यूपी चुनाव में सबसे बड़ी जंग दो युवा नेता राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच है. अखिलेश जहां यूपी की राजनीतिक नेतृत्व के उभरते चेहरे हैं, तो राहुल गांधी देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की यूपी में खोई चमक वापस लाने में लगे हैं.
चुनाव प्रचार से पहले सपा की छवि कंप्यूटर और अंग्रेजी के विरोधी के रूप में बनी हई थी. लेकिन अखिलेश यादव ने इस छवि को सुधारने की कोशिश की. वो खुद एक साइकिल पर चुनाव प्रचार करते थे.
सत्ता हासिल करने की जंग में राहुल ने युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं और यूपी से बाहर के कांग्रेस विधायकों का सहयोग लिया. उन्होंने यूपी को 40 जोनों में बांट दिया. हर जोन में 10 विधानसभा क्षेत्र शामिल थे. प्रत्येक जोन का एक पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया.
राहुल जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापिस आने के लिए राज्य के मुस्लिम, कर्मी और दलित वर्ग पर अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी है, इसलिए उन्होंने इस वर्ग से सीधे जुड़कर उनके दिल में अपनी जगह बनाने की हर संभव कोशिश की.
राहुल गांधी ने यूपी की जनता को अपनी और खींचने के लिए केंद्र द्वारा बनाए गए सूचना के अधिकार, खाद्य सुरक्षा बिल और मनरेगा जैसी उपलब्धियों का जिक्र किया.
राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख नेताओं के चुनाव प्रचार अभियान के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव प्रचार में राहुल ने सूबे के अलग-अलग हिस्सों में 211 रैलियां कीं.
यूपी के दलितों और आम लोगों से जुड़ने के लिए राहुल अपनी रैलियों के दौरान हमेशा सफेद कुर्ता-पजामा पहने दिखे. दलितों के घरों में समय गुजारकर उन्होंने इस अपेक्षित वर्ग से जुड़ने की कोशिश की.
अखिलेश ने सपा उम्मीदवारों को चुनाव का टिकट देते वक्त उनकी छवि पर खासा ध्यान दिया. बाहुबलियों की बजाय साफ-सुथरी छवि वाले प्रोफेशनल्स को टिकट देने पर ज्यादा जोर दिया गया.