जैन धर्म में दो समप्रदाय हैं- दिगम्बर और श्वेताम्बर. दिगम्बर मुनि वस्त्र नहीं पहनते है. नग्न रहते हैं, जबकि श्वेताम्बर सन्यासी सफ़ेद वस्त्र पहनते हैं और श्वेताम्बर भी तीन भाग में विभक्त है. अहिंसा और जीव दया पर बहुत ज़ोर दिया जाता है. सभी जैन शाकाहारी होते हैं.
चौबीस तीर्थंकरों के अंतिम तीर्थंकर महावीर के जन्मदिवस प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है. महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं. उसके बाद भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा निकालते हैं. इसके बाद स्वर्ण और रजत कलशों से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है. जैन समाज द्वारा दिन भर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करके महावीर का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है.
तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व महावीर जयंती पर श्रद्धालु जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं, जो कि अभिषेक कहलाता है. तदोपरांत, भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठाकर उत्साह और हर्षोल्लास पूर्वक जुलूस निकालते हैं, जिसमें बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं. इस सुअवसर पर जैन श्रद्धालु भगवान को फल, चावल, जल, सुगन्धित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित करते हैं.
जिस भूमि पर भगवान महावीर का जन्म हुआ था, उसके जन्म के बाद आज तक हल नहीं चलाया गया, उस भूमि को जैनी लोग इतनी पवित्र मानते हैं की उनके यहां कोई मांगलिक कार्यक्रम होता हैं तो उस भूमि पर आकर पूजन आदि क्रियाएं करते हैं. सन् 1955 में इसी भूमि पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसादजी ने मंदिर का शिलान्यास किया था. तब से बिहार सरकार हरसाल भगवान महावीर की जयंती पर तीन दिन का एक विशाल सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करती है.
राजस्थान में अरावली पर्वत की घाटियों के मध्य स्थित रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर है. चारों ओर जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है. इसके अलावा राजस्थान के ही दिलवाड़ा में विख्यात जैन मंदिर हैं. इस मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था. गुजरात के शतरुंजया पहाड़ पर पालिताना जैन मंदिर स्थित है. नौ सौ से अधिक मंदिरों वाले शतरुंजया पहाड़ पर स्थित पालिताना जैन मंदिर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित हैं.