इस साल पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़े आए तो ऐसा लगा कि 73 साल में पहली बार ‘अर्थव्यवस्था और आम आदमी, दोनों की कमर तोड़ गई. ‘आर्थिक तबाही व वित्तीय आपातकाल’ में देश को धकेला जा रहा है जिसका सबूत धड़ाम से गिरी GDP है. इस तरह के आरोप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान लगाए.
सुरजेवाला ने कहा कि आज देश में चारों ओर आर्थिक तबाही का घनघोर अंधेरा है. रोजी, रोटी, रोजगार खत्म हो गए हैं तथा धंधे, व्यवसाय व उद्योग ठप पड़े हैं. अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है तथा जीडीपी पाताल में है. देश को आर्थिक आपातकाल की ओर धकेला जा रहा है.
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी सुरजेवाला ने आगे कहा कि 6 साल से ‘एक्ट ऑफ फ्रॉड’ से अर्थव्यवस्था को डुबोने वाली मोदी सरकार अब इसका जिम्मा ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानी भगवान पर मढ़कर अपना पीछा छुड़वाना चाहती है. सच ही है, जो भगवान को भी धोखा दे रहे हैं, वो इंसान और अर्थव्यवस्था को कहां बख्शेंगे.
GDP - ‘G-गिरती, D-डूबती, P- पिछड़ती’ अर्थव्यवस्था
73 साल में पहली बार जीडीपी का पहली तिमाही में घटकर माइनस 24 प्रतिशत होने का मतलब है कि देशवासियों की औसत आय धड़ाम से गिरेगी. जीडीपी के ध्वस्त होने के असर का साधारण व्यक्ति पर आकलन करते हुए एक्सपर्ट्स बताते हैं कि 2019-20 में प्रति व्यक्ति सालाना आय 1,35,050 रुपये आंकी गई.
साल 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में जीडीपी माइनस 24 प्रतिशत गिरी. दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) में हाल इससे भी बुरा है यानी पूरे साल में अगर जीडीपी माइनस 11 प्रतिशत तक भी गिरी, तो आम देशवासी की आय में बढ़ोत्तरी होने की जगह सालाना 14,900 रुपये कम हो जाएगी. एक तरफ महंगाई की मार, दूसरी ओर सरकारी टैक्सों की भरमार और तीसरी ओर मंदी की मार, तीनों मिलकर आम आदमी की कमर तोड़ डालेंगे.
टूटा सबका विश्वास, छोड़ा सबका साथ
लोगों का विश्वास सरकार से पूरी तरह उठ चुका है. लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों से पूछिए, तो वो बताएंगे कि बैंक न तो कर्ज देते हैं और न ही वित्तमंत्री की बात में कोई वजन है. उधर, बैंकों को सरकार की बात पर विश्वास नहीं और सरकार को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर विश्वास नहीं. प्रांतों को केंद्रीय सरकार की बात पर विश्वास नहीं और जनता को सरकार पर विश्वास नहीं. चारों तरफ केवल अविश्वास का माहौल है.
मोदी सरकार का 20 लाख करोड़ का ‘जुमला आर्थिक पैकेज’ भी डूबती अर्थव्यवस्था, आर्थिक तबाही व गिरती जीडीपी को रोकने में फेल साबित हुआ. टूटे विश्वास व छूटते साथ का इससे बड़ा सबूत क्या होगा?
भयानक आर्थिक मंदी का सच - आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते
‘झूठ का व्यापार’ और ‘भ्रम का प्रचार’ कर रही मोदी सरकार सच का आईना देखने से इनकार कर रही है, पर सच्चाई क्या है:-
केंद्र सरकार हुई ‘डिफॉल्टर’- प्रांतों को जीएसटी का पैसा देने से किया इनकार - संघीय ढांचा खतरे में
73 साल में पहली बार केंद्र सरकार घोषित रूप से डिफॉल्टर हो गई है. वित्त सचिव ने 11 अगस्त, 2020 को संसद की ‘वित्तीय मामलों की स्थायी समिति’ को साफ तौर से कहा कि भारत सरकार GST में प्रांतों का हिस्सा नहीं दे सकती व प्रांत कर्ज लेकर काम चलाएं. यही नहीं, 2020-21 में प्रांतों को GST कलेक्शन में 3 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने वाला है. (SBI Report) फिर प्रांत अपना खर्च कैसे चलाएंगे, जब केंद्र सरकार GST में उनका हिस्सा देने से इनकार कर रही है. यह आर्थिक अराजकता है.
किसान-मजदूर-मध्यम वर्ग पर सुनियोजित हमला
आर्थिक मंदी की मार सह रहे मिडिल क्लास व नौकरीपेशा लोगों को EMI भुगतान का समय 31 अगस्त, 2020 से आगे न बढ़ा तथा लॉकडाउन के दौरान EMI पर ब्याज वसूलने के निर्णय का शपथपत्र मोदी सरकार ने 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जिससे सारी उम्मीदें टूट गईं. यह जले पर घाव नहीं तो क्या है? किसान-मजदूर का नाम लेकर अपनी झूठी पीठ ठोंकने वाली सरकार ने उन्हें आत्महत्या की ड्योढ़ी पर पहुंचा दिया है.
NCRB के मुताबिक साल 2019 में 42,480 किसान-मजदूर आत्महत्या को मजबूर हुए, यानी आर्थिक संकट के चलते रोज 116 किसान-मजदूरों की जिंदगी को आत्महत्या ने निगल लिया.
यही हाल बेरोजगारों का है. NCRB के मुताबिक, साल 2019 में 14,019 बेरोजगार आत्महत्या को मजबूर हुए, यानी नौकरी के अभाव में रोज 38 बेरोजगारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अहंकार में डूबी मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों की तरक्की, किसानों की मेहनत, युवाओं के रोजगार-सबको हराकर अपने दल की जीत की स्वार्थ सिद्ध करने में लगी है. विकराल आर्थिक संकट की घड़ी में देश की तरक्की मोरों को दाना चुगा, फोटो अपॉर्च्युनिटी बनाने वाले आत्ममुग्ध ‘परिधानमंत्री’ व चापलूस दरबारी कदापि नहीं कर सकते. इसके लिए ‘टेलीविज़न से विज़न’, ‘झूठ से सच’, ‘झांसों से वास्तविकता’ व ‘कथनी से करनी’ तक का सफर तय करना आवश्यक है.