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भारत

ये जो देश है मेरा, स्‍वदेश है मेरा... | घर लौटे सपूत

ये जो देश है मेरा, स्‍वदेश है मेरा... | घर लौटे सपूत
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भारतीय तिरंगे को देश के जन और गण ही नहीं बल्कि इससे जुड़े विदेश में रहने वाले 'मन' भी इसे रंग रहे हैं. और इन्‍हीं जन-गण-मन से हमारा देश भारत बनता है.
ये जो देश है मेरा, स्‍वदेश है मेरा... | घर लौटे सपूत
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रुस्तम सेनगुप्ता
30 वर्ष, सामाजिक उद्यमी
विदेश में वर्ष आठ. फ्रांस में इनसीड से एमबीए किया. अमेरिका और सिंगापुर में काम किया.
अंतरात्मा की आवाज 2009 में एक यात्रा के दौरान पश्चिम बंगाल के गरीबों की दशा देखकर व्यथित हो गए थे.
प्रतिबद्धता सात लाख रु. की अपनी बचत इस जोखिमपूर्ण काम में लगा दी.
सीएसआर के लिए बने ग्रामीण गरीबों को बेहतर जीवन स्तर मुहैया कराने में बूंद कॉर्पोरेटस्‌ की मदद करता है.

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रुक्मिणी बनर्जी
51 वर्ष, शिक्षाकर्मी
विदेश में बिताए 13 वर्ष
जी ना लगा अमेरिका में अनुसंधानकर्मी के अपने काम में पूरी तरह से फिट होने के बावजूद उनका दिल

हिंदुस्तान में ही लगा हुआ था.
झुग्गियों से नाता अमेरिका के शिकागो स्थित एक रिसर्च फाउंडेशन में काम करने की बजाए मुंबई की मलिन बस्तियों में काम करना बेहतर समझा.
अतीत और वर्तमान उनके पिता भी पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए अमेरिका से डॉक्टरेट की डिग्री लेकर लौट आए थे.

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संजय पुरोहित
46 वर्ष, सामाजिक उद्यमी
विदेश में रहे 12 साल
वापसी की वजह पुरोहित सवाल करते हैं, ''हार्वर्ड के ख्वाब देखने का हक अघाए महानगरों को ही है? पटियाला के छात्र में भी उतनी ही योग्यता है''
जुड़े तार पुरोहित भारत में सेलफोन उतारने वाली मोटरोला की टीम का हिस्सा थे.
अगला कदम आइप्रोफ का लक्ष्य टेबलेट की कीमत 3,000 रु. तक लाना और 100 शहरों तक पहुंचना है.

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आर. कुचिमंची, 46 वर्ष
ए. पिल्ललामारी, 42 वर्ष
विकास कार्यकर्ता
अमेरिका में कुचिमंची एक दशक से, पत्नी पिल्ललामारी तीन दशक से.
जिंदगी से परदे पर  हिंदी फिल्म स्वदेस उन्हीं की जिंदगी से प्रेरित है.
प्रवासी नेटवर्क एसोसिएशन फॉर इंडिया.ज डेवलपमेंट की दुनिया भर में 50 इकाइयां हैं.
साझा मकसद लोकपाल आंदोलन को समर्थन.
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आर. कुचिमंची, 46 वर्ष
ए. पिल्ललामारी, 42 वर्ष
विकास कार्यकर्ता
अमेरिका में कुचिमंची एक दशक से, पत्नी पिल्ललामारी तीन दशक से.
जिंदगी से परदे पर हिंदी फिल्म स्वदेस उन्हीं की जिंदगी से प्रेरित है.
प्रवासी नेटवर्क एसोसिएशन फॉर इंडिया.ज डेवलपमेंट की दुनिया भर में 50 इकाइयां हैं.
साझा मकसद लोकपाल आंदोलन को समर्थन.
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पीवीटीएम हुसैन
51 वर्ष, शिक्षा शास्त्री
विदेश में बिताए 11 वर्ष, कतर में
वापसी की वजह अपने साथियों को खाड़ी में पहचान के संकट से जूझते देखा और तय किया कि वह उनमें से एक नहीं होना चाहते.
बड़ा मकसद साधन-सुविधाओं से वंचित बच्चों को शानदार इंसानों में तब्दील करना.
प्रकृति प्रेम सालसाबील के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई प्रकृति के प्रेम में डूब कर होती है.

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अनिल राजवंशी
61 वर्ष, आविष्कारक
भारत से बाहर सात वर्ष रहकर, यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा से पीएचडी की और वहां दो साल पढ़ाया.
वापसी की वजह 1980 में फलटन में स्टीम इंजन पर सवार हुए और यहीं उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि

भारत को मीलों लंबा सफर तय करना है.
एक और राय यहां तक कि पत्नी नंदिनी ने भी एक बार फिर सोच लेने को कहा.
वापसी के बाद फलटन में रह कर ध्यान केंद्रित किया.

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डॉ. के. रविंद्रनाथ
57 वर्ष, चिकित्सक
विदेश में रहे 12 साल, ब्रिटेन में
वापसी की वजह जब उन्होंने जिगर प्रत्यारोपण के लिए ब्रिटेन आने वाले भारतीयों की समस्याओं को देखा तो वापसी का फैसला ले लिया.
अच्छा काम ग्लोबल हॉस्पिटल्स की स्थापना की, जो मल्टी-ऑर्गन सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की एक श्रृंखला है.
उनका मंत्र ''थोड़ा-सा आराम करने के बारे में सोचने से पहले मुझे मीलों सफर तय करना है.''

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अंबरीश गुप्ता
33 वर्ष, उद्यमी
विदेश में बिताए दस साल. अमेरिका में मैककिंजे ऐंड कंपनी में काम किया और फिर जर्मनी में भी काम किया.
दो की ताकत अपने सहपाठी पल्लव पांडे के साथ मिलकर नॉलेरिटी की स्थापना की, जिसके कर्मचारियों की संख्या अब 100 पार कर गई है.
प्रेरणा भौतिक शास्त्र पसंदीदा विषय होने के कारण परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा प्रेरणास्त्रोत रहे.
पसंदीदा भागीदार गुप्ता ने दुपहरिया भोजन योजना, नरेगा सरीखी योजनाओं को सेवाएं प्रदान कीं.

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चंद्रकांत सिंह
37 वर्ष, इंजीनियर
विदेश में बिताए जर्मनी में दो साल
अपने नाम पेटेंट उनके नाम एक सॉफ्टवेयर पेटेंट है, जो ऑपरेटिंग कारों में खराब माइक्रो-कंट्रोलर को ठीक

करने के काम आता है.
एक ही रास्ता बिहार में अपने गांव के बच्चों की दशा देखकर उन्हें एहसास हुआ कि केवल शिक्षा ही उन्हें गरीबी से मुक्ति दिला सकती है.
अंधेरा कहीं रह न जाए चमनपुरा में उनके स्कूल में बिजली बैक-अप की वजह से पढ़ाई के दौरान बिजली गुल नहीं होती.

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अश्विन महेश
42 वर्ष, अकादमिक
विदेश में बिताए करीब 15 साल
अलग सोच महेश कहते हैं, ''जब आप समस्या देख लें, जैसे नक्शे में, तो उनका समाधान आसान होता है.''
समय के साथ निखार भारत लौटने से पहले उन्होंने अमेरिका में छह साल तक नासा में काम किया
सड़क के संत उन्होंने यातायात प्रबंधन प्रणाली विकसित की और बंगलुरू की बस सेवा को बेहतर बनाने में मदद की.

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आशीष राजपाल
42 वर्ष, उद्यमी
विदेश में बिताएः 11 साल
विचार का जन्म राजपाल कहते हैं, ''अपने बच्चों के जन्म के बाद मन में जिज्ञासा हुई कि उनके लिए पढ़ाई का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है.''
कैसी रही प्रतिक्रिया वे कहते हैं, ''हर कोई चकित था, कुछ खुलकर खिलाफ थे तो कुछ अपनी चुप्पी से इसे नामंजूर कर रहे थे.''
असर एक्सीड तेजी से देश भर के 700 स्कूलों में पहुंच चुका है.

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रमेश रामचंद्रन
अमेरिका में एक बहुराष्‍ट्रीय बैंक में सफल बैंकर की नौकरी को छोड़ भारत अपनी पत्‍नी स्‍वाति के साथ लौट गए. जनाग्रह नाम की संस्‍था बनाया और उससे आम भारतीयों के लिए काम करते हैं.
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अश्विन नाईक
38 वर्ष, डॉक्टर
विदेश में बिताए 5 वर्ष
स्पष्टता का क्षण कर्नाटक में गोकाक के एक अस्पताल में सीढ़ियों पर एक डॉक्टर को स्टील रेलिंग से आइवी

फ्लूड चढ़ाते हुए देखा.
उनका नुस्खा भारत के छोटे इलाकों के लोगों को कम कीमत पर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना.
इलाज का प्रसार वात्सल्य अस्पतालों की श्रृंखला को पश्चिम से उत्तर भारत में फैलाना चाहते हैं.

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शाहीन मिस्त्री
40 वर्ष, सामाजिक कार्यकर्ता
विदेश में बिताए एक साल की उम्र में ही भारत से बाहर चली गईं. कुछ सार्थक काम करने के लिए 18 साल बाद वापस आईं.
उदासी के क्षण जब उन्होंने मुंबई की सड़कों पर घूमने वाले गरीब बच्चों का चेहरा अपनी कार की खिड़की से सटे देखा
उम्मीदों की छलांग झुग्गी बस्तियों में काम करने के लिए बोस्टन स्थित टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के अंडरग्रेजुएट स्टडीज प्रोग्राम को बीच में हो छोड़ा.
जुनून है भारत को शिक्षित बनाने का.

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मधुकर, 74 वर्ष,
पुष्पा देशपांडे, 73 वर्ष
अध्यापक
विदेश में बिताए 29 वर्ष
सेवा का वाहक टाटा 609 के चेसिस पर बनाई गई मोबाइल साइंस लेबोरेटरी, जो हर रोज किसी न किसी नए स्कूल में जाती है.
सच्ची लगन उन्होंने अपने बच्चों से कहा था कि वे पांच साल तक इस पर काम करेंगे और अगर सफल नहीं हुए तो वापस लौट आएंगे. वे 18 साल बाद अभी भारत में ही हैं.
जमीनी हकीकत एमएसएल परियोजना के तहत आने वाले स्कूलों ने विज्ञान में बेहतर नतीजे दिए हैं.

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पीएनसी मेनन
62 वर्ष, उद्योगपति
विदेश में बिताएः 34 वर्ष, ओमान में
खुले दरवाजेः वे '90 के दशक के शुरू में आर्थिक सुधारों की वजह से भारतीय बाजार में लौटने की सोचने के लिए मजबूर हुए.
दूसरा अध्यायः केरल के किलक्केनचेरी के 2,500 बीपीएल परिवारों को गोद लिया.
परीक्षा: ''मुझे अपने पांच नाती-पोतों और अपने स्कूल के बच्चों के कौशल में कोई फर्क नजर नहीं आता''

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घासीराम वर्मा
84 वर्ष, अकादमिक
विदेश में बिताएः 1964 से ही अमेरिका में हैं. अक्सर झुझुनूं आते हैं.
बस से मिला विचारः लड़कियों को स्कूल जाने के लिए खचाखच भरी बस में चढ़ते देखा. उनकी शिक्षा को

प्रोत्साहन देने का फैसला किया.
जिंदगी का जोशः अपने काम को फैलाने के लिए 100 साल तक जीना चाहते हैं.
सियासत से परहेजः 2008 में राज्‍यसभा सीट का वसुंधरा राजे का प्रस्ताव ठुकराया.

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महमूद खान
56 वर्ष, बदलाव के कारक
विदेश में बिताएः 21 साल
कॉर्पोरेट गुरुः उपभोक्ता वस्तुओं की दिग्गज कंपनी यूनिलीवर के लंदन कार्यालय में चीफ इनोवेशन ऑफिसर
शुभ घड़ीः एक एनजीओ प्रथम ने 2003 में लंदन में प्रेजेंटेशन दिया. उससे हरियाणा के अपने गांव में लौटकर

हालात बदलने का उनका जज्‍बा बढ़ गया.
हैलो मेवातः उन्होंने शहर का पहला कॉल सेंटर शुरू किया

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दीप्ति दोशी
29 वर्ष, शिक्षाविद्
अमेरिका में जन्मी वे दूसरी पीढ़ी की आप्रवासी हैं.
स्पष्टता के क्षण हैदराबाद में ग्रेस मॉडल स्कूल में बच्चों को अपना स्कूल साफ रखने के लिए खुद को संगठित करते देखना.
इच्छा प्रायोगिक गतिविधि पर आधारित एस्क्युएला नुएवा मॉडल को लोकप्रिय बनाना चाहती हैं.
अनिच्छा रटंत विद्या खत्म करना चाहती हैं

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एस.पी. सिंह ओबेरॉय
55 वर्ष, उद्योगपति
विदेश में बिताए 22 साल
इतना लंबा सफर उनकी पहली नौकरी 390 रु. मासिक वेतन पर हिमाचल प्रदेश में एक इंजन मैकेनिक की थी
बड़ी सामाजिक शादियां गरीबों के सामूहिक विवाह आयोजित करवाते हैं.
पक्का पंजाबी पटियाला में एक स्पेशल स्कूल के विस्तार के लिए पैसा दिया, तलवंडी में इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए 20 छात्रों का खर्च उठाते हैं.

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विजय आनंद
42 वर्ष, इंजीनियर
विदेश में बिताए वाशिंगटन में आठ साल.
यहां क्यों नहीं  अमेरिका में बिना झंझट के ड्राइविंग लाइसेंस मिल गया, तभी भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ

जंग शुरू करने का फैसला किया.
मुहिम जारी वे भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में अलख जगाते घूमते हैं.
पसंदीदा हथियार शून्य रु. का नोट, जो रिश्वत मांगने वाले कर्मचारी को दिया जाता है.

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