तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) दशहरे के मौके पर अपने राष्ट्रीय एजेंडे को धार देने के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक दल की घोषणा करने जा रहे हैं. केसीआर अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर सकते हैं. 2024 के चुनाव में पीएम मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए वो अलग-अलग राज्य का दौरा कर विपक्षी दल के नेताओं से मिल रहे हैं, लेकिन क्या केसीआर कोई सियासी विकल्प दे पाएंगे?
केसीआर की राष्ट्रीय पार्टी की बुनियाद रखकर अपनी सरकार के द्वारा तेलंगाना में चलाई जा रही योजनाओं को देश भर के लोगों के सामने रखने की रणनीति है. केसीआर रायथु बंधु और दलित बंधु योजना को शामिल कर सकते हैं. रायथु बंधु का अर्थ है 'किसान का मित्र'. इस योजना से किसानों को शुरुआती निवेश की जरूरतों के लिए समय पर नकद धनराशि देना और यह सुनिश्चित करना कि किसान कर्ज के जाल में न फंसें. तेलंगाना में लाखों किसानों को इस योजना से लाभ मिला है.
दलित बंधु योजना के तहत हर दलित परिवार को किसी भी व्यवसाय या व्यापार शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये की मदद तेलंगाना सरकार के द्वारा दी जाती है. इन दोनों योजनाओं को सामने रखकर केसीआर 2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ एक नैरेटिव बनाने की रणनीति है. टीआरएस नेता श्रीधर रेड्डी ने कहा कि मौजूदा समय में लोग एक मजबूत राष्ट्रीय मंच की तलाश में हैं, क्योंकि एनडीए सरकार पूरी तरह से विफल रही है. ऐसे में देश एक मजबूत विकल्प की तलाश में है, जिसे केसीआर सामने रखेंगे.
बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव बना रहे केसीआर
केसीआर को तेलंगाना में बीजेपी से सीधे चुनौती मिल रही है तो ऐसे में वह भी बीजेपी को तेलंगाना से बाहर घेरने की कवायद में है. तेलंगाना में अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होने हैं और बीजेपी राज्य में तेजी से अपना विस्तार करने में जुटी है.
ऐसे में केसीआर ने भी राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव बनाने के लिए कवायद कर रहे हैं. इसी कड़ी में केसीआर ने पिछले महीने ऐलान किया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में गैर बीजेपी सरकार आती है तो देशभर के किसानों को मुफ्त बिजली दी जाएगी.
दक्षिण के कई नेता कर चुके हैं कोशिश
लोकसभा चुनाव से पहले केसीआर नेशनल पार्टी बनाने का ऐलान और लगातार विपक्ष को एकजुट करने की कवायद कर रहे हैं. केसीआर अब राष्ट्रीय राजनीति में उतरना चाहते हैं और उन्हें 2024 का चुनाव इसके लिए मुफीद लग रहा है.
केसीआर से पहले दक्षिण के कई नेताओं ने अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए कवायद कर चुके हैं, लेकिन सफल नहीं हो सके. 2019 के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ही बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का बीड़ा उठाया था, लेकिन सफल नहीं रहे.
सियासी संयोग से नरिसम्हा राव, देवगौड़ा बने थे पीएम
दक्षिण भारत से नरसिम्हा राव और एचडी देवगौड़ा ही प्रधानमंत्री बन सके थे. नरसिम्हा राव कांग्रेस से तब पीएम बने थे, जब चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या हो गई थी और सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने से मना कर दिया था. इसके बाद एचडी देवगौड़ा 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार में पीएम बने थे. साउथ से आने वाले दोनों ही नेता किसी पहले से बनी किसी रणनीति के तहत नहीं बल्कि सियासी संयोग से ऐसे बन गए थे, जिसके चलते उनकी लॉटरी लग गई थी.
साउथ के ज्यादातर छत्रप ने राष्ट्रीय राजनीति में हाथ-पैर मारने के बजाय खुद को अपने-अपने राज्यों तक सीमित रखा हुआ है. तमिलनाडु में डीएमके रही हो या फिर एआईडीएमके. ऐसे ही आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस हो या फिर कर्नाटक की जेडीएस. तेलंगाना में केसीआर भी अभी तक खुद को तेलंगाना तक सीमित रखे हुए थे, लेकिन बीजेपी से राज्य में मिल रही चुनौती के चलते राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने का प्लान बनाया है.
पिछले दिनों कई दिग्गज नेताओं से मिले थे केसीआर
केसीआर तकरीबन आठ सालों तक तेलंगाना के सीएम हैं. तेलंगाना की सियासत से वो निकल राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं. इसके लिए वह पिछले कुछ समय से कोशिश भी कर रहे हैं. इसी के मद्देनजर विपक्षी एकता के लिए शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं से मिल चुके हैं. किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों और देश की सीमा पर शहीद होने वाले सेना के जवानों के परिवार को आर्थिक मदद भी की है. केसीआर लगातार पीएम मोदी पर हमला बोलते रहे हैं ताकि विपक्षी की ओर से विकल्प बन सकें.
दक्षिण में 131 लोक सभासीटों पर धाक जमाने का लक्ष्य
देश की कुल 545 लोकसभा सीटों में से 131 संसदीय सीटें दक्षिण भारत से आती हैं. कर्नाटक में 28, तेलंगाना 17 में आंध्र प्रदेश में 25, तमिलनाडु में 39, केरल में 20, पुडुचेरी और लक्ष्यदीप में 1-1 सीट है.
ऐसे में अगर कोई साउथ की पार्टी इन 131 लोकसभा सीटों में 100 सीटें जीतने की क्षमता रखती है तो उसके लिए राष्ट्रीय राजनीति में अपनी हनक जमाने से कोई नहीं रोक सकता है. केसीआर भले ही राष्ट्रीय पार्टी बनाने की बात कर रहे हों, लेकिन उनके मन में दक्षिण की इन्हीं सीटों पर बीजेपी को मात देने की रणनीति है.
दक्षिण भारत में क्षेत्रीय दलों का ही वर्चस्व
आजादी के बाद का इतिहास देखा जाय तो शुरुआती दौर में कांग्रेस का तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, संयुक्त आंध्र प्रदेश में वर्चस्व था, लेकिन उसके बाद सबसे पहले केरल में कम्युनिस्ट दलों ने कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया.
इसके बाद तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके ने कांग्रेस को सत्ता से हटाया. इसी तरह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी, वाईएसआर, टीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल ही पनपे. इसी तरह कर्नाटक में जेडीएस एक ताकत है.
दक्षिण में बीजेपी की राह मुश्किल
बीजेपी उत्तर भारत में भले ही अपने वर्चस्व स्थापित करने में सफल रही, लेकिन दक्षिण में मोदी का जादू फीका है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी कर्नाटक और तेलंगाना में सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में खाता तक नहीं खोल सकी. यही वजह है कि केसीआर राष्ट्रीय पार्टी बनाकर दक्षिण अस्मिता को जगाना चाहते हैं.
इस बात को कांग्रेस भी बाखूबी से समझ रही है, जिसके चलते राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा का आगाज साउथ से शुरू किया है और यूपी जैसे राज्य से ज्यादा वक्त वहां गुजार रहें. इससे साउथ की राजनीतिक ताकत और केसीआर की रणनीति को समझा जा सकता है?