उत्तर प्रदेश की तरह रंग बिरंगे और अद्भुत चुनाव और कहीं नहीं हो सकते. हो भी क्यों नहीं यहीं से तो केन्द्र की तरफ रास्ता जाता है.
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का बेटा होने के नाते विदेश में पढ़े-लिखे अखिलेश यादव राज्य और पार्टी में अपने लिए बड़ी जिम्मेदारी की अपेक्षा करेंगे. पार्टी की छवि को सुधारने की तरफ उनका विशेष ध्यान है.
सन् 1984 से यूपी की सत्ता से बाहर कांग्रेस ने जातिगत और धार्मिक मोर्चे पर भी अपना वोटर खो दिया है. ले दे कर कांग्रेस के पास एक बार फिर गांधी परिवार का एक चेहरा है, जिसे दिखाकर वे वोटरों के पास पहुंचे.
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने एक बार फिर अपने पुराने वोट बैंक मुसलमान और यादवों पर दांव लगाया है. हालांकि उन्हें ठाकुरों और वैश्यों से भी समर्थन की उम्मीद है.
कांग्रेस के पास नेहरू-गांधी परिवार के युवराज राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा ही वो चेहरे हैं, जिन पर उत्तर प्रदेश में सालों बाद कांग्रेस का जादू चलाने की जिम्मेदारी है.
दलित और मुख्य रूप से जाटवों का विकास उत्तर प्रदेश में लगभग नहीं के बराबर हुआ. मायावती के पांच साल के शासन में भी जो पैसा दलितों के उत्थान के लिए लगना चाहिए था उसका दुरुपयोग कर पार्कों और मूर्तियों पर लगता रहा.
उत्तर प्रदेश को अगर एक देश की तरह देखा जाए तो यह जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का सातवां बड़ा देश होगा. लोकसभा को 540 में से 80 सांसद और राज्यसभा को 31 सांसद उत्तर प्रदेश से मिलते हैं.
बीजेपी ने भी जातिगत राजनीति को भुनाने के लिए कोई कसर नहीं छोडी. बीजेपी अपनी तेज तर्रार नेता उमा भारती को उत्तर प्रदेश लेकर आयी ताकि ओबीसी के वोट पर कब्जा किया जा सके.
उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों का किसी भी अन्य पार्टी से ज्यादा इंतजार कांग्रेस को है. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की धमकियों की काट कांग्रेस यूपी में तलाश रही है.
सारी बड़ी-बड़ी बातों के बीच उत्तर प्रदेश में असल मुद्दे गौड़ हो जाते हैं, जबकि मुद्दे राम मंदिर, विपक्षीयों को जेल भेजना और उनके लिए फैसलों को पलटने तक ही बात रह जाती है.
उत्तर प्रदेश की 32 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है जबकि राष्ट्रीय औसत 24 प्रतिशत है. यही नहीं प्रदेश में हर 10 में से 4 लोग अनपढ़ हैं और यहां स्त्री-पुरुष अनुपात 898:1000 है.
मायावती ने पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनकर पहले ही इतिहास रच दिया है. पिछले 4 दशकों में वह अकेली मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है.
भारतीय जनता पार्टी उमा भारती को मध्य प्रदेश से उठाकर यूपी में ओबीसी वोट बैंक को अपनी तरफ करने के इरादे से लेकर आयी. इसके बावजूद बीजेपी अपने जातिगत समीकरणों में बुरी तरह से उलझी हुई है. राजनाथ सिंह, लालजी टण्डन, उमा भारती और अब बाबू सिंह कुश्वाह के रूप में पार्टी किसी-किस जाति को अपने पक्ष में पूरी तरह से करने में कितनी सफल रही यह तो नतीजे ही बताएंगे.
उत्तर प्रदेश के चुनाव का रास्ता सीधे दिल्ली के रायसिना हिल तक जाता है. दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले 13 प्रधानमंत्रियों में से 8 उत्तर प्रदेश की राजनीति से ही निकले हैं.