जालिम हुकूमतों की चूल हिला देने वाली है ये टोपी और आज यही टोपी पहनकर लाखों लोग सड़कों पर निकल पड़े हैं. एक 74 साल के बूढ़े व्यक्ति की एक आवाज के पीछे.
92 साल पहले गांधी टोपी वजूद में आई थी आजादी के आंदोलन के लिए. आज अन्ना ने बच्चे-बच्चे के सिर पर सजाकर इस टोपी को फिर से तैयार कर दिया है नए आंदोलन के लिए.
गांधी ने 1919 से 1922 तक इस टोपी को पहना.
बाद में गांधी तो नंगे सिर रहने लगे लेकिन उनकी टोपी करोड़ो सिरों पर सजने लगी.
जिसने भी तब गांधी टोपी पहनी, उसे आजादी का सिपाही माना जाने लगा.
क्या नरम और क्या गरम, हर मिजाज के लोगों का सिर गांधी टोपी के सामने झुकने लगा.
आज वही टोपी पहनकर लोग अपने हक की आवाज के सामने सरकार को झुकाना चाह रहे हैं.
अन्ना ने जनलोकपाल बिल पर सरकार से टक्कर ली, तो देश के कोने-कोने से लोग अन्ना की टोपी पहनकर खड़े हो गये.
जिस मुंबई में गांधी ने 69 साल पहले अगस्त क्रांति की थी, उस मुंबई में अन्ना की अगस्त क्रांति के लिए गांधी टोपी की इतनी मांग बढ़ गयी कि सप्लाई कम पड़ रही है.
गांधी टोपी अन्ना की एक पहचान है. जिस रामलीला मैदान में वो अनशन पर बैठे हैं, वहां उस पहचान से खुद को जोड़ने के लिए तमाम लोग अन्ना नाम की गांधी टोपी पहनकर आ रहे हैं.
अन्ना के लिए ये टोपी कोई फैशन नहीं, बल्कि अनशन के पक्ष में एक मजबूत समर्थन है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के मैदान में अन्ना हैं और अन्ना के समर्थन में रामलीला मैदान भरा हुआ है.
खुद को अन्ना से जोड़ने के लिए लोगों ने गांधी टोपी लगा रखी है.
लोगों को ये टोपी गांधी की याद और उनके आंदोलन के संघर्षों से जोड़ती है.
गरीब देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए गांधी ने खुद भी कम कपड़ों का इस्तेमाल शुरु किया और उसी सोच से उपजी ये गांधी टोपी.
कैसे कोई छोटी सी चीज बड़े आंदोलन के लिए मशाल बन जाती है, इसकी मिसाल है गांधी टोपी.
आज से 92 साल पहले महात्मा गांधी ने कम कपड़ों के इस्तेमाल के लिए इस टोपी को अपने सिर पर रखा था.
आज पूरे देश में अन्ना के समर्थन में बड़े से लेकर बच्चे तक गांधी टोपी को अपना रहे हैं.
यह टोपी गांधी के अनुयायियों के लिए ही नहीं, बल्कि अनशन और आंदोलन करने वाले हर शख्स के लिए संघर्ष की पहचान बन गयी.
अन्ना का अनशन और आंदोलन में गांधी टोपी को लोग सबसे ज्यादा इस्तमाल कर रहे हैं.
सफेद खद्दर की एक टोपी, जिसमें तोप से मुकाबला करने का माद्दा रहा है.
आजादी के मतवालों से लेकर अन्ना के दीवानों तक की पहचान है ये टोपी.
मुंबई में अभिनेत्री सेलिना जेटली ने भी गांधी टोपी पहनकर अन्ना का समर्थन किया.
मुंबई में बॉलीवुड सितारों के सिर पर गांधी टोपी सिर्फ फिल्मों में ही देखी जाती है लेकिन अब हकीकत में गांधी टोपी पहनकर यह स्टार अन्ना के समर्थन में उतर रहे हैं.
मुंबई में गांधी टोपी पहने अभिनेता श्रेयस तलपड़े और सेलिना जेटली.
गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश को आजादी का अहसास दिलाने वाली है ये टोपी.
पूरा देश आज अन्ना-अन्ना कह रहा है और अन्ना के प्रति अपना सम्मान और समर्थन दिखाने के लिए बच्चों से बूढ़े तक गांधी टोपी पहनकर घूम रहे हैं.
एक 74 साल के बूढ़े व्यक्ति की एक आवाज के पीछे पूरा देश उसके साथ हो लिया है.
जालिम हुकूमतों की चूल हिला देने वाली है ये टोपी और आज यही टोपी पहनकर लाखों लोग सड़कों पर निकल पड़े हैं.
नए भारत की तकदीर लिखने वालों के सिर की शोभा बढ़ाती रही है ये टोपी.
अन्ना के समर्थन में आगे आए कुमार सानू.
बॉलीवुड से अन्ना हजारे को मिल रहा है भारी समर्थन.
अन्ना के समर्थन में आई बॉलीवुड अभिनेत्री माही गिल.
अब आप भी ये जानना चाहेंगे कि दीवानगी की हद तक लोगों पर असर डाल चुके इस टोपी को गांधी टोपी क्यों कहा जाता है.
गांधी ने 1919 से 1922 तक इस टोपी को पहना. बाद में गांधी तो नंगे सिर रहने लगे लेकिन उनकी टोपी करोड़ो सिरों पर सजने लगी.
जिसने भी तब गांधी टोपी पहनी, उसे आजादी का सिपाही माना जाने लगा.
अब आप भी ये जानना चाहेंगे कि दीवानगी की हद तक लोगों पर असर डाल चुके इस टोपी को गांधी टोपी क्यों कहा जाता है.
गांधी ने उस पगड़ी को उतारा और सबसे पहले खद्दर की टोपी को पहना.
जब गुलामी थी, तब गांधी टोपी आजादी की लड़ाई का दूसरा नाम बन गयी थी.
गांधी से असहमत नेता भी उस टोपी के नीचे आंदोलन की रणनीति बनाते थे और जब आजादी मिली तो
लाल-किला से बहुत दिनों तक तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्रियों के सिर पर गांधी टोपी सजते हुए देखी गयी.
गुलाम भारत में आजादी की लड़ाई का प्रतीक थी ये गांधी टोपी और आजाद भारत की शान की गवाही भी है ये गांधी टोपी.
लाल किले की प्राचीर से जब आजाद भारत ने अपना तिरंगा लहराया तो अपने प्रधानमंत्री के सिर पर गांधी टोपी को सजा हुआ पाया.
पंडित जवाहर लाल नेहरू और गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री से लेकर चौधरी चरण सिंह तक ऐसे प्रधानमंत्रियों की परंपरा चली आई, जिनकी पहचान गांधी टोपी थी.
आजादी के 30 साल बाद केंद्र में सत्ता परिवर्तन तो जरूर हुआ, लेकिन गांधी टोपी नहीं बदली. पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर देश की बागडोर संभालने वाले मोरारजी देसाई भी वैसे ही गांधी टोपी पहनते थे, जैसे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू.
संयोग देखिए कि आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनो गांधी टोपी पहनते थे.
अपनी टोपी को खुद गांधी ने ही भले कम पहना लेकिन गांधी के प्रशंसकों, समर्थकों और अनुयायियों के लिए वो टोपी गांधी की तरह ही पवित्र आदर्श बना रहा. तभी तो नेहरू हों या सुभाष चंद्र बोस, दोनो ही अपनी जवानी के दिनों में उस गांधी टोपी में नजर आते थे.