प्रभावशाली लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये गठित संयुक्त समिति की शनिवार को हुई पहली बैठक से दोनों पक्ष संतुष्ट नजर आये.
पारदर्शिता के लिये बैठकों की वीडियोग्राफी कराने की मांग पर अड़े प्रख्यात गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे के रुख में तब नर्मी देखी गयी जब वह ऑडियो रिकॉर्डिन्ग कराने की बात पर सहमत हो गये.
संयुक्त समिति की आज हुई पहली बैठक 90 मिनट चली.
इसमें समाज की ओर से शामिल पांच सदस्यों हज़ारे, शांति भूषण, कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े, अधिवक्ता प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने उनके द्वारा तैयार ‘जन लोकपाल विधेयक’ मसौदे को आधार मसौदा मानने पर जोर दिया.
लेकिन सरकार उन्हें इस बात पर राजी कराने में कामयाब रही कि संयुक्त समिति वर्ष 2001 में संसद की स्थायी समिति को भेजे गये लोकपाल विधेयक पर भी चर्चा करे.
दिलचस्प रूप से, समाज की ओर से शामिल इन पांच सदस्यों ने अपने ‘जन लोकपाल विधेयक’ का संशोधित मसौदा सरकार के समक्ष रखा जिसे शुक्रवार रात ही अंतिम रूप दिया गया है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा पूर्व में तैयार किये गये मसौदे में लोकपाल चयन समिति में राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष को शामिल करने का प्रस्ताव था.
लेकिन अब इसमें बदलाव कर प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष की नेता को लोकपाल चयन समिति में रखने की बात कही गयी है.
हज़ारे के पांच दिन के अनशन के बाद नौ अप्रैल को सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के बाद गठित हुई संयुक्त समिति की इस पहली बैठक से दोनों पक्ष संतुष्ट नजर आये.
समिति में शामिल मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने पहली बैठक को ‘ऐतिहासिक कदम’ करार देते हुए कहा, ‘‘दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी है कि स्थायी समिति की ओर से तैयार मसौदा विधेयक पर भी आगे होने वाली बैठकों में चर्चा की जाये.’’
समिति के एक अन्य सदस्य अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि बैठक काफी ‘सकारात्मक’ और ‘रचनात्मक’ रही.
बैठक के बाद हज़ारे ने चर्चा के विवरण बताने से इनकार कर दिया लेकिन संकेत दिये कि बैठक सकारात्मक रही.
समिति में शामिल कर्नाटक के लोकायुक्त हेगड़े ने कहा, ‘‘मैं काफी संतुष्ट हूं. मुझे उम्मीद है कि आगे की कार्रवाई भी इसी तरह चलेगी.
माहौल काफी मैत्रीपूर्ण रहा. बैठक में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के विचारों को सुना.’’ उन्होंने कहा कि वह आशावादी हैं और उनका मानना है कि विधेयक को संसद के मानसून सत्र में लाया जा सकता है.
संयुक्त समिति के सह-अध्यक्ष शांति भूषण की न्यायपालिका के संबंध में समाजवादी पार्टी के नेताओं से कथित तौर पर हुई बातचीत की एक सीडी सामने आने पर विवाद निर्मित हो गया था लेकिन इस संबंध में बैठक में कोई चर्चा नहीं हुई.
प्रशांत भूषण से जब इस बारे में विशेष तौर पर पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, विवादास्पद मुद्दों पर समिति के सदस्यों के बीच कोई चर्चा नहीं हुई.’’
बैठकों की वीडियोग्राफी कराने की हज़ारे की मांग पर सिब्बल ने कहा, ‘‘हम ऑडियो रिकॉर्डिन्ग कराने पर सहमत हुए हैं.
पहली बैठक की ऑडियो रिकॉर्डिन्ग हुई है और आगे भी होगी. जो भी अहम फैसले किये जायेंगे, हम उन्हें सार्वजनिक कर जनता के बीच रखने पर भी सहमत हुए हैं.’
प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘हमने वीडियोग्राफी कराने की मांग रखी थी लेकिन सहमति ऑडियो रिकॉर्डिन्ग कराने पर बनी है.’
सरकार के सूत्रों का कहना है कि बैठकों की ऑडियो रिकॉर्डिन्ग कराने में कुछ भी नया नहीं है.
हालांकि, ऑडियो रिकॉर्डिन्ग सार्वजनिक नहीं की जा सकती, सिर्फ बैठकों के मिनट बताये जा सकते हैं.
भूषण के अनुसार, सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से पेश ‘जन लोकपाल विधेयक’ मसौदे को महत्वपूर्ण मानती है.
हालांकि, सरकार का कहना है कि वर्ष 2001 में जिस लोकपाल विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया था, उसके बिंदुओं पर भी चर्चा होनी चाहिये.
संभावना है कि जब संयुक्त समिति की दो मई को अगली बैठक होगी तो उसमें दोनों मसौदों पर चर्चा की जायेगी.
संयुक्त समिति की पहली बैठक में दोनों पक्षों के बीच यह सहमति बनी कि संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले एक ‘पुख्ता मसौदा विधेयक’ तैयार कर लिया जाये.
कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण, दोनों सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील हैं.
वहीं अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल, दोनों समाजिक कार्यकर्ता हैं.