जेल में 17 दिन बिताने वाले निलंबित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को एक स्थानीय अदालत से जमानत मिलने के बाद रिहा कर दिया गया.
वर्ष 2002 में हुए दंगों के मामले में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाये जाने के बाद भट्ट और गुजरात सरकार के बीच टकराव सार्वजनिक हो गया था.
सत्र न्यायाधीश वी के व्यास ने भट्ट को इस शर्त पर जमानत दी कि वह जांच में सहयोग करेंगे और जब कभी उन्हें तलब किया जायेगा, वह हाजिर रहेंगे.
गोधराकांड के बाद हुए दंगों में मोदी की सह-अपराधिता का आरोप लगाकर विवादों में आये भट्ट की जमानत अर्जी का राज्य सरकार ने विरोध किया.
भट्ट को मोदी को फंसाने के लिये सबूतों को कथित तौर पर गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
अपनी रिहाई होते ही साबरमती केंद्रीय जेल से बाहर निकलने के बाद भट्ट सहज नजर आये और कहा कि कानून का शासन ही प्रभावी रहा.
भट्ट ने कहा, ‘मैं इस बात से खुश हूं कि कानून का शासन कायम रहा. यह प्रदेश प्रायोजित दंगों के पीड़ितों की जीत है. जेल में रहना विश्राम काल की तरह रहा. मैं अब भी अपने मकसद के प्रति प्रतिबद्ध हूं. मकसद मुझसे बड़ा है.’
भट्ट का उनके मेमनानगर स्थित आवास पर पत्नी श्वेता भट्ट और दो बच्चों तथा परिवार के अन्य सदस्यों ने उनका भावुक अंदाज में स्वागत किया.
30 सितंबर को पुलिस द्वारा अपने साथ किये गये कथित र्दुव्यवहार पर भट्ट ने कहा, ‘मैं इस बारे में (तब तक) नहीं कहूंगा जब तक कि सही समय और उचित मंच नहीं मिलता.’
उन्होंने कहा कि वह गुजरात आईपीएस अधिकारियों के संघ और अपने परिवार के समर्थन के शुक्रगुजार हैं.
रिहाई के बाद अपनी पत्नी से गले मिलते संजीव भट्ट.
भट्ट को मोदी को फंसाने के लिये सबूतों को कथित तौर पर गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.