क्या दिल्ली क्या लाहौर: सिर्फ जमीन बंटी है, सनद रहे एक्टरः विजय राज, मनु ऋषि चड्ढा, राज जुत्शी, विश्वजीत प्रधान
डायरेक्टरः विजय राज
लकीर के उस पार बताया जाता है कि पाकिस्तान है. इस तरफ हिंदुस्तान है. ये
बताना जरूरी हो जाता है क्योंकि न बताया जाए तो फर्क समझ न आए. वहां भी
ऊपरी हिस्से के लोग पंजाबी बोलते हैं, यहां भी. वहां भी क्रिकेट के लिए
दीवाने हुआ जाते हैं, यहां भी. वहां भी करप्शन है और यहां भी. वहां वालों
को बताया जाता है कि सारे फसाद की जड़ हिंदुस्तान वाले हैं और हमें भी
सिखाया जाता है कि पाकिस्तान से नफरत करो.
मगर इस शोर के बीच एक
पुराने बरगद के नीचे कुछ दरवेश बैठे रहते हैं. कंधों पर कौओं को जमाए.
उन्हें यहां वहां जाने के लिए वीजा नहीं चाहिए होता. ये दरवेश किस्से
सुनाते हैं. साझेपन के. ऐसा ही एक किस्सा अब पर्दे पर नुमाया हुआ है. नाम
है क्या दिल्ली, क्या लाहौर. ये किस्सा उस झोंपड़ी सी दिखती आउटपोस्ट से
शुरू होता है और वहीं पर खत्म. मगर सच्चे किस्से खत्म कहां होते हैं. वे तो
बीज की तरह हमारे भीतर धंस जाते हैं. फिर आंच नमी पा जब तब बढ़ने लगते
हैं. क्या दिल्ली क्या लाहौर देखिए, ताकि सनद रहे कि सिर्फ जमीन बंटी है.
और इस बंटने के पहले सब कुछ साझा था, है और रहेगा.