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भारत

तभी तो एकदम 'खास' है क्रिसमस का त्‍योहार...

तभी तो एकदम 'खास' है क्रिसमस का त्‍योहार...
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दिसम्बर की 25 तारीख को क्रिसमस का उत्सव सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है. कुछ अपने महानगरीय प्रभाव के कारण, कुछ अपनी उदार सभ्यता के कारण और कुछ अंग्रेजी राज के प्रभाव के चलते कोलकाता का क्रिसमस अन्य जगहों से भिन्न है.
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ईसाई धर्मावलम्बियों के साथ कोलकातावासी एक सप्ताह पहले से प्रभु ईसामसीह के जन्मदिवस की तैयारी में पूरे उत्साह से जुट जाते हैं. किसी ने ठीक ही कहा है, 'कैलकटा रीटेन्स ए पिकविकियन जेस्ट फॉर क्रिसमस'. कोलकाता पर आंग्ल समुदाय का प्रभाव बड़ा पुराना व गहरा है.
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ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एजेंट जॉब चॉरनॉक ने 1960 में कालिका क्षेत्र को 'कैलकटा' नाम दिया जो 2001 तक बरकरार रहा. यहीं सेंट जॉर्न चर्च में चॉरनॉक साहब को दफनाया गया. अंग्रेजों द्वारा बनाया गया प्रथम सार्वजनिक भवन 1787 में निर्मित सेंट पॉल कैथ्रेडल आज भी अपनी प्राचीन महत्ता व गरिमा को बनाए हुए है. अनेकों बड़े-बड़े गिरजाघरों, सरकारी-गैरसरकारी भवनों, विद्यालयों, अस्पतालों व रेंजर्स क्लब, कैलकटा क्लब, बोट क्लब, सेंटर डे टॉली क्लब जैसे मनोरंजन स्थलों में अंग्रेजी स्थापत्य कला तथा विलायती सभ्यता का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है.
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ईसाई समुदाय की कोलकाता में न केवल बड़ी संख्या है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य व जनकल्याण के क्षेत्र में इनके द्वारा किए गए कार्य, इन्हें कोलकाता में विशेष स्थान प्रदान करते हैं. एक यह भी वजह है कि यहां क्रिसमस धर्म विशेष का पर्व न रहकर सार्वजनिक महोत्सव बन जाता है.
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कोलकाता के क्रिसमस या "बड़ा दिन" पर स्थानीय प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होता है. शारदीय दुर्गोत्सव के समाप्त होते ही क्रिसमस की प्रतीक्षा होने लगती है. ऐंग्लो इण्डियंस के मुख्य निवास क्षेत्रों पार्कस्ट्रीट, चौरंगी, पार्क सरकस, वेलिजिली रोड, क्रिश्चियन पाड़ा, रिपन स्ट्रीट से लेकर बऊ बाजार तक छोटे-छोटे पंडालों में शिशु यीशु के जन्मदिन की झांकी देखी जा सकती है.
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सड़कों की सुन्दर सजावट की जाती है और दुर्गापूजा के समान यहां के सभी बाजार, बड़े दिन से पहले, 15 दिनों तक रोज खुले रहते हैं जिनमें प्रमुख है यहां का प्राचीन 'न्यू मार्केट' जहां क्रिसमस ट्री, सान्ता क्लॉज, उपहारों से भरे स्टॉकिंग्स सीटी, टोपी खिलौने तथा सजावट की वस्तुएं खरीदने के लिए ईसाई व गैर ईसाइयों की ऐसी भीड़ जमा हो जाती है कि पूछिए ही मत.
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पास ही मैगडेलेन के दर्जी पश्चिमी पोशाकों की सिलाई में दिन-रात एक कर देत है तो न्यू मार्केट के नामी बेकर 'नौहोम' और एम. एक्स. डिगामा की भट्टियां एक के बाद सुस्वाद केक, पाई और बिस्कुट बनाने में लग जाती हैं. यहां खरीदार केवल ईसाई ही नहीं होते. क्रिसमस शीत ऋतु का त्योहार है और जाड़े का मौसम कोलकाता में बड़ा ही सुहाना होता है. तब कवि सेनापति के ये भाव साकार हो उठते हैं, 'सिसिर में ससि के सरूप पावै सविताऊ, घाम हूं में चांदनी की दुति दमकाती है.'
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ऐसे सुखद परिवेश में जहां सुरधुन से पंख पसारे परदेशी पक्षी कोलकाता के चिड़ियाघर और आसपास की विभिन्न झीलों पर अड्डा जमाते हैं वहीं प्रवासी कलकतिया, क्रिसमस मनाने अपने घर, अपनों के पास आते हैं.
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कोलकाता के गिरिजाघरों में परम्परागत तरीके से प्रभु यीशू का जन्मदिन मनाया जाता है. ईश्वर की संतान के जन्मदिवस समारोह का प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए लोग व्‍याकुल रहते हैं.
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चारों ओर कोहरे से ढके विशाल वृक्ष और नीचे तिनकों की टुनगी पर झिलमिलाते ओस का. लैम्प पोस्टों से छनकर आता हल्का प्रकाश और श्रद्धावानों की अति आवाज ने सम्पूर्ण परिवेश को एक विचित्र सा सम्मोहन प्रदान कर दिया था.
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कोलकाता क्रिसमस के विशिष्ट होने की कुछ और भी वजह है. बंगाली स्वभावत: घूमने-फिरने वाले और भोजनप्रिय होते हैं. क्रिसमस पर सार्वजनिक छुट्टी होती है.
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आज के दिन बच्चों को पीठ पर लदे पन्द्रह किलो के स्कूली बैग से, पुरुषों को दफ्तरों से ओर गृहणियों को भोजन बनाने से अवकाश मिलता है.
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लोगों के झुण्ड के झुण्ड यहां के चिड़ियाघर, विक्टोरिया मेमोरियल मिलेनियम पार्क और निक्को पार्क में सिर पर टोपी लगा और मुंह से सीटी दबा मस्ती में झूमता दिख जाता है.
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ऐसा ही क्रिसमस कोलकाता का. इस प्रेम व भाईचारे का संदेश देने वाले महामानव यीशू के प्रति अनायास मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है और कविगुरु के साथ हम भी कह उठते हैं-'तुम आमादेर पिता, तोमाय पिता बोल जानी. तोमाय नत होये मानी, तुमि करो करूणा.'
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कोलकातावासी भले ही कोलकाता से दूर चलें जाएं, पर यहां के अपनेपन व गर्मजोशी का मुकाबला कोई अन्य स्थान नहीं कर सकता.
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