प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंगलवार को जन्मदिन है. पीएम मोदी ने अपनी मेहनत के दम पर सियासी सफर में सफलता की तमाम सीढ़ियां चढ़ी हैं लेकिन उनके व्यक्तित्व को गढ़ने में एक शख्स ने बेहद अहम भूमिका अदा की. यह शख्स कोई और नहीं बल्कि गुजरात के वकील साहब थे जिन्होंने मोदी को अनुशासन और राजनीति के तमाम पाठ पढ़ाए. पीएम मोदी ने 'आजतक' को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि वकील साहब से वह अपने मन की हर बात साझा करते थे.
वकील साहब का मूल नाम लक्ष्मणराव इनामदार था. गुजरात में आरएसएस के संस्थापकों में से एक वकील साहब से पीएम मोदी की मुलाकात उस समय हुई थी, जब मोदी संघ के स्वयंसेवक थे. मोदी के चायवाले से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में प्रधानमंत्री तक के सफर में वकील साहब की अहम भूमिका थी.
इनामदार का जन्म 1917 में पुणे से 130 किलोमीटर दक्षिण में खाटव गांव में हुआ था. इनामदार ने 1943 में पुणे यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री लेते ही संघ का दामन थाम लिया था. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया और हैदराबाद में निजाम के शासन के खिलाफ मोर्चे निकाले. वे गुजरात में आरएसएस के प्रचारक के नाते आजीवन अविवाहित और सादे जीवन के नियम का पालन करते रहे.
इनामदार से मोदी 1960 में लड़कपन में पहली बार मिले थे. 1943 से गुजरात में नियुक्त इनामदार, संघ के प्रांत प्रचारक थे जो नगर-नगर घूमकर लड़कों को शाखाओं में आने के लिए प्रोत्साहित करते थे. उन्होंने धाराप्रवाह गुजराती में जब वडगर में सभाओं को संबोधित किया तो मोदी अपने भावी गुरु की वाक्पटुता पर मुग्ध हो गए.
कुछ समय बाद मोदी का एक बार फिर वकील साहब से संपर्क हुआ जो शहर में संघ के मुख्यालय हेडगेवार भवन में रहते थे. इसके बाद पीएम मोदी अपने गुरू वकील साहब के सानिध्य में आरएसएस दफ्तर आ गए. मोदी अपने गुरु के कक्ष के सामने कमरा नंबर 3 में रहते थे. हेडगेवार भवन में उनकी शुरुआत सबसे निचले स्तर से हुई. वे प्रचारकों के लिए चाय बनाते थे, उस समय पूरे कॉम्प्लेक्स की सफाई करते थे और गुरु के कपड़े धोते थे. यह सिलसिला एक साल तक चला.
मोदी ने बड़े करीब से देखा कि वकील साहब किस तरह राज्यभर में संघ का प्रचार करते थे. वे बहुत पढ़ते थे और अपने साथ एक ट्रांजिस्टर रेडियो रखते थे जिस पर बीबीसी वर्ल्ड सर्विस नियमित रूप से सुनते थे. जवानी में कबड्डी और खो-खो खेलने का शौक था लेकिन बाद में प्राणायाम से खुद को स्वस्थ रखते थे. इनामदार का स्वभाव दोस्ताना और बहुत ही सहज था. 1972 में उन्होंने औपचारिक रूप से नरेंद्र भाई मोदी को संघ का प्रचारक बना दिया. 1985 में वकील साहब का निधन हो गया.
मोदी ने 2008 में इनामदार सहित संघ की 16 महान हस्तियों की आत्मकथा का संकलन ज्योतिपुंज प्रकाशित करवाया था. उसमें उन्होंने लिखा है, ‘‘वकील साहब में दैनिक जीवन के उदाहरणों के सहारे अपने श्रोताओं को अपनी बात समझाने का कौशल था.’’ मोदी ने उदाहरण देकर बताया कि किस तरह इनामदार ने एक अनमने आरएसएस कार्यकर्ता को काम शुरू करने के लिए राजी किया- ‘‘अगर तुम बजा सकते हो तो यह बांसुरी है वरना सिर्फ लकड़ी है.’’
पीएम मोदी लक्ष्मणराव इनामदार के व्यक्तित्व को कविता के जरिए भी बयां कर चुके हैं. वर्ष 2001 में नरेंद्र मोदी और राजा भाई नेने ने मिलकर सेतुबंध पुस्तक लिखी थी. इसका प्रकाशन वर्ष 2001 में हुआ था.
अप्रैल में आई किताब नरेंद्र मोदीः अ पॉलिटिकल बायोग्राफी के लेखक एंडी मरीनो के मुताबिक, ‘वकील साहब असल में गुजरात में संघ के जनक थे. मोदी के घर छोड़ने और अहमदाबाद आने के बाद से उन्होंने उनके पिता की जगह भी ले ली थी.’’ हो सकता है कि संघ के इस अनुभवी प्रचारक ने भांप लिया हो कि मोदी की संगठनात्मक क्षमताएं संघ के कितने काम आएंगी.