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भारत

बसु के निधन से राजनीति का एक अध्याय खत्म

बसु के निधन से राजनीति का एक अध्याय खत्म
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शानदार राजनीतिक सफर पूरा करने वाले ज्योति बसु का लंबी बीमारी के बाद कोलकाता में 17 जनवरी, 2010 को निधन हो गया.
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कोलकाता में ट्रेड यूनियनों से जुड़ने के बाद 1946 में ज्योति बसु पहली बार बंगाल विधानसभा के लिए चुने गए.
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पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था.
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ज्योति बसु 1952 से 1972 तक वे विधानसभा के सदस्य रहे. 1950 में प्रमोद दास गुप्ता के साथ बसु पश्चिम बंगाल कम्युनिस्ट के सयुंक्त नेता बन गए.
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1967 में बसु गठबंधन सरकार में पश्चिम बंगाल के उप-मुख्यमंत्री बने. 1977 में बसु सतगचिया सीट से भारतीय संसद के लिए चुने गए. माकपा ने चुनाव में बहुमत से जीत हासिल की और ज्योति बसु पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
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ज्योति बसु के नेतृत्व में पार्टी ने 1982, 1987, 1992 और 1996 में लगातार जीत हासिल की.
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बसु मार्क्‍सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था.
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कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक, सुधारवादी और अनेक मामलों में नजीर पेश करने वाले बसु को 1952 से पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता लगातार हासिल करने का श्रेय जाता है. इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था.
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बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया.
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बसु की पहल पर लागू किये गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई.
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बसु ने राज्य में लोकतंत्र के दायरे में रहते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिये भी अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया.
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ज्योति दा ने गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को एकजुट कर केन्द्र के समक्ष अपनी मांगें भी रखी थीं.
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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के निधन पर गहरा शोक जताते हुए कहा कि वरिष्ठ वाम नेता के निधन से राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया.
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माकपा के वरिष्ठ नेता ज्योति बसु को देश के ‘सबसे योग्य सपूतों में से एक’ बताते हुए कांग्रेस ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया.
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बंगाल का सियासी लाल ऐसी दुनिया में चला गया जहां से कोई लौट कर नहीं आता. अगर आ सकता तो बंगाल के लाखों दिलों से एक ही आवाज उठती- बसु दादा एक बार अपनी झलक दिखला जाओ, जाते-जाते हमसे कुछ कहते जाओ.
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