प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार चुनौतियां का सामना कर रही है. फिर भी पीएम मोदी लोकप्रिय बने हुए हैं. सत्ता संभालने के बाद से मोदी सरकार लगातार उतार-चढ़ाव का सामना कर रही है. मोदी सरकार की कई योजनाओं ने काफी लोकप्रियता हासिल की और कई को लेकर सवाल भी खड़े किए गए.
गरीब सवर्णों को आरक्षण
मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम महीनों में अचानक एक विधेयक पेश किया, जिसमें शिक्षा क्षेत्र और सरकारी नौकरियों में उन सवर्णों, मुस्लिमों तथा ईसाइयों को 10 फीसदी रिजर्वेशन दिए जाने का प्रस्ताव था, जिन्हें आर्थिक रूप से पिछड़ा माना जा सके. इसकी परिभाषा में 8 लाख रुपये से कम वार्षिक आय अथवा पांच एकड़ से कम ज़मीन अथवा 1,000 वर्गफुट से कम आकार का मकान आदि मानक तय किए गए. माना जाता है कि इससे पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव 2019 में काफी लाभ मिला.
आयुष्मान भारत योजना
आयुष्मान भारत योजना या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, जिसे आमतौर पर मोदी केयर कहा जाता है, को 1 अप्रैल, 2018 से लागू कर दिया गया. वित्त वर्ष 2018-19 के आम बजट में प्रस्तावित मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों को पांच लाख रुपये तक का नकदी रहित स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाना है. बताया गया है कि 10 करोड़ गरीब परिवारों के 50 करोड़ सदस्यों को इस योजना का लाभ देने के बाद इसमें शेष भारतीयों को भी शामिल किया जाएगा.
उज्ज्वला योजना
उज्ज्वला योजना के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने करोड़ों संपन्न भारतीयों से रसोई गैस सिलेंडरों पर मिलने वाली सब्सिडी को स्वेच्छा से छोड़ देने की अपील की थी. केंद्र सरकार का दावा था कि इस अपील के चलते करोड़ों लोगों ने सब्सिडी छोड़ दिया और उसकी वजह से ही 5 करोड़ गरीब महिलाओं के रसोई घरों में सिलेंडर पहुंचा या उनके परिवारों को सीधा लाभ मिला.
दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
आजादी के बाद अब तक देश के कोने-कोने तक बिजली नहीं पहुंच पाई थी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने कदम उठाया और अब उनका दावा है कि मई, 2018 तक देश के ऐसे 18,374 गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, जहां अब तक बिजली नहीं थी.
मजबूत नेता की छवि
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी कामयाबी से मोदी मजबूत नेता के तौर पर उभरे. माना गया कि तमाम चुनौतियों के बावजूद पीएम मोदी ने एकजुट दिखने वाले विपक्ष को पटखनी दे डाली. पीएम मोदी की छवि का ही कमाल कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनावों भी बीजेपी ने जीत हासिल की.
मुद्रा लोन की सफलता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 दिसंबर को झारखंड के बोकारो में विकास की अपनी उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि पांच साल पहले स्वरोजगार के लिए बैंक से कर्ज लेना कितना मुश्किल था, 40-50 हजार रुपये का कर्ज लेने के लिए कितनी जगह हाजिरी लगानी पड़ती थी और अपना व्यापार शुरू करने में दिक्कत होती थी. हमने हालात को बदला है, बैंकों को मजबूत किया है और सामान्य जनता मुद्रा लोन के जरिये सैलून, ब्यूटी पार्लर खोले. लोगों ने टैक्सी और जीप खरीदी है और अपना कारोबार शुरू किया है.
नोटबंदी, जीएसटी पर उठे थे सवाल
असल में मई 2014 में जब मोदी सरकार ने भारत की सत्ता संभाली थी, तब अर्थव्यवस्था डगमगाती दिख रही थी. महंगाई दर में कोई सुधार नहीं था और वित्तीय घाटा 2003 के एफआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट मतलब राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन) व्यवस्था के तहत निर्धारित सीमा से कहीं अधिक था.
बिजनेस टुडे के संपादक रह चुके प्रोसेनजीत दत्ता अपने एक लेख में कहते हैं कि शुरुआत में मोदी सरकार सब सही करती दिख रही थी. वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भी सरकार को फायदा पहुंचा था, क्योंकि राजकोषीय मुनाफा बढ़ा जो उस समय की बड़ी जरूरत थी. इससे विदेशी निवेशक आकर्षित हुए, विनिर्माण प्रतिस्पर्धा की बात छिड़ी, राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण हुआ और उन कारोबारियों को आड़े हाथों लिया गया जो कर्ज नहीं चुका पाए थे.
मोदी सरकार ने जब यह देखा कि जरूरत से ज्यादा क्षमता और पुराना कर्ज ढो रही प्राइवेट कंपनियां निवेश करने से कतरा रही हैं तो सरकार ने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और रोजगार और मांग बनाने के लिए बुनियादी ढांचे पर खर्च करना शुरू कर दिया. यह उपाय काम आया और 2016 से अर्थव्यवस्था बेहतर होने लगी.
मगर फिर 8 नवंबर, 2016 का दिन नोटबंदी का झटका लेकर आया. इस एक कदम ने 86 प्रतिशत मुद्रा निगलते हुए अर्थव्यवस्था को झटका दिया. ग्रामीण क्षेत्रों और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ. इस स्थिति से उबरने के लिए सरकार ने एक और फैसला, माल और सेवा कर (जीएसटी) का लिया. कहा गया कि इससे कारोबार क्षेत्र में उठा-पटक मच गई.
अनुच्छेद 370 पर कड़ा फैसला
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में शपथ लेने के कुछ ही महीने बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला लिया. इस अनुच्छेद को वापस लिए जाने से पहले सरकार ने काफी सावधानी बरती और राज्य में भारी सुरक्षा बलों की तैनाती और पर्यटकों को राज्य से तुरंत बाहर निकलने को कहा. मोदी सरकार के इस फैसले से 370 को निरस्त करने से जिस हिंसा की आंशका व्यक्त की जा रही थी वो निराधार साबित हुई. माना गया कि सरकार ने 370 को रद्द करने से पहले जो ऐहतियातन कदम उठाए वो काफी कारगर साबित हुआ.
मोदी ब्रांड का जलवाइन हालातों को लेकर जब दिल्ली विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साइंस के अस्सिटेंट प्रोफेसर राजन झा से सवाल किया कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर इतनी अफसलताओं के बावजूद जनता के बीच मोदी ब्रांड का जलवा कायम कैसे है? वह कहते हैं कि असल में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मिल रही नाकामी राष्ट्रवाद के मुद्दे के सामने धूमिल हो जा रही है.
राजन झा याद दिलाते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सबको लग रहा था कि कांग्रेस बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को चुनौती देगी. क्योंकि कांग्रेस ने तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही थी.