दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आपसी रजामंदी से समलैंगिक संबंध को जायज ठहराया था. कोर्ट ने यह फैसला नाज़ फाउंडेशन नाम के एनजीओ की अर्जी पर सुनाया.
कोर्ट की राय है कि ये प्रावधान जीने की आजादी से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.
नाज़ फाउंडेशन नाम के एनजीओ की अर्जी पर दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आपसी रजामंदी से समलैंगिक संबंध को जायज ठहराया था.
कोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया है जिसमें समलैंगिकता को आपराधिक माना गया है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आपसी रजामंदी से समलैंगिक संबंध को जायज ठहराया था.
अदालत ने कहा था कि यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन है.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दो जुलाई 2009 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को खत्म कर दिया था. इस धारा के अनुसार देश में समलैंगिकता कानून अपराध था.
एक कार्यकर्ता के अनुसार, त्याचार से समलैंगिक नाइट क्लबों, समलैंगिक फिल्म समारोहों तक का सफर तो हमने तय कर लिया है मगर अब बारी लोगों को जागरूक करने की है.
हले अपराधियों की तरह जीने वाले समलैंगिक अब सिर उठाकर जीते हैं. फिलहाल सभी ने अदालत के फैसले की दूसरी सालगिरह मनाई.
करीब दो साल पहले आए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले ने समलैंगिकों की दुनिया बदल दी.