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राजनीति

छोड़ा 'हाथ', 'कमल' के साथ, UP के वो 10 कांग्रेसी जिन्हें BJP में दिखा भविष्य!

Politics of UP these 10 politicians
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कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होते ही पार्टी के एक के बाद एक नेता साथ छोड़ता जा रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज नेता जितिन प्रसाद ने कांग्रेस का साथ छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. माना जा रहा है कि बीजेपी जितिन को यूपी में योगी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सूबे में आगे बढ़ाएगी. सियासी गलियारों में सूबे के उन नेताओं की चर्चा होने लगी जो पिछले चार-पांच साल में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. ऐसे में उन्हें पार्टी बदलने के एवज में क्या इनाम मिला और मौजूदा समय में किस भूमिका में हैं.  (Photo by Chandradeep Kumar)

Politics of UP these 10 politicians changed their party
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1. जितिन प्रसाद
पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का कांग्रेस से अपना करीब दो दशक और पारिवारिक तौर पर तीन पीढ़ी का दशकों पुराना नाता रहा है. जितिन के दादा ज्योति प्रसाद कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे और पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर नरसिम्हाराव तक के राजनीतिक सलाहकार थे. इतना ही नहीं जितिन प्रसाद खुद भी राहुल गांधी की करीबी नेताओं में गिने जाते थे. 2004 और 2009 में सांसद बनने और मनमोहन सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रहे. दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव हारने के बाद जितिन अपने सियासी भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है. बीजेपी में उनकी क्या भूमिका होगी, यह तस्वीर साफ नहीं है.

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2. जगदंबिका पाल
कांग्रेस से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले जगदंबिका पाल का नाम उत्तर प्रदेश में एक दिन के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड दर्ज है. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कई बार कांग्रेस छोड़ा और पकड़ा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. वो यूपी के डुमरियागंज सीट से लगातार तीसरी बार सांसद हैं. इससे पहले विधान परिषद और विधानसभा के सदस्य रहने के साथ-साथ यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. हालांकि, बीजेपी में आने के बाद से दूसरी बार सांसद चुने गए हैं.

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3. रीता बहुगुणा जोशी
रीता बहुगुणा जोशी को सियासत विरासत में मिली है. उनके पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चुके हैं और मां सांसद रह चुकी हैं. 1995 से 2000 तक वह इलाहाबाद की मेयर रहीं. 2003 से 2007 तक वह ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं. इसके बाद 2007 से 2012 तक उन्हें यूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर जिम्मेदारी निभाया और 2012 में वह लखनऊ कैंट से विधायक चुनी गईं.

इसके बाद अक्टूबर 2016 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और 2017 में फिर इसी सीट से विधायक चुनकर योगी सरकार में मंत्री बनी. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से प्रयागराज से सांसद चुनी गई तो उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. फिलहाल सांसद हैं.  

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4. डॉक्टर संजय सिंह
अमेठी राज परिवार के डॉ. संजय सिंह ने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया. वो इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के दोस्त थे और राजीव गांधी के करीबी भी माने जाते थे. 1980 में पहली बार अमेठी से विधायक चुने गए और 1988 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे. 1999 में हारने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस के लोकसभा और राज्यसभा सदस्य रहे. 2019 चुनाव के फौरन बाद राजा संजय सिंह ने कांग्रेस के साथ राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में वापसी कर गए, उनके साथ उनकी पत्नी अमित सिंह ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया और बीजेपी की सदस्यता ग्राहण कर ली. हालांकि, बीजेपी में आए दो साल हो गए है, न तो राज्यसभा मिली और न ही कोई दूसरी जिम्मेदारी.

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5. राजकुमारी रत्ना सिंह
पूर्व विदेश मंत्री राजा दिनेश सिंह की बेटी और यूपी के प्रतापगढ़ संसदीय सीट से तीन बार सांसद रही राजकुमारी रत्ना सिंह ने 2014-19 में लगातार दो चुनाव हारने के बाद अक्टूबर 2019 में कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्राहण कर ली. उनकी बेटी ने बीजेपी के समर्थन से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं सकी. रत्ना सिंह के पिता राजा दिनेश सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे और इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे. रत्ना सिंह को बीजेपी में शामिल हुए दो साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई अहम जिम्मेदारी नहीं मिली.

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6.दिनेश प्रताप सिंह
कांग्रेस के मजबूत गढ़ माने जाने वाले रायबरेली से विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह ने अप्रैल 2018 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन जीत नहीं सके. रायबरेली में बीजेपी के दूसरे नेताओं के साथ दिनेश सिंह के छत्तीस के आंकड़े है. हाल ही में हुए जिला पंचायत चुनाव में दिनेश प्रताप सिंह के भाई की पत्नी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा दल साल से जिला पंचायत पर उनका कब्जा था, लेकिन इस बार सीट एससी के लिए आरक्षित हो गई है.

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7. राकेश प्रताप सिंह
दिनेश प्रताप सिंह के भाई राकेश प्रताप सिंह रायबरेली के हरचंद्रपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक हैं. राकेश प्रताप सिंह ने अपने भाई के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस से बागी रुख अपनाए हुए हैं, लेकिन पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है. माना जा रहा है कि इस बार वो बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं, लेकिन उसी सीट पर शिवगणेश लोधी की पत्नी मजबूत दावेदार हैं. 2017 में महज 3500 वोट से हार गई थी.  

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8. अदिति सिंह
पूर्व विधायक अखिलेश सिंह की बड़ी बेटी अदिति सिंह रायबरेली सदर सीट से विधायक हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनी अदिति सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से बागी रुख अपनाए हुए हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ा है. वो गांधी परिवार और कांग्रेस पर निशाना साधने का मौका नहीं छोड़ती है. माना जा रहा है कि 2022 का चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ सकती हैं.

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9. रवि किशन
भोजपुरी अभिनेता व गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन ने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में रवि किशन ने कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर संसदीय सीट से किस्मत आजमाया था, लेकिन मोदी लहर में वो जीत नहीं सके. 2017 के चुनाव से ठीक पहले रवि किशन ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और सीएम योगी आदित्यनाथ की परंपरागत सीट रही गोरखपुर से मौजूदा समय में सांसद हैं.

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10.अम्मार रिज़वी
उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री रह चुके डॉ. अम्मार रिजवी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक बाद कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. रिजवी ने 1966 में कांग्रेस से अपना सियासी सफर शुरू किया और पांच दशक तक पार्टी में रहे. इस दौरान कांग्रेस के तमाम पदों पर रहे, लेकिन अब बीजेपी के हो गए हैं. हालांकि, दो साल के बाद भी बीजेपी में उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी नहीं मिली.

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