केजरीवाल ने कहा, ‘मतभेदों के बावजूद हम 20 और 21 जून को होने वाली संयुक्त समिति की अगली बैठक का बहिष्कार नहीं करेंगे.’
इस पर समिति में हज़ारे पक्ष की ओर से शामिल आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘इस बैठक से कोई नतीजा नहीं निकल पाया. केंद्र के रुख से ऐसा लग रहा है कि पिछले डेढ़ महीने से चल रही कवायद सरकार का महज एक दिखावा थी. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार लोकपाल के अस्तित्व में आने से पहले ही उसे निष्प्रभावी बना देना चाहती है.’
सिब्बल ने कहा, ‘अगर आम सहमति नहीं बनी तो कैबिनेट के पास एक मसौदा भेजा जायेगा, जिसमें दोनों पक्षों के संस्करण होंगे. फिर कैबिनेट इस पर निर्णय करेगा. यह प्रक्रिया 30 जून तक पूरी कर ली जायेगी.’
बैठक के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘यह स्पष्ट हो गया है कि ऐसे कुछ मुद्दे हैं, जिन पर अत्यधिक वैचारिक मतभेद हैं. उम्मीद है कि समाज के सदस्य ऐसे मुद्दों पर अपना मसौदा देंगे. हम भी ऐसे मुद्दों पर अपना मसौदा तैयार करेंगे और आम सहमति कायम करने की कोशिश करेंगे.’
बैठक में दूसरा मुद्दा लोकपाल के ढ़ांचे को लेकर उठा. हज़ारे पक्ष ने सुझाव दिया कि लोकपाल का 11 सदस्यीय स्वतंत्र निकाय होना चाहिये और उसके अधीनस्थ अधिकारियों को भी जांच के अधिकार होने चाहिये. इस पर सरकार ने कहा कि सिर्फ 11 सदस्यीय निकाय को ही निर्णय करने के अधिकार होंगे.
इस बैठक में हज़ारे पक्ष ने सुझाव दिया कि लोकपाल को शीर्ष अधिकारियों के भ्रष्टाचार मामलों की जांच करने के अधिकार दिये जायें और विभागीय जांच के साथ ही सीबीआई जांच कराने के चलन को खत्म किया जाये. इस सुझाव पर केंद्र के मंत्री राजी नहीं हुए.
बैठक के बेनतीजा रहने के बाद ‘गंभीर असहमति को दूर करने के लिये’ दोनों पक्षों के बीच 20 और 21 जून को फिर बैठक होगी. 30 मई को हुई पिछली बैठक में गंभीर मतभेद उभरने और छह मई की बैठक का हज़ारे पक्ष द्वारा बहिष्कार कर देने के बाद यह बैठक अहम थी.
बैठक के बाद स्पष्ट हो गया कि अब कैबिनेट के समक्ष लोकपाल विधेयक मसौदे के दो संस्करण भेजे जायेंगे.
लोकपाल विधेयक का आम सहमति वाला मसौदा तैयार करने के लिये सरकार और गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के बीच बातचीत विफल हो गयी.