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भारत

2014 की लीक से हटकर फिल्में

2014 की लीक से हटकर फिल्में
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2014 में बॉलीवुड ने कमाई के कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए. लेकिन यह साल कुछ ऐसी फिल्मों का भी रहा जो कई मोर्चों पर बॉलीवुड की लोकप्रिय धारा में लीक से हटकर साबित हुईं. इनमें 'हैदर' जैसी साहसिक-राजनीतिक फिल्म थी तो महिलाओं को ताजे परिप्रेक्ष्य में पेश करने वाली 'हाईवे' और 'क्वीन' भी. इन फिल्मों को याद किए बिना 2014 का बॉलीवुड पाठ अधूरा है.
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हैदर: सिनेमाई साहस का नमूना
एक्टर:
शाहिद कपूर, तब्बू, केके मेनन, इरफान खान
डायरेक्टर: विशाल भारद्वाज
फिल्म यूं तो शेक्सपीयर के 'हेमलेट' का भारतीय रूपांतरण थी, लेकिन कश्मीर की पृष्ठभूमि के चलते इसका कथानक बेहद दिलचस्प हो गया. आरोप लगा कि फिल्म कश्मीर में सेना की भूमिका को नकारात्मक तरीके से दिखाती है. ट्विटर पर हैदर को बॉयकॉट करने के लिए कैंपेन तक चलाए गए. लेकिन सिनेमाई साहस और कथानक के मोर्चे पर विशाल भारद्वाज की इस फिल्म को बड़े पैमाने पर सराहा गया. शानदार अभिनय, चुस्त डायरेक्शन, विहंगम दृश्यों और मजबूत राजनीतिक स्टैंड को सामने रखती यह फिल्म बिलाशक विशाल की और साल की सबसे उम्दा फिल्मों में रही.

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क्वीन: एक लड़की के पंछी होने की कहानी
एक्टर: कंगना रनोट, राजकुमार राव, लीजा हेडन
डायरेक्टर: विकास बहल
उस देश में जहां लड़कियों का डकार लेना भी ठीक नहीं समझा जाता, क्वीन एक हिम्मती कहानी थी. महिलाओं को आजाद परिप्रेक्ष्य में सामने रखती. यह राजौरी गार्डन से निकली एक महिला के दकियानूसी जालों को साफ कर अपने फैसलों को लेकर आत्मनिर्भर होने की कहानी है. बॉलीवुड में महिलाओं की छवि हमेशा आलोचकों के निशाने पर रही है. लेकिन इस साल हमने ऐसी फिल्म देखी जो एक महिला के लिए चुनने की आजादी का सम्मान करती है. फिल्म ये भी बताती है कि 'मैंने होठों से लगाई तो हंगामा हो गया' गाने वाली औरत जरूरी नहीं कि आजादी के नाम पर आत्मघात की तरफ ही बढ़े. अगर आपने नहीं देखी, तो वाकई एक अच्छी फिल्‍म मिस कर दी.
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  • 4/18
हाईवे: तुममें हिम्मत है तो बगावत कर लो
एक्टर: आलिया भट्ट, रणदीप हुड्डा
डायरेक्टर: इम्तियाज अली
अमीर घर की एक लड़की अपनी आरामशुदा जिंदगी में जो नहीं कर पाती, वह अगवा कर लिए जाने के बाद करती है. एक अनपढ़ अल्हड़ हरियाणवी किडनैपर के साथ वह जिंदगी को एक्सप्लोर करती है, एडवेंचर का सपना पूरा करती है, इश्क करती है और उत्पीड़न के बरसों पुराने बोझ को दबा-छिपाकर नहीं रखती, उस बारे में एक साहसी फैसला लेती है. अमीरों के बाथरूम में भी सब कुछ सामान्य नहीं होता, ऐसे कई स्याह सच सिनेमाई पर्दे पर दिखा गई यह फिल्म. अभिनय के लिहाज से आलिया का सर्वश्रेष्ठ काम.
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फाइंडिंग फैनी: अंग्रेजी का स्वागत है!
एक्टर: दीपिका पादुकोण, नसीरुद्दीन शाह, डिंपल कपाड़िया, पंकज कपूर
डायरेक्टर: होमी अडजानिया
फैनी एक रूपक है एक पुरानी प्रेमिका का जो गुम गई है. लेकिन उसकी खोज में खुद को पा लेने की कहानी है यह फिल्म. 'फाइंडिंग फैनी' के रूप में बॉलीवुड को एक सफल मेनस्ट्रीम अंग्रेजी फिल्म मिली है. यह हिंदी में कहानी कहने के परंपरागत तरीके को तोड़ती है और चीजों को संपूर्णता में देखने का आग्रह पैदा करती है. फिल्म अपने क्रूर और परिहास पूर्ण ढंग के नैसर्गिक अंत के लिए भी याद की जाएगी. फाइंडिंग फैनी शहर के खिलाफ, इस शहर की कोख से निकले व्यक्तिवाद के खिलाफ और इस व्यक्तिवाद का परचम बने छिछले एकांत के खिलाफ एक बगावत है. आंखों को अनंत में टिकाकर डिंपल की आंखों के कोरेपन पर बोलते पंकज कपूर. सब कुछ हार कर कंधे झुका चुके बच्चे से नजर आते बूढ़े नसीरुद्दीन शाह. उफ्फ, हिंद वालों. कोई तुमसे रश्क कर सकता है कि तुमने इन दोनों को एक्टिंग करते देखा है.
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रंग रसिया: कला की बोल्डनेस और बोल्डनेस की आजादी
एक्टर:  रणदीप हुड्डा, नंदना सेन
डायरेक्टर: केतन मेहता
पहली बार भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में किसी लीड एक्ट्रेस ने अपना स्तन दिखाया है. अपने बोल्ड सब्जेक्ट की वजह से फिल्म विवादों में भी रही. इसीलिए 2008 में बनी फिल्म 2014 में रिलीज हो पाई. इस स्तर की बोल्डनेस के लिहाज से भारतीय सिनेमा में यह एक 'पाथब्रेकिंग' फिल्म है.
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  • 7/18
कटियाबाज: मेनस्ट्रीम सिनेमा में कटिया
किरदारः लोहा सिंह (कटियाबाज), रितु महेश्वरी (आईएएस), हाजी इरफान सोलंकी (समाजवादी पार्टी विधायक)
डायरेक्टर: फहद मुस्तफा, दीप्ति कक्कड़
सबसे पहले तो आप ये समझ लें कि कटियाबाज तकनीकी तौर पर तो डॉक्युमेंट्री है, मगर असल में यह एक फिल्म है. फिल्म से भी ज्यादा यह रियल लाइफ का रिएलिटी शो है. यह किसी भी सिनेमाई टूल का इस्तेमाल न करते हुए यथार्थ का कूड़ा आपके मुंह पर उछालती है. फिर आप मुंह पर गिर आई पुरानी चाय की पत्ती, फलों के छिलके जैसे-जैसे हटाते हैं, एक-एक करके हर यथार्थ का सामना आपसे होता जाता है. और अंत में यह फिल्म आपकी जीभ पर हकीकत से उपजा एक कसैलापन छोड़ जाती हैं. कटियाबाज बॉलीवुड के मेनस्ट्रीम सिनेमा में कटिया फंसाना है. आने वाले साल में ऐसी फिल्में और बनेंगी, ऐसी अपेक्षा.
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मिस लवली: सी ग्रेड सिनेमा का स्याह सच
एक्टर: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, निहारिका सिंह, अनिल जॉर्ज
डायरेक्टर: आशिम आहलूवालिया
बॉलीवुड में पहली बार किसी ने 80 के दशक की C ग्रेड फिल्मों का स्याह सच दिखाने की कोशिश की. वह सच जिसमें नकली खून, रबड़ के डरावने मास्क, गदराए बदन वाली अभिनेत्रियां और फिल्में बनाने वाले दो भाई हैं. ऑडियंस की सीमाओं और खामियों के बावजूद फिल्म सी ग्रेड रेट्रो संसार को देखने का एक जरिया मुहैया कराते है.
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आंखों देखी: एक नजरिया जिंदगी का ऐसा भी हो
एक्टर:
संजय मिश्रा, रजत कपूर, नमित दास
डायरेक्टर: रजत कपूर
सिर्फ अपनी आंख से देखे हुए पर यकीन है, किसी और पर नहीं. कैसा होगी उस शख्स की कहानी जो इस वाक्य को जिंदगी का एकमात्र सिद्धांत बना ले और उसे सनकपन की हद तक उसे फॉलो करे. लटके-झटके वाले बॉलीवुड में एक ताजी हवा का झोंका है फिल्म 'आंखो देखी'. ऋषिकेश मुखर्जी और मनोहर श्याम जोशी की परंपरा की फिल्म है जो मध्यवर्गीय चालाकियों और चिंताओं के बीच घूमती है, फिर भी अपना स्थायी गीलापन बचाए रखती है. जिसके परचम तले सबसे देर से आते हैं घर के चाचा, जो सबके लिए मूंगफली लाते हैं, लेकिन पेड़े का लिफाफा चुपके से जाकर चाची को थमा देते हैं. फिल्म जहां जाकर खत्म होती है, वह भी चौंकाने वाला है.
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  • 10/18
लायर्स डाइस: सिस्टम के खिलाफ
एक्टर:
नवाजुद्दीन सिद्दीकी, गीतांजलि थापा
डायरेक्टर: गीतू मोहनदास
शहर आकर काम करने वाले मजदूरों और उनके शोषण की कहानी को सामने रखती है फिल्म 'लायर्स डाइस'. हिमाचल प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म एक ऐसी युवा आदिवासी मां की कहानी कहती है जो तीन साल की बेटी के साथ मिलकर अपने लापता पति को खोजने के लिए शहर का रुख करती है जहां उसका पति मजदूरी करता है. सफर के दौरान उसकी मुलाकात सेना के एक भगोड़े अधिकारी से होती है जो मंजिल तक पहुंचाने में उनका साथ देने का वादा करता है. 61वें राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड में फिल्म बेस्ट एक्ट्रेस और बेस्ट सिनेमेटोग्राफी के पुरस्कार अपने नाम किए. 2015 के ऑस्कर समारोह के लिए यह भारत की औपचारिक एंट्री बनी. फिल्म सिस्टम के खिलाफ गुस्से और निरर्थकता का भाव जगाती है. साथ ही भारत के सामाजिक राजनीतिक हालात की पृष्ठभूमि में महिला और पुरुष के संबंधों के नए आयाम भी तलाशती है. 
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  • 11/18
सुलेमानी कीड़ा: फिल्म राइटर बनने का कीड़ा
एक्टर: नवीन कस्तूरिया, मयंक तिवारी, अदिति वासुदेव
डायरेक्टर: अमित मासुरकर
फिल्म की कहानी दो लोगों की जिंदगी पर आधारित है. ये दोनों किरदार फिल्मों की कहानी लिखना चाहते हैं. वह अपनी स्क्रिप्ट 'सुलेमानी कीड़ा' के साथ बॉलीवुड को हिला देने का बड़ा सपना देखते हैं. बॉलीवुड के लिहाज से फिल्म का कथानक ताजा है. बॉलीवुड में अब ऐसी बिना बड़े सितारों वाली लो बजट कॉमेडी फिल्में अपनी जगह बना पा रही हैं.
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  • 12/18
मंजूनाथ: जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं!
एक्टरः
सशो सत्यीश सारथी, यशपाल शर्मा, सीमा बिस्वास, अनजोरी अलख, फैजल रशीद, किशोर कदम, जगदीश खट्टर
डायरेक्टरः संदीप ए वर्मा

मंजूनाथ एक ऑयल कंपनी का ईमानदार अधिकारी था. उसने पेट्रोल में मिलावट करने वाले माफिया पर सख्ती की और बदले में छाती में छह गोलियां मिलीं. ये हादसा हुआ साल 2005 को. इसी घटना को आधार बनाकर फिल्म बनाई गई है. हमारे लिए मंजूनाथ की एक हादसे का शिकार ईमानदार आदमी भर की पहचान थी. ये फिल्म उस पहचान को एक शक्ल, एक जिंदगी मुहैया कराती है.एक एक किरदार के मैनरिज्म और उभार पर खूब काम किया गया है. फिल्म के इक्का दुक्का गाने भी एक आम आदमी के संघर्ष को गाढ़ापन और रवानी देते हैं. नैरेशन खुद मंजूनाथ करता है. मरा हुआ मंजूनाथ. और वह बीच बीच में रुककर जब आपकी तरह आंख ठिठका सवाल करता है, तो हम खुद को कटघरे में खड़ा पाते हैं. यही सच है. हमारे आसपास मंजूनाथ लड़ते रहते हैं, मरते रहते हैं और हम मुल्क पर नाज करने के बहान खोजते रहते हैं.

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  • 13/18
क्या दिल्ली क्या लाहौर: सिर्फ जमीन बंटी है, सनद रहे
एक्टरः विजय राज, मनु ऋषि चड्ढा, राज जुत्शी, विश्वजीत प्रधान
डायरेक्टरः विजय राज
लकीर के उस पार बताया जाता है कि पाकिस्तान है. इस तरफ हिंदुस्तान है. ये बताना जरूरी हो जाता है क्योंकि न बताया जाए तो फर्क समझ न आए. वहां भी ऊपरी हिस्से के लोग पंजाबी बोलते हैं, यहां भी. वहां भी क्रिकेट के लिए दीवाने हुआ जाते हैं, यहां भी. वहां भी करप्शन है और यहां भी. वहां वालों को बताया जाता है कि सारे फसाद की जड़ हिंदुस्तान वाले हैं और हमें भी सिखाया जाता है कि पाकिस्तान से नफरत करो.

मगर इस शोर के बीच एक पुराने बरगद के नीचे कुछ दरवेश बैठे रहते हैं. कंधों पर कौओं को जमाए. उन्हें यहां वहां जाने के लिए वीजा नहीं चाहिए होता. ये दरवेश किस्से सुनाते हैं. साझेपन के. ऐसा ही एक किस्सा अब पर्दे पर नुमाया हुआ है. नाम है क्या दिल्ली, क्या लाहौर. ये किस्सा उस झोंपड़ी सी दिखती आउटपोस्ट से शुरू होता है और वहीं पर खत्म. मगर सच्चे किस्से खत्म कहां होते हैं. वे तो बीज की तरह हमारे भीतर धंस जाते हैं. फिर आंच नमी पा जब तब बढ़ने लगते हैं. क्या दिल्ली क्या लाहौर देखिए, ताकि सनद रहे कि सिर्फ जमीन बंटी है. और इस बंटने के पहले सब कुछ साझा था, है और रहेगा.

2014 की लीक से हटकर फिल्में
  • 14/18
जल: रेत से खुरदुरा कथानक
एक्टरः पूरब कोहली, तनिष्ठा चटर्जी, कीर्ति कुल्हाड़ी, यशपाल शर्मा
डायरेक्टरः गिरीश मलिक

साल की प्रयोगात्मक और नए किस्म के सिनेमा की सूची में फिल्म 'जल' की भी जगह है. दिमाग को घर पर रखकर आने वाले विशुद्ध मनोरंजन से परे है यह फिल्म. यह कहानी है गुजरात के कच्छ के एक रेतीले गांव की. जहां बक्का और बाकी गांव वाले रूस से आई एक मैडम के साथ मिलकर रेगिस्तान में पानी का कुंआ खोदने की कोशिश करते हैं.  मगर जब मशक्कत गांव के लिए मशीन के जरिए पानी तलाशने की आती है तो जैसे किस्मत भाप बन बादलों में चली गई हो. आखिर में सबका पानी मरता नजर आता है. सबका रंग बदल जाता है. सब रण से सूखे हो जाते हैं लड़ते-लड़ते. फिल्म थोड़ी स्लो है, लेकिन कंसेप्ट बढ़िया है.
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  • 15/18
हवा हवाई: एकलव्य से अर्जुन तक
एक्टरः पार्थो गुप्ते, साकिब सलीम, नेहा जोशी, मकरंद देशपांडे
डायरेक्टरः अमोल गुप्ते

'हवा हवाई' कहानी है महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के एक किसान के बेटे की. किसान की अचानक मौत हो जाती है तो उसकी पत्नी मजबूरन महानगर मुंबई की एक चाल में बच्चों और आई समेत बसर करने आ जाती है. बेटा अर्जुन मां का हाथ बंटाने के लिए एक चायवाले के यहां काम करने लगता है. यहीं एक रात उसके परों को एक आसमान मिलता है. जब वह पार्किंग लॉट में स्केटिंग करते बच्चों को और उनके कोच को देखता है. कचरे से बनता है एक स्केटिंग शूज का सजीला पेयर, जिसका नाम रखा जाता है हवा हवाई. अर्जुन अपनी मेहनत के दम पर स्केटिंग कोच का पहले एकलव्य और फिर अर्जुन बन जाता है. अर्जुन की कहानी कहने के क्रम में उन्होंने समाज की कई परतें जो दबी छिपी रहती हैं, या जिन्हें देखने से हम बचते हैं, ऐन हमारी आंखों के सामने बोल्ड रंगों में उतार कर रख दी हैं.

कहानी के जरिए सिर्फ खेल या सपने के जुनून को ही नहीं दिखाया गया है. बल्कि इंसानियत के, दोस्ती के और भरोसे के कई पाठ भी बिना प्रवचन की कर्कशता अपनाए क्रमशः पढ़ाए गए हैं. अपने बच्चों को दिखाने के लिए आदर्श फिल्म.
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  • 16/18
फिल्मिस्तान: इंडो-पाक बैकग्राउंड में एक सुरमयी कहानी
एक्टर:
शारिब हाशमी, इनामुल हक, कुमुद मिश्रा, गोपाल दत्त
डायरेक्टर: नितिन कक्कड़

सिनेमाई पर्दे पर छा जाने का सपना देखता एक नौजवान जो वक्त के भंवर में फंसकर आतंकियों के हाथों अगवा हो जाता है और फिर उसका दूसरा सफर शुरू होता है. पाकिस्तान में जहां उसे रखा गया है, वहां उसका सीमावर्ती गांव वालों के साथ एक आत्मीय रिश्ता जुड़ने लगता है. हिंदी फिल्मों की मशहूरियत सरहदों के फासले को बेमानी साबित करने लगती है.
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह फिल्मों के बारे में बात करते हुए भी बहुत शोर पैदा नहीं करती. क्या पुराने क्या नए सभी एक्टर्स की मिमिक्री होती है, फिल्मों के प्रसंग का जिक्र होता है, अनिवार्य हो चला क्रिकेट मैच भी आता है, मगर सब कुछ सुरमयी और सरल रहता है. फिल्म उस दर्शन को नए सिरे से आबाद करती है कि दोनों मुल्क एक ही संस्कृति और सरोकार की जमीन पर खड़े हैं और धर्म या राष्ट्रवाद की कथित दीवार उनके बीच फासला पैदा नहीं कर सकती.
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  • 17/18
सिटी लाइट्स: शहर में सफर
एक्टरः
राजकुमार राव, पत्रलेखा, मानव कौल
डायरेक्टरः हंसल मेहता

कस्बों, गांवों से शहर आने और फिर सपने पूरे करने के दुरूह सफर की कहानी है 'सिटी लाइट्स'. हम शहर आते हैं इस इस उम्मीद के साथ कि यहां रौशनी है. ऊंचाई पर है तो क्या हुआ, हम भी अपना कद बढ़ा लेंगे. मगर कद बढ़ाने की इस पवित्र कोशिश में कितनी बार कदम लड़खड़ाते हैं ये सबने भीतर की जेब में खुसे नोट की तरह छिपा रखा है. इन्हीं कोशिशों का एक सिला है फिल्म सिटी लाइट्स. ये हमारे अंधेरों से लड़ने की कहानी है. छोटी जगहों से शहर आए लोगों की प्रतिनिधि कहानी. राजकुमार राव की बढ़िया एक्टिंग के लिए भी देखिए.
2014 की लीक से हटकर फिल्में
  • 18/18
तितली: अपराध के अंधेरे में रिश्ते
एक्टर
: रणवीर शौरी, अमित सियाल, शशांक अरोड़ा, ललित बहल, शिवानी रघुवंशी
डायरेक्टर: कनु बहल

यश राज फिल्म्स और दिबाकर बनर्जी निर्मित फिल्म 'तितली' की कहानी भाइयों के बीच अस्थिर रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती है. सबसे छोटा भाई अपने पारिवारिक पेशे से बचकर भाग जाना चाहता है, लेकिन उसके भाई जबरदस्ती उसकी शादी करवा देते हैं. लेकिन पत्नी नीलू के रूप में तितली को एक नया साथी मिल जाता है जिसे अपने कुंठित सपने पूरे करने हैं. दोनों मिलकर अपने आपराधिक परिवार से निपटते हैं. फिल्म को इस साल कान फेस्टिवल में भी दिखाया गया.
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