मुसलमानों का त्योहार ईद उल-फ़ित्र इसलाम के उपवास के महीने रमज़ान को समाप्त करते हुए मनाया जाता है.
पहला ईद उल-फ़ित्र पैगम्बर मुहम्मद ने जंग-ए-बदर के बाद मनाया था.
ईद उल-फ़ित्र शव्वल इसलामी कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है.
इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है.
इस ईद में मुसलमान 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं.
उपवास की समाप्ती की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रियादा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी.
ईद प्यार और सद्भावना का त्योहरा है.
ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं, और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है.
ईद उल-फ़ित्र के दौरान ही झगड़ों ख़ासकर घरेलू झगड़ों को निबटाया जाता है.
ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे.
ईद-उल-फित्र' दरअसल दो शब्द हैं. 'ईद' और 'फित्र'. असल में 'ईद' के साथ 'फित्र' को जोड़े जाने का एक खास मकसद है.
वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान.
साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सबकी ईद हो जाना.
यह नहीं कि पैसे वालों ने, साधन-संपन्न लोगों ने रंगारंग, तड़क-भड़क के साथ त्योहार मना लिया व गरीब-गुरबा मुँह देखते रह गए.
शब्द 'फित्र' के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फित्र उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमजान में लगा दी गई थीं.
जैसे रमजान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है.
ईद के बाद आप सामान्य दिनों की तरह दिन में खा-पी सकते हैं.
गोया ईद-उल-फित्र इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ से जो पाबंदियाँ माहे-रमजान में तुम पर लगाई गई थीं, वे अब खत्म की जाती हैं.
इसी फित्र से 'फित्रा' बना है फित्रा यानी वह रकम जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं.
ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है.
इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की, साधन संपन्न के साथ साधनविहीन की ईद भी मन जाती है.
असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है.
यह जकात भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है.इसके साथ फित्रे की रकम भी उन्हीं का हिस्सा है.
इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है.
यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अकीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक्मों पर चलने में गुजारा.
इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है.
किताबों में आया है कि रमजान में पूरे रोजे रखने वाले का तोहफा ईद है.
इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है.
अल्लाह पाक रमजान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फरमा देते हैं.
सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है. इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं.
उस रहीमो-करीम की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक मुसलसल इम्तिहान देते रहे.
इस ईद में मुसलमान 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं.
दिल्ली की जमा मस्जिद में ईद के अवसर पर सभी ने नमाज पढ कर खुदा को याद किया.
ईद उल-फ़ित्र के दौरान ही झगड़ों ख़ासकर घरेलू झगड़ों को निबटाया जाता है.
इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की, साधन संपन्न के साथ साधनविहीन की ईद भी मन जाती है.
इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है.
सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है. इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं.
यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अकीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक्मों पर चलने में गुजारा.
ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है.