लैला-मजनूं को अलग करने की लाख कोशिशें की गईं. लैला की किसी और से शादी कर दी गई. लैला बीमार पड़ गई और चल बसी. बाद में लैला की कब्र के पास ही मजनूं की लाश भी बरामद हुई. मजनू ने अपनी कविता के तीन चरण यहीं एक चट्टान पर उकेर रखे थे. लैला के नाम यह मजनू का आखिरी संदेश था.
उनकी मौत के बाद दुनिया ने जाना कि दोनों की मोहब्बत कितनी अजीज थी. दोनों को साथ-साथ दफनाया गया ताकि इस दुनिया में न मिलने वाले लैला-मजनूं जन्नत में जाकर मिल जाएं.
रांझे का दिल टूट गया और वह जोग लेने बाबा गोरखनाथ के प्रसिद्ध डेरे टिल्ला जोगियां चला गया. रांझा भी कान छिदाकर 'अलख निरंजन' का जाप करता पूरे पंजाब में घूमने लगा. आखिर एक दिन वह हीर के ससुराल वाले गांव पहुंच गया. फिर दोनों वापस हीर के गांव पहुंच गए, जहां हीर के मां-पिता ने उन्हें शादी की इजाजत दे दी, लेकिन हीर का चाचा कैदो उन्हें खुश देखकर जलने लगा. शादी के दिन कैदो ने हीर के खाने में जहर मिला दिया. हीर की मौत हो गई. नाकाबिल-ए-बर्दाश्त गम का मारे रांझा ने उसी जहरीले लड्डू को खाकर जान दे दी.
जयचंद्र ने संयोगिता के स्वयंवर में पृथ्वीराज को नहीं बुलाया, उल्टा उन्हें अपमानित करने के लिए उनका पुतला दरबान के रूप में दरवाजे पर रखवा दिया. लेकिन पृथ्वीराज बेधड़क स्वयंवर में आए और सबके सामने राजकुमारी को अगवा कर ले गए. राजधानी पहुंचकर दोनों ने शादी कर ली.
कहते हैं कि इसी अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद्र ने मोहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया. गौरी को 17 बार पृथ्वीराज ने हराया. 18वीं बार गौरी ने पृथ्वीराज को धोखे से बंदी बनाया और अपने देश ले गया, वहां उसने गर्म सलाखों से पृथ्वीराज की आंखे तक फोड़ दीं.
इससे पहले कि दुश्मन उन्हें मारते उन्होंने खुद ही अपनी जिंदगी खत्म कर ली, जब संयोगिता को इस बात की खबर मिली तो उन्होंने भी सती होकर जान दे दी.
अर्जुमंद बानो का 19 साल की उम्र में सन 1612 में शाहजहां से निकाल हुआ. अर्जुमंद शाहजहां की तीसरी पत्नी थी पर शीघ्र ही वह उनकी सबसे पसंदीदा पत्नी बन गईं. उनका निधन बुरहानपुर में 17 जून, 1631 को 14वीं संतान, बेटी गौहारा बेगम को जन्म देते वक्त हुआ. उनको आगरा में ताज महल में दफनाया गया.