मां इंदिरा संग होली खेलते संजय गांधी.
संजय गांधी की मौत ने कांग्रेस ही नहीं भारत की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी हिला कर रख दिया था. दुनिया के सामने उस वक्त वो इंदिरा गांधी नहीं थी, बल्कि एक मां थीं. अपने लाडले की मौत पर अपने आंसुओं के सैलाब को अपनी छाती में दफनाती और अंदर ही अंदर टूटती हुई इंदिरा गांधी को शायद ही किसी ने रोते हुए देखा होगा.
संजय गांधी के पार्थिव शरीर के पास खड़ी इंदिरा गांधी.
मां इंदिरा की तरह ही राजनीति में माहिर थे संजय गांधी.
संजय गांधी का पार्थिव शरीर पंच तत्व में विलिन हो गया.
संजय गांधी के काम करने के तरीके से युवा काफी प्रभावित हुए.
संजय गांधी के काम करने के तरीके से युवा काफी प्रभावित हुए.
संजय गांधी की मौत ने कांग्रेस को हिलाकर रख दिया लेकिन जिसके सदमे का कोई ओर-छोर नहीं था, वो थीं इंदिरा गांधी बेटे की बुरी तरह झुलसी हुई लाश मां के सामने पड़ी थी.
संजय गांधी की मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई थी.
संजय गांधी के पार्थिव शरीर के पास खड़े राजीव गांधी.
होली के दौरान संजय गांधी.
संजय गांधी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस वैन में चढ़ाती पुलिस.
अपने लाडले की मौत पर अपने आंसुओं के सैलाब को अपनी छाती में दफनाती और अंदर ही अंदर टूटती हुई लेकिन दुनिया के सामने दीवार बनी हुई एक मां इंदिरा गांधी को शायद ही किसी ने रोते हुए देखा होगा.
विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु 23 जून 1980 को हुई थी.
महज 33 साल की उम्र में ही संजय गांधी सत्ता और सियासत की वो धूरी बन गये थे, जहां कहते हैं कि कैबिनेट भी बौना पड़ जाता था. संजय गांधी इंदिरा गांधी के लिए मजबूती बनकर उभरे तो साथ ही मजबूरी भी.
इंदिरा गांधी के पोस्टर के आगे बैठे युवा कांग्रसे के नेता संजय गांधी. कहते हैं कि इंदिरा गांधी के निर्णायक फैसलों में तब तक संजय का दखल काफी बढ़ गया था और देश पर इमरजेंसी थोपने में भी संजय की बड़ी भूमिका था. तब ट्रेनें समय से चलने लगीं, दफ्तर में बाबू वक्त पर पहुंचने लगे. अतिक्रमण हटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी और आबादी पर काबू पाने के नाम पर नसबंदी शुरु हुई. लेकिन कहते हैं कि ये सब कुछ जबरन होने लगा. नतीजा ये निकला कि 19 महीने की इमरजेंसी के बाद जब 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. रायबरेली से खुद इंदिरा गांधी और अमेठी से संजय चुनाव हार गये.
संजय गांधी का पार्थिव शरीर के पास बैठी मेनका गांधी. मेनका गांधी के पति की चिता जली और इसके साथ जल गये मेनका के सपने और जिंदगी के सारे अरमान. महज 24 साल की उम्र में मेनका की मुठ्ठी से सब कुछ फिसल गया.
संजय गांधी के पार्थिव शरीर को लेकर जाते राजीव गांधी संग कार्यकर्ता.
होली में रंग में सराबोर संजय गांधी.
अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं संग धरने पर बैठे संजय गांधी.
संजय गांधी अपनी पार्टी के प्रचार के दौरान लोगों से मिलते हुए.
एक कार्यक्रम में शिकरत के दौरान संजय गांधी.
एक हादसे में एक मां का बेटा छिना, एक प्रधानमंत्री से उसका राजनीतिक वारिस और इसके साथ देश की राजनीति का नक्शा बदल गया.
संजय गांधी अपनी पार्टी के प्रचार के दौरान.
संजय गांधी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस वैन में चढ़ाती पुलिस.
संजय गांधी अपने पार्टी कार्यकर्ताओं संग.
संजय गांधी के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए भारी मात्रा में लोग आए.
मां इंदिरा की तरह ही राजनीति में माहिर थे संजय गांधी.
रैली के दौरान कार्यकर्ताओं को संबोधित करती इंदिरा गांधी.
संजय गांधी के काम करने के तरीके से युवा काफी प्रभावित हुए.
पार्टी मीटिंग के दौरान संजय गांधी और इंदिरा गांधी.
चुनाव रैली के दौरान मां इंदिरा गांधी संग संजय गांधी.
संजय गांधी को गिरफ्तार कर ले जाती पुलिस.
संजय गांधी को गिरफ्तार कर ले जाती पुलिस.
1977 की हार ने एक नये संजय गांधी को जन्म दिया. राजनीति को ठेंगे पर रखने वाले संजय गांधी ने राजनीति का गुणा-भाग सीख लिया. कहते हैं कि चरण सिंह जैसे महत्वाकांक्षी नेता को प्रधानमंत्री बनवाकर जनता पार्टी को तुड़वा दिया. इस बीच जनता में इंदिरा गांधी की इमेज चमकाने के लिए हर हथकंडे आजमाए. साथ ही कांग्रेस में अपना यंग ब्रिगेड तैयार किया. नतीजा ये निकला कि 1980 के जनवरी में ना सिर्फ कांग्रेस ने बड़े मजे में केंद्र में सरकार बनायी बल्कि 8 राज्यों में भी कांग्रेस की सरकार बनी. तब कांग्रेस के टिकट पर 100 ऐसे युवकों ने चुनाव जीता, जो संजय के ढर्रे पर राजनीति करते थे. आलम ये था कि अक्सर इंदिरा गांधी से ये सवाल पूछा जाने लगा कि क्या संजय भी उनके कैबिनेट में शामिल होंगे. इंदिरा गांधी ऐसे सवालों को टाल जाती थीं लेकिन राजनीति को अंदर से भांपने वाले बखूबी जानते थे कि दिल्ली की किल्ली किसकी जेब में है और खुद इंदिरा गांधी के लिए भी एक मजबूत राजनीतिक वारिस मिल गया था. लेकिन एक हादसे में एक मां का बेटा छिना, एक प्रधानमंत्री से उसका राजनीतिक वारिस और इसके साथ देश की राजनीति का नक्शा बदल गया.