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आजम खान के बेटे अब्दुल्ला की विधायकी छिनी, दो साल की सजा के बाद सदस्यता रद्द

सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम की विधायकी चली गई है. उनकी स्वार टांडा सीट पर फिर चुनाव होने जा रहे हैं.  विधानसभा सचिवालय के तरफ से अधिसूचना जारी कर बताया गया की स्वार टांडा सीट रिक्त कर दी गई है 

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अब्दुल्ला आजम की विधायकी छिनी
अब्दुल्ला आजम की विधायकी छिनी

सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम की विधायकी चली गई है. उनकी स्वार टांडा सीट पर फिर चुनाव होने जा रहे हैं.  विधानसभा सचिवालय के तरफ से अधिसूचना जारी कर बताया गया की स्वार टांडा सीट रिक्त कर दी गई है. अब चुनाव आयोग इस सीट पर दोबारा चुनाव कराएगा. 

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इससे पहले भी अब्दुल्ला आजम की विधायकी छिन चुकी है. फर्जी प्रमाणपत्र वाले मामले में भी उन्हें दो साल से ज्यादा की सजा हुई थी और उसी वजह से उनकी विधायकी भी रद्द करनी पड़ी थी. अब एक 15 साल पुराने मामले में आजम खान को दोषी पाया गया है और मुरादाबाद की अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई है. इसी वजह से विधानसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी है और उनकी स्वार टांडा सीट पर चुनाव होने जा रहे हैं.

क्या है ये पूरा मामला?

जानकारी के लिए बता दें कि 15 साल पहले 29 जनवरी 2008 को छजलैट पुलिस ने पूर्व मंत्री आजम खान की कार को चेकिंग के लिए रोका था जिससे उनके समर्थक भड़क गए थे. इसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा किया था . इस हंगामे में अब्दुल्ला समेत नौ लोगों को आरोपी बनाया गया था. पुलिस ने इस मामले में हंगामा करने वाले सभी लोगों पर सरकारी काम में बाधा डालने और भीड़ को उकसाने के आरोप में केस दर्ज किया था.

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इस पूरे मामले में एक बड़ी बात ये भी है कि अब दोनों आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला की विधायकी जा चुकी है. हेट स्पीच मामले में क्योंकि आजम खान को तीन साल की सजा हुई थी, ऐसे में उनकी विधायकी पहले ही रद्द की जा चुकी है. अब इस 15 साल पुराने मामले में अब्दुल्ला को दो साल की सजा हुई है, ऐसे में उनकी विधायकी भी हाथ से फिसल गई है. 25 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब आजम परिवार का कोई भी सदस्य विधानसभा में शामिल नहीं होगा.

कोई विकल्प बचा?

अभी के लिए आजम खान के बेटे राहत के लिए सेशन कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं, जहां अगर एमपी-एमएलए कोर्ट के फैसले पर स्टे लग जाता है तो विधायकी बच सकती है. सेशन कोर्ट अगर स्टे नहीं देता है तो फिर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा. ऐसे में हाई कोर्ट से अगर स्टे मिल जाता है तो भी उनकी सदस्यता बच सकती है.

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