कर्नाटक में मिली हार के बाद से प्रदेश बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हैं. इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि सिद्धारमैया के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद तीन जुलाई से शुरु हुआ कर्नाटक विधानसभा का बजट सत्र 21 जुलाई को समाप्त होने वाला है लेकिन अभी तक विधानसभा के सदन में नेता विपक्ष की कुर्सी खाली है.
नेता प्रतिपक्ष का नाम नहीं हो सका घोषित
चुनाव नतीजों के बाद से अलाकमान ने इसको लेकर चर्चा कर दी थी कि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नलीन कुमार कतील का कार्यकाल समाप्त हुए करीब एक साल हो गया उनकी जगह नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए लेकिन पार्टी हाईकमान अभी तक नए प्रदेश पर भी फ़ैसला नहीं कर पाई हैं. पार्टी आलाकमान ने पिछले सप्ताह ही में पंजाब, झारखंड, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के प्रदेश अध्यक्षों का नाम घोषित कर दिए, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी कर्नाटक के अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का नाम घोषित नहीं किया गया.
विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले बीजेपी ने दिल्ली से मनसुख मांडविया और विनोद तावड़े दो पर्यवेक्षकों को बेंगलुरु भेजा था और ज़िम्मेदारी दी थीं सभी विधायकों से बात करके नेता विपक्ष के नाम पर सहमति बनाएं. दोनों पर्यवेक्षक बेंगलुरु जा कर विधायकों के साथ बैठकर दिल्ली लौटे और रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को सौंप भी दी. लेकिन बीजेपी एक सप्ताह बाद भी अभी तक नेता विपक्ष के नाम की घोषणा नहीं कर सकी हैं.
बेटे के लिए पद चाहते हैं येदियुरप्पा
बीजेपी जमीन स्तर पर कर्नाटक सरकार के ख़िलाफ़ ज़मीन पर सक्रिय रूप से मुद्दे उठा रही हैं दिख रही है. चाहें मामला जैन संत की हत्या का है जिसे लेकर बीजेपी विरोध प्रदर्शन कर रही है, लेकिन प्रदेश नेतृत्व के बारे में फैसला न होने से पार्टी नेताओं के बीच में असमंजस की स्थिति बनी हुई हैं.दो जुलाई पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदयुरप्पा ने जेपी नड्डा से मुलाक़ात की थीं. सूत्रों की माने तों येदयुरप्पा चाहते हैं कि उनके बेटे बी वाय विजयेंद्र को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौपी जाए.
वोक्कालिंगा और लिंगायत वोट बैंक
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि नेता विपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का फैसला न होने के पीछे जातीय समीकरणों को साधना हैं. इसीलिए पार्टी हाईकमान लिंगायत और वोक्कालिंगा समाज में संतुलन बैठाने की कोशिश में लगी हुई हैं. विधानसभा चुनावों में जहां लिंगायत वोट बीजेपी से खिसक कर कांग्रेस में गए वहीं वोक्कालिंगा वोट भी जनता दल सेक्यूलर से कांग्रेस की ओर गए. बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2024 के लोक सभा चुनाव है. बीजेपी चाहती है कि नेता विपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का फैसला इन्ही समीकरणों के हिसाब से करना चाहती हैं जिससे 2024 के चुनाव कांग्रेस में गया लिंगायत वोट बैंक बीजेपी में लौट आए वोक्कलिंगा वोट बैंक में भी सेंध लग सके.
अब बीजेपी के सामने जहां एक चुनौती वोक्कालिंगा और लिंगायत समुदायों में संतुलन बनाना जितना ज़रूरी हैं उससे बड़ी चुनौती बी एस येदयुरप्पा माँग को कैसें पूरा किया जाए क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद येदयुरप्पा की नाराज़गी झेलना पाना पार्टी के लिए कठिन हैं. बीजेपी अगर लिंगायत को नेता विपक्ष बनाती है तो उसे वोक्कालिंगा समाज से किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाना होगा. इसी तरह वोक्कालिंगा नेता को नेता विपक्ष बनाने पर लिंगायत प्रदेश अध्यक्ष बनाने का दबाव होगा.
इन नामों की है चर्चा
नेता विपक्ष के लिए जिन प्रमुख लिंगायत नेताओं के नाम लिए जा रहे हैं उनमें पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, बसनगौड़ा पाटिल यतनाल और एस येदयुरप्पा के बेटे विजयेंद्र के नामों पर चर्चा हुई है. बसनगौड़ा पाटिल यतनाल पंचशाली लिंगायत हैं जो लिंगायतों में सबसे अधिक संख्या में है. इसी तरह वोक्कालिंगा समुदाय के सी एनअश्वथ नारायाण और आर अशोक भी नेता विपक्ष की दौड़ में हैं. जबकि प्रदेश अध्यक्ष के लिए वोक्कालिंगा समाज से शोभा करांदलाजे, अश्वथ नारायण और सी टी रवि का नाम लिया जा रहा है. लिंगायत समाज से प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए बी एस येदयुरप्पा के बेटे विजयेंद्र का नाम भी लिया जा रहा है. फ़िलहाल विजयेंद्र बीजेपी संगठन में उपाध्यक्ष के पद पर पर हैं.
बीजेपी के सामने ओबीसी और एससी वर्ग से भी कुछ नेताओं को यह जिम्मेदारी सौंपने का विकल्प है. इसके लिए ओबीसी वर्ग से सुनील कुमार और एससी वर्ग से अरविंद लिंबावली का नाम भी लिया जा रहा है.जाहिर है बीजेपी न केवल इन्हीं कारणों से दुविधा में है बल्कि वह फूंक-फूंक कर कदम भी रखना चाह रही है इसलिए जातीय समीकरणों के साथ- साथ येदयुरप्पा को भी साधना चाहती हैं मिशन 2024 को लेकर कोई अड़चन न आए. येदियुरप्पा की लोकप्रियता और ताक़त का अंदाज़ा पार्टी आलाकमान को अच्छी तरह से है.