वैष्णो देवी मंदिर एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है.
माता वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
वैष्णो देवी उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है. यह मंदिर करीब 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड के द्वारा की जाती है.
हर साल मां वैष्णों देवी की दर्शन के लिए लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है.
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं. उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है.
यह कहा जाता है कि माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुंच जाता है.
हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, यहां दूर-दूर से हर साल लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं.
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया. एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गांव में माता का भण्डारा रखा और सभी गांववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया. पहली बार तो गांववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है.
श्रीधर ने भैरवनाथ को भी अपने शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था. भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई. अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए मां वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई. भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी.
जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने एक गुफा में नौ माह तक तपस्या की. इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने पहरा दिया. आज इस पवित्र गुफा को 'अर्ध कुंमारी’ के नाम से जाना जाता है. अर्ध कुंमारी के पास ही माता की चरण पादुका भी है. यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था. कहते हैं उस वक्त हनुमानजी मां की रक्षा के लिए मां वैष्णो देवी के साथ ही थे.
हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए. आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियां दूर हो जाती हैं.
जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है. इस स्थान पर मां काली (दाएं), मां सरस्वती (मध्य) और मां लक्ष्मी पिंडी (बाएं) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है.
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है.
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी. माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा.
समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की. श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे. वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे. एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया. भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं. उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है.उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ. भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया. उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया.
9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूंढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था. भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं. नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं. इसके बाद वैष्णो देवी ने ‘अर्ध कुमारी’ के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं.
भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.
भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की. देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी. उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें. इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.
मां वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू होता है. जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं.
गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे हर साल यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेन चलाती है.
जम्मू-कश्मीर रेलवे स्टेशन पर उतरते ही आपको चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात मिलेंगे. इससे यहां किए गए सुरक्षा इंताजामों का पता चलता है.
जम्मू भारत के नैशनल हाइवे 1-A पर है. इसलिए यदि आप बस या टैक्सी से जाना चाहते हैं तो भी यह बेहद आसान है. उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है.
जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए थोड़ी-थोड़ी देर में बसें मिलती हैं, जिनसे 2-3 घंटे में आसानी से कटरा पहुंचा जा सकता है.
यदि आप टैक्सी से कटरा पहुंचना चाहते हैं तो आप 1000 से 1500 रुपये में करीब 1-2 घंटे में ही कटरा तक पहुंच सकते हैं.
कम समय में मां के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं. लगभग 700 से 1400 रुपये खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'सांझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से 2.5 किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुंच सकते हैं.
हेलिकॉप्टर बुकिंग के लिए
यहां क्लिक करें. मां वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है. अधिकांश यात्री यहां विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं. मां के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है. कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है.
मां के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है. कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है.
यात्री पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहां सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं.
यात्री पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहां सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं.
एक बात याद रखना बेहद जरूरी है कि यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है. इसलिए जब यात्रा शुरू करनी हो तभी यात्रा पर्ची लेना सही होता है.
पूरी यात्रा में जगह-जगह पर खानेपीने की व्यवस्था है. इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं. कटरा, भवन और भवन तक की चढ़ाई के अनेक स्थानों पर 'क्लॉक रूम' की सुविधा भी उपलब्ध है, जिनमें एक निश्चित शुल्क अदा कर यात्री अपना सामान जमा कर सकते हैं और आगे की यात्रा आसानी से पूरी कर सकते हैं.
यदि आपके पास छोटे बच्चे हैं तो भवन तक की यात्रा के दौरान आप किराए पर पिट्ठू ले सकते हैं.
बुजुर्ग और चढ़ाई करने में असमर्थ लोग पालकी, घोड़े या टट्टू की सुविधा भी ले सकते हैं.
आजकल अर्ध कुमारी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, जिसमें लगभग 4 से 5 यात्री एक साथ बैठ सकते हैं.
माता की गुफा के दर्शन करने के लिए कुछ भक्त पैदल चढ़ाई करते हैं और कुछ इस कठिन चढ़ाई को आसान बनाने के लिए पालकी, घोड़े या पिट्ठू किराए पर लेते हैं.
एक व्यक्ति के लिए कटरा से भवन (पवित्र गुफा) तक की चढ़ाई का पालकी, पिट्ठू या घोड़े का किराया 350 से 1200 रुपये तक होता है.
पालकी, पिट्ठू या घोड़े पर छोटे बच्चों को साथ बैठाने या ओवरवेट व्यक्ति को बैठाने का आपको अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा.
श्राइन बोर्ड ने यहां जगह-जगह ठहरने की व्यवस्था भी की है. इनके कमरे बुक करने की ऑनलाइन सुविधा भी उपलब्ध है. यहां कमरे 60 रुपये से लेकर 1200 रुपये तक मिल जाते हैं.
नवरात्रि के दौरान मां वैष्णों देवी के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. कई बार श्रद्धालुओं की अत्यधिक संख्या से होने वाली परेशानी से बचने के लिए पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद कर दिया जाता है. इस बार एक लाख अस्सी हजार तीर्थयात्रियों ने नवरात्र के पहले पांच दिन में माता वैष्णो देवी का दर्शन किया. नवरात्रि के दौरान दो लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने जम्मू कश्मीर के कटरा में त्रिकुट पहाड़ियों पर स्थिति माता वैष्णोदेवी गुफा की यात्रा की.
मां वैष्णों देवी श्राईन बोर्ड ने काफी कम पैसे में भी कटरा से भवन तक की यात्रा के दरम्यान ठहरने की व्यवस्था कर रखी है.
हर साल दशहरे के दौरान कटरा में देश की समृद्ध संस्कृति और परंपरा को दर्शाने वाली एक झांकी निकाली जाती है.
इन झांकियों आयोजन कटरा के सांस्कृतिक मंच द्वारा किया जाता है.
इन सांस्कृतिक जुलूसों के दौरान श्रद्धालु जम्मू की संस्कृति एवं परंपराओं को करीब से देख सकते हैं.
सांस्कृतिक कार्यक्रमों और पर्यावरण जागरुकता से संबंधित झांकियां भी निकाली जाती हैं.
इसके अलावा पारंपरिक जम्मू-कश्मीर के परिवार और उनकी संस्कृति को भी इन झांकियों में दर्शाया जाता है.
इन झांकियों के दौरान एंबुलेंस और सुरक्षादस्ता साथ-साथ चलता है.
माता वैष्णों देवी श्राईन बोर्ड ने काफी कम पैसे में भवन के समीप ही मनोकामना भोजनालय खोल रखा है.
मनोकामना भोजनालय में आप दर्शन के बाद जलपान भी कर सकते हैं और इसके अहाते से माता के दरबार का विहंगम दृश्य भी देख सकते हैं.
माता के भवन के समीप ही निशुल्क मुंडन गृह भी है जहां लोग अपने बाल का दान करते हैं.
यहां खच्चर बुहत उपयोगी हैं. इनकी मदद से ही कई सामान कटरा से भवन तक लाये जाते हैं.
आइये जाने कि माता वैष्णों देवी यात्रा के दौरान किन-किन बातों का ख्याल रखना चाहिए. वैसे तो मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए सालों भर श्रद्धालु जाते हैं लेकिन यहां जाने का सर्वोत्तम मौसम गर्मी है. सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है. अत: इस मौसम में यात्रा करने से बचें.
ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढि़यों का उपयोग न करें. भवन ऊंचाई पर स्थित होने से यहां तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियां हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयां जरूर रखें. चढ़ाई के वक्त जहां तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएं ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो.
पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी. ट्रेकिंग शूज चढ़ाई में आपके लिए बहुत आरामदायक होंगे. हां एक बात जरूर याद रखिएगा कि मां का जयकारा आपके रास्ते की सारी मुश्किलें हल कर देगा.