लोकसभा चुनाव में कुछ महीने का ही समय बचा है. केंद्र की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार संसद के चालू मॉनसून सत्र में विपक्ष के आक्रामक तेवरों की वजह से घिरी है. विपक्षी कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया है. दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग के पावर को लेकर भी सरकार बिल ला रही है जिसे रोकने के लिए विपक्ष ने पूरा जोर लगा दिया है तो वहीं सत्तापक्ष ने पारित कराने के लिए.
लोकसभा में जहां बीजेपी अकेले पूर्ण बहुमत में है तो वहीं राज्यसभा में तस्वीर इसके ठीक विपरीत है. राज्यसभा में एनडीए के सभी घटक दलों का संख्याबल जोड़ लें तो भी गठबंधन बहुमत के आंकड़े से दूर है. राज्यसभा में 92 सदस्यों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. एनडीए के घटक दलों के साथ ही मनोनीत सदस्यों की संख्या भी जोड़ लें तो संख्याबल 110 तक पहुंचता है. राज्यसभा में इस समय 238 सदस्य हैं. ऐसे में दिल्ली के पावर वॉर पर संसद के उच्च सदन में ही पक्ष-विपक्ष का असली टेस्ट होगा.
दिल्ली को लेकर बिल पास कराने के लिए सरकार को 120 सदस्यों के वोट की और जरूरत होगी. तीन निर्दलीय सांसद हैं और तीनों का वोट भी सरकार के साथ जोड़ लें तो भी आंकड़ा 113 तक ही पहुंचता है. ऐसे में नजरें वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजेडी), भारत राष्ट्र समिति जैसी पार्टियों के रुख पर टिकी हैं. राज्यसभा में वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी के नौ-नौ सदस्य हैं जबकि केसीआर की पार्टी बीआरएस के भी सात सदस्य हैं. सूत्रों के मुताबिक वाईएसआर कांग्रेस दिल्ली को लेकर बिल पर सरकार का समर्थन करेगी.
विपक्ष में रहते हुए सरकार का संकटमोचक बनीं ये पार्टियां
नागरिकता संशोधन विधेयक हो या तीन तलाक से जुड़ा बिल, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से संबंधित बिल हो या दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने वाला बिल, पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के नौ साल के कार्यकाल में कई ऐसे मौके आए जब सरकार के लिए राज्यसभा में बिल पारित करा पाना मुश्किल माना जा रहा था. ऐसे मौकों पर विपक्ष में होते हुए भी वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजेडी), भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसी पार्टियों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार का साथ दिया और उच्च सदन में उसकी राह आसान बना दी.
नागरिकता संशोधन विधेयक पर राज्यसभा में वोटिंग के समय विपक्ष में रहते हुए भी वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा की सत्ताधारी बीजेडी ने पक्ष में मतदान किया था. तीन तलाक बिल पर वोटिंग से समाजवादी पार्टी (सपा), पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और डीएमके ने वॉकआउट किया था. वॉकआउट करना भी सरकार का सहयोग ही माना जाता है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी मतदान से दूरी बना ली थी. नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर बीआरएस (पुराना नाम टीआरएस) ने सरकार का समर्थन किया था.
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जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर सरकार जब राज्यसभा में बिल लेकर आई, वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी के साथ ही आम आदमी पार्टी, बसपा, टीडीपी ने समर्थन किया था. विपक्ष में रहते हुए भी आम आदमी पार्टी ने समर्थन किया था. साल 2021 में दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने को लेकर बिल आया तब वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी और सपा ने विरोध तो किया लेकिन वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. इन दलों के सांसद वॉकआउट कर गए जिससे ये विधेयक आसानी से उच्च सदन की बाधा पार कर गया.
वाईएसआर कांग्रेस अपना रही चंद्रबाबू नायडू का मॉडल
आंध्र प्रदेश में सत्ता बदली लेकिन सिद्धांत नहीं. जगनमोहन रेड्डी की सरकार भी चंद्रबाबू नायडू के मॉडल पर ही चलती नजर आई है. साल 1995 में टीडीपी पर कब्जा कर आंध्र प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने तब कांग्रेस के समर्थन से केंद्र की गठबंधन सरकार का समर्थन किया था. टीडीपी ने इसके अगले ही साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी तो उसका भी समर्थन किया. 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार से समर्थन वापस लेने वाली टीडीपी अविश्वास प्रस्ताव भी लाई थी. चंद्रबाबू नायडू ने उसके बाद भी कहा था कि 2019 चुनाव के बाद जो भी प्रधानमंत्री बनेगा, हम उसका समर्थन करेंगे. टीडीपी सरकार में शामिल हो या विपक्ष में, अधिकतर मौकों पर सरकार का साथ देने की नीति पर ही चली.
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आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी वाईएसआर कांग्रेस हो या ओडिशा की बीजेडी या पूर्वोत्तर की पार्टियां, सभी एक ही पैटर्न पर चलती नजर आती हैं. ये सत्ताधारी गठबंधन में शामिल रहें या ना रहें, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नजर आते रहते हैं. इस रणनीति के पीछे भी अपनी राजनीति है. ऐसी पार्टियों का आधार एक राज्य या क्षेत्र विशेष तक है. उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं उतनी नहीं होतीं. इनका फोकस राज्य की राजनीति पर होता है और ऐसे में ये नहीं चाहते कि केंद्र से उनके संबंध तल्ख हो जिसकी वजह से उन्हें फंड की कमी का सामना करना पड़े.
क्या कहते हैं जानकार?
वरिष्ठ पत्रकार और संसदीय मामलों के जानकार अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि ये सही है कि वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी, टीडीपी जैसी पार्टियां पक्ष में वोटिंग कर या वॉकआउट कर सरकार का सहयोग करती रही हैं. लेकिन इसबार मुद्दा अलग है. ये मामला राज्य बनाम केंद्र का है और ऐसे में वाईएसआर कांग्रेस या बीजेडी के लिए सरकार के साथ जाने का निर्णय ले पाना आसान नहीं होगा.
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