंडितों के अलावा नाई, पूड़ी-कचौड़ी और चाय की दुकानों की भरमार लगी हुई है. करीब-करीब हर चाय वाला 100 गिलास चाय दिनभर में बेच लेता है. एक गिलास चाय की कीमत पांच रुपये है. तो शाम करीब पांच बजे तक ही इसकी कमाई पांच सौ रुपये को पार कर जाती है.
महाकुंभ में नाइयों की भी काफी कमाई हो रही है. देहाती स्टाइल में झोला लिए इन नाइयों की पंडितों के साथ पहले से ही सांठ-गांठ होती है. ये कर्मकांडी पंडितों से थोड़ी दूरी पर ही बैठे होते हैं. ये दाढ़ी बनाने के 10 रुपये और बाल काटने के 20 रुपये लेते हैं.
कुल मिलाकर कुंभ आस्था के साथ ही रोजगार का भी एक बेहतरीन पर्व है.