मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ.
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव पिछले तीन दशक से राजनीति में सक्रिय हैं.
वर्ष 1954 में मात्र 15 वर्ष की आयु में महान समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 'नहर रेट आन्दोलन' में भाग लिया और पहली बार जेल गए.
मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं (1989–1991, 1993–1995, 2003–2007).
उन्हें नेताजी और धरतीपुत्र के नाम से पुकारा जाता है.
वह केंन्द्र सरकार में एक बार रक्षा मंत्री रह चुके हैं.
वर्तमान में मुलायम समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं.
रामगोपाल यादव और शिवपालसिंह यादव उनके भाई हैं.
अखिलेश यादव और प्रतीक यादव उनके पुत्र हैं.
वर्तमान में मुलायम सिंह मैनपुरी से सांसद हैं.
वर्ष 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में लोकसभा के सदस्य चुने गये.
वर्ष 1974, 77, 85, 89, 91, 93, 1996 और 2004 तथा 2007 में दस बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये.
वर्ष 1982 से 1985 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य और नेता विरोधी दल रहे.
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम. ए.) और जैन इन्टर कालेज करहल (मैनपुरी) से बी. टी. करने के बाद कुछ दिनों तक इन्टर कालेज में अध्यापन कार्य भी कर चुके हैं.
मुलायम सिंह यादव की राजनीति को समझने के लिए उनके वर्तमान को थोड़ा अतीत के चश्मे से देखने की जरूरत है.
1967 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए..
बड़े स्तर पर मुलायम सिंह की सियासत का पहला अध्याय 1977 में शुरू होता है. यह कांग्रेस विरोध का दौर था. तब उत्तर प्रदेश में तब संघियों और सोशलिस्टों की मिली-जुली सरकार थी. मुलायम सिंह यादव उस सरकार में सहकारिता मंत्री थे.
इसी के आस-पास वे जनेश्वर मिश्रा के संपर्क में आए.
यह सरकार ज्यादा दिनों तक चली नहीं. इसके कुछ दिन बाद ही उनकी राजनीतिक उठापटक का पहला नमूना देखने को मिला.
मुलायम सिंह यादव ने 1980 में तब के उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े समाजवादी नेता लोकबंधु राजनारायण का साथ छोड़कर चौधरी चरण सिंह का हाथ थाम लिया.
सन 1989 में जब उत्तर प्रदेश सरकार का गठन होने वाला था तब मुख्यमंत्री पद की दौड़ में दो नेता थे. मुलायम सिंह और अजित सिंह. मुलायम सिंह जनाधार वाले नेता थे, जबकि अजित सिंह अमेरिका से लौटे थे.
अक्सर मुलायम सिंह का अवसरवाद विरोधाभास पैदा करता है. मसलन जिस लेफ्ट के साथ 1989 और 1996 में वे सरकार बना चुके हैं उसी को ठेंगा दिखाकर 2008 में वे परमाणु करार के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार का साथ देते हैं.
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब उन्होंने कल्याण सिंह को सपा में शामिल कर लिया तब उनके यादव-मुस्लिम समीकरण में दरार आती दिखी.
तब कल्याण सिंह का नाम बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़ता था. ऐसे में इसका खमियाजा भी उन्हें चुकाना पड़ा. सपा 39 से 22 सीटों पर आ गई और उनके सारे मुसलिम प्रत्याशी चुनाव हार गए.
शुरुआत से ही मुलायम सिंह यादव दलितों और पिछड़े वर्गों से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं और आज भी यह वर्ग उनका सबसे बड़ा आधार हैं.
बाबरी मस्जिद मुद्दे ने मुलायम का प्रभाव क्षेत्र बढ़ाया.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद मुद्दे पर हिंदू कट्टपंथी संगठनो के उनके मुखर विरोध ने मुलायम सिंह को मुस्लिम समुदाय में भी लोकप्रिय बना दिया.
1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति सांप्रदायिक आधार पर बंट गई, और मुलायम सिंह को राज्य के मुसलमानों का समर्थन हासिल हुआ.
अल्पसंख्यकों के प्रति उनके रुझान को देखते हुए कहीं कहीं उन पर "मौलाना मुलायम" का ठप्पा भी लगने लगा.
1992 में उन्होंने जनता दल छोड़ कर समाजवादी पार्टी की स्थापना की और 1993 में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
समाजवादी पार्टी की स्थापना से पहले वह उत्तर प्रदेश लोकदल और उत्तर प्रदेश जनता दल के अध्यक्ष भी रहे थे.
1995 में बहुजन समाज पार्टी के समर्थन वापस लेने से मुलायम सिंह सरकार गिर गई.
केंद्रीय राजनीति में उनका प्रवेश 1996 में हुआ जब कांग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई.
एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली इस सरकार में वह रक्षा मंत्री बनाए गए.
लेकिन यह सरकार भी ज्यादा दिन चल नहीं पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई.
भारतीय जनता पार्टी के साथ उनकी विमुखता से लगता था वह कांग्रेस के नज़दीक होंगे.
लेकिन 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन ना मिलने पर कांग्रेस सरकार बनाने में असफल रही और दोनों पार्टियों के संबंधों में खटास पैदा हो गई.
002 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 391 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए जबकि 1996 के चुनाव में उसने केवल 281 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था.
आज मुलायम सिंह यादव संप्रग-2 सरकार की सबसे बड़ी बैसाखी बने हुए हैं मगर उनका इतिहास और महत्वाकांक्षाएं केंद्र सरकार को लेकर ज्यादा उम्मीदें जगाने की वजहें नहीं देते.
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उनकी मौजूदा राजनीतिक रणनीति उनकी प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा है.
चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि कि - मुलायम छोटे कद का बड़ा नेता है.
कालांतर में उसी छोटे कद के बड़े नेता ने चौधरी चरण सिंह की पूरी राजनीतिक विरासत पर कब्जा कर लिया और उनके बेटे अजित सिंह को सियासत के हाशिये पर पहुंचा दिया.
पहलवानी के साथ ही राजनीति के पैंतरे जो उन्होंने सीखे उससे उनकी राजनीतिक सफलता असाधारण की श्रेणी में आ खड़ी होती है.
राजनीतिक चतुराई, अवसरवाद, साथियों को कभी न भूलने का बेहतरीन कौशल उन्हें एक सफल राजनेता के तौर पर पेश करते हैं.
अवसरवादिता की एक अच्छी मिसाल उन्होंने उस वक्त पेश की जब राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्होंने ममता बनर्जी के साथ स्टैंड लिया और फिर अगले ही दिन पलट गए.
कभी इधर-कभी उधर वाले रवैये से मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति की अबूझ पहेली बन गये है. वह पल-पल पाला बदलते हुए अविश्वसनीय बनते जा रहे हैं.
कांग्रेस और बसपा के बीच किसी तरह की करीबी ना आने पाए, ये बात ध्यान में रखते हुए मुलायम सिंह यादव अपनी मौजूदा रणनीति तय कर रहे हैं.
वर्ष 2012 ने मुलायम सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को नया जीवन दिया है.
उनका बेटा अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री है. बहू, भाई, भतीजा सांसद हैं.
उन्होंने एक किताब भी लिखी है. इनमे पहला नाम 'मुलायम सिंह यादव-चिन्तन और विचार' है.
फिलहाल उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ है.
कभी अमर सिंह उनके बहुत करीबी थे, लेकिन अब दोनों में बहुत दूरियां हैं.
राजनीतिक गलियारों में मुलायम यादव अब एक बड़ी हस्ती हैं.
कुछ दिन पहले अमर सिंह को वापस पार्टी में लिए जाने की एक अफवाह उड़ी जरूर उड़ी थी.