हज़ारे पक्ष के प्रशांत भूषण ने सरकार द्वारा तैयार किये गये लोकपाल विधेयक के मसौदे पर ‘गहरी निराशा’ जतायी. उन्होंने कहा, ‘सरकार का मसौदा लोकपाल के नाम पर एक प्राधिकार स्थापित करने की प्रतीकात्मक कोशिश प्रतीत होती है.’
सरकार ने जो मसौदा हज़ारे पक्ष को सौंपा, उसमें प्रधानमंत्री का कोई जिक्र ही नहीं है. इस सवाल पर कि क्या प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना संयुक्त राष्ट्र की भ्रष्टाचार निरोधक संधि के खिलाफ नहीं होगा, सिब्बल ने कहा, ‘ऐसी कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं है जो खासकर प्रधानमंत्री को लोकपाल जैसे किसी निकाय की जांच के दायरे में लाने को अनिवार्य बनाती हो.’
हज़ारे पक्ष के ही अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकार के मसौदे में प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है. इसके ये मायने हैं कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत सीबीआई की जांच के अधीन रहेंगे लेकिन स्वतंत्र लोकपाल की जांच में दायरे में नहीं रहेंगे. इसी तरह सरकार के मसौदे में उच्च न्यायपालिका और सांसदों को भी लोकपाल के दायरे में लाने का जिक्र नहीं है.
भूषण ने कहा, ‘हमें पहली बार यह ज्ञात हुआ है कि सरकार किस तरह का लोकपाल चाहती है. हम काफी निराश हैं. सरकार के मसौदे के तहत लोकपाल का चयन राजनीतिक प्रभुत्व वाली समिति करेगी. लोकपाल की शक्तियों और कार्यप्रणाली को काफी सीमित कर दिया जायेगा. इसकी जांच के दायरे में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के आचरण को शामिल नहीं किया जायेगा.’
हजारे पक्ष का कहना है कि सरकार का मसौदा कहता है कि 11 सदस्यीय लोकपाल ही उसके पास आने वाले सभी मामलों की जांच करेगा. अगर ऐसा होता है तो कुछ ही महीनों में प्रस्तावित लोकपाल पर काम का दबाव बढ़ जायेगा और लंबित मामलों की संख्या में भी इजाफा होगा.
केजरीवाल ने कहा कि सरकार के मसौदे के अनुसार लोकपाल की चयन समिति में सत्तापक्ष के लोगों का प्रभुत्व रहेगा. इससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार लोकपाल का नियंत्रण अपने हाथों में रखना चाहती है. उन्होंने कहा कि सरकार के मसौदे में सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल के अधीन लाने और संयुक्त सचिव स्तर से अधीनस्थ अधिकारियों को जांच के दायरे में रखने का भी जिक्र नहीं है.
संसद के अंदर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग पर मसौदा समिति के संयोजक और विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 105 (2) हमें इसकी इजाजत नहीं देता. मोइली ने हज़ारे पक्ष को आड़े हाथ लेते हुए स्पष्ट किया कि संयुक्त समिति का गठन एक विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये हुआ था, कोई संवैधानिक संशोधन करने के लिये नहीं.
सोमवार की बैठक में लोकपाल के चयन और उसे हटाने की प्रक्रिया के दो नये मुद्दों पर भी दोनों पक्षों के बीच मतभेद उभरे.
सरकार और हज़ारे पक्ष के बीच जिन छह मुद्दों पर गंभीर मतभेद हैं, वे हैं प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना, उच्च न्यायपालिका को लोकपाल की जांच के दायरे में रखना, संसद के अंदर सांसदों के भ्रष्ट आचरण को भी इस स्वतंत्र जांच निकाय के दायरे में रखना, लोकपाल को अपना बजट तय करने के अधिकार देना, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में शामिल करना और एक ही कानून के जरिये केंद्र में लोकपाल के साथ ही राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना करना.
लोकपाल मसौदा संयुक्त समिति की हुई नौंवीं और अंतिम बैठक के बाद सरकार ने गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष की मांगों के जवाब में अपनी दलीलें पुरजोर तरीके से रखीं. मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री के बारे में पूछे गये सवाल पर कहा, ‘रुख से पीछे हटने की कोई बात नहीं है. इस मुद्दे पर विचार करने की कवायद सरकार को करनी थी. विस्तृत चर्चा करने और संभावित परिणामों पर गौर करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाये.’
केंद्र ने हज़ारे पक्ष के जनलोकपाल विधेयक पर अपनी असहमति को जायज ठहराते हुए कहा कि वह सरकार के इतर और संविधान के दायरे से बाहर किसी ‘समानांतर सरकार’ की इजाजत नहीं दे सकती.
सरकार ने प्रधानमंत्री पद को उनके पदमुक्त होने तक लोकपाल के दायरे में नहीं लाने के मुद्दे पर अपने रुख से पीछे हटने की बात से इनकार कर दिया. सरकार ने कहा कि वह गहन चर्चा और संभावित नतीजों पर गौर करने के बाद ही मसौदा विधेयक में प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के निष्कर्ष पर पहुंची.
उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्षों के बीच लोकपाल के छह मूल मुद्दों पर असहमति है. हमने कुछ मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की है. हमने ऐसे मुद्दों पर एक दूसरे से असहमत होने की बात को मान लिया हैं.’
बैठक के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं को बताया, ‘दोनों पक्षों ने मसौदे के अपने-अपने संस्करण समिति में रखे. इन्हें अब राजनीतिक दलों के बीच रखा जायेगा. उन पर जो भी सुझाव आयेंगे, उन्हें शामिल कर एक दस्तावेज कैबिनेट को भेजा जायेगा. कैबिनेट की बैठक में जो फैसला होगा, वह अंतिम मसौदा होगा, जिसे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जायेगा.’
सरकार के मसौदे में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखे जाने का जिक्र नहीं है. समिति की हुई नौंवीं और अंतिम बैठक में दोनों पक्षों ने लोकपाल मसौदा विधेयक के संस्करण एक दूसरे को सौंपे.
लोकपाल विधेयक मसौदा समिति की आखिरी बैठक होने के बाद भी सरकार और हज़ारे पक्ष के बीच अहम मुद्दों पर मतभेद बने रहे और साझा मसौदा तैयार नहीं किया जा सका. हज़ारे पक्ष ने जहां सरकार के मसौदे पर ‘गहरी निराशा’ जाहिर की, वहीं केंद्र ने कहा कि वह दोनों पक्षों के मसौदे पर राजनीतिक दलों से राय लेकर उसे कैबिनेट के समक्ष रखेगा.